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रंग-ए-रुख़सार निखरने का सबब क्या आखिर(३९ )

रंग-ए-रुख़सार निखरने का सबब क्या आखिर
आज फिर सजने सँवरने का सबब क्या आखिर
***
आइना बोल उठा अब्र कहाँ बरसेंगे
काकुल-ए-पेचाँ बिखरने का सबब क्या आखिर 
***
क्या तसव्वुर में सनम आ गया है अक़्स मेरा
ख़ून आरिज़* में उभरने का सबब क्या आखिर
***
आज इज़हार-ए-मुहब्बत के हैं आसार लगे
झील में चाँद उतरने का सबब क्या आखिर
***
वस्ल का बारहा पैग़ाम दिया ख़ुद तुमने 
फिर मुलाकात से डरने का सबब क्या आखिर
***
मुन्तख़ब कर ही लिया दिल ने अगर है मुझको 
तो लबों से है मुकरने का सबब क्या आखिर
***
क्या सबब नज़रें चुराने का है मुझ से कोई
और नाख़ून कुतरने का सबब क्या आखिर
***
रूठना आपका शायद था हसीँ खेल कोई
लौटकर कू से गुज़रने का सबब क्या आखिर
***
राज़ से आप हटा दीजे 'तुरंत 'अब पर्दा
नागहाँ  याद यूँ करने का सबब क्या आखिर 
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 29, 2019 at 11:37pm

आदरणीय  Hariom Shrivastava जी ,उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभार | 

Comment by Hariom Shrivastava on March 29, 2019 at 12:53pm

वाह,वाहह,बहुत सुंदर ग़ज़ल आदरणीय गहलोत जी।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 26, 2019 at 11:03pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब आदाब | आपकी पारखी नज़रों से गुज़रकर ग़ज़ल कामयाब हुई | हौसला आफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया | आपका बताया संशोधन कर रहा हूँ | 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 26, 2019 at 11:01pm

 आदरणीय  Sushil Sarna जी आपकी हौसला आफजाई के लिए दिली शुक्रिया | 

Comment by Sushil Sarna on March 26, 2019 at 7:12pm

आदरणीय गहलोत जी खूबसूरत अशआर की ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई।

Comment by Samar kabeer on March 26, 2019 at 2:51pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'वस्ल का बारहा पैग़ाम दिया ख़ुद दिलबर'

इस मिसरे में तनाफ़ुर देखें,'दिलबर' की जगह "तुमने" कर सकते हैं । 

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