"हुआ क्या है ? पागल! कुछ तो बता।" सुमि की बार -बार भरती - पुछती आँखे देख कर तृषा ने जोर देकर पूछा।
"मुझे लगता है माँ का किसी के साथ...!" कह कर वह अपनी सबसे नजदीकी सखी के गले लगकर रो पड़ी।"
"क्याsss किसी के साथ....? तेरा दिमाग़ तो ठिकाने पर है ? ये शक़ कैसे पनपा तेरे मन में? उसने अविश्वास जताया।
आज वेलेंटाइन डे है ,जब तक पापा रहे , वह उनके लिए फूल खरीदतीं थीं । लेकिन आज जब वह नहीं हैं तो फिर किसके लिए खरीद रहीं थीं ?"
"मतलब तूने उन्हें फूल खरीदते देखा?"
"सिर्फ…
Added by Rahila on February 13, 2018 at 10:54am — 10 Comments
होके मजबूर तेरी गलियों से जाना होगा ।
अब खुदा जाने कहाँ अपना ठिकाना होगा ।
मै मना पाया न रब को न तेरे दिल को,
अब तो तनहाई में खुद को ही मनाना होगा ।
जान मेरी मै बिना तेरे जियूँगा लेकिन,
मेरे जीने में न जीने का बहाना होगा ।
तनहा होकर भी रहूँगा न कभी तनहा,
तेरी यादों का मेरे साथ ज़माना होगा ।
हर रजा अपनी मै हारूँगा रजा पर तेरी,
प्यार जब कर ही लिया है तो निभाना होगा ।
प्यार का नाम फकत प्यार को…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on February 13, 2018 at 9:37am — 10 Comments
(फाइलातुन -फइलातुन- फइलातुन-फेलुन )
दूर माशूक़ से आशिक़ कहाँ जाना चाहे |
कूचये यार में वो अपना ठिकाना चाहे |
मैं ही आया हूँ नहीं सिर्फ़ परखने क़िस्मत
उन को तो अपना हर इक शख्स बनाना चाहे |
थाम के हाथ जो देता हो हमेशा धोका
कौन उस शख्स से फिर हाथ मिलाना चाहे |
फितरते शमअ जलाना है तअज्जुब है मगर
जान परवाना वहाँ फिर भी लुटाना चाहे |
मुफ़लिसी के हैं यह मारे हुए ज़ालिम वरना
तेरी दहलीज़ पे सर कौन…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 12, 2018 at 12:30pm — 23 Comments
अब पैमाने
तय किए जा रहे हैं
राष्ट्रीयता के
ब्रेन मेपिंग और नार्को टेस्ट के ज़रिए
उगलवाया जाएगा राष्ट्रीयता का अमृत्व
भूल से स्वप्न में भी
गांधी का चश्मा मत देख लेना
चश्में सारे सरकार बाँटेगी
भूख बाँटने के काम में भी वह दक्ष हो गई है
जंतर-मंतर पर अनशन
भूख हड़ताल की पसलियाँ बाहर निकल आई है
संसद में भेड़िये घूस आए हैं
नोच डालना चाहते हैं संविधान की प्रतियों को
बहुत भूखे हैं
खाना चाहते हैं सारी संसदीय मर्यादा को
" रघुपति राघव राजा राम "…
Added by Mohammed Arif on February 12, 2018 at 1:11am — 14 Comments
कुछ कह न सकूं राहे दिल पर बरबाद हूँ या आबाद हूँ मै ।
रहती है तेरी याद मुझे या खुद ही तेरी याद हूँ मै ।
ठुकराया भी तुमसे न गया अपनाया भी तुमसे न गया,
उल्फत के दर फरियादी की इक टूटी सी फरियाद हूँ मै ।
मैं जिस्म हूँ कोई माटी का इस जिस्म की जान तुम्ही तो हो,
कुछ भी न तुम्हारे पहले था कुछ भी न तुम्हारे बाद हूँ मै ।
ये दर्दे जुदाई भी तेरी ये इश्के खुदाई भी तेरी,
तेरे गम में गमगीन फिरूँ तेरे मद…
Added by Neeraj Nishchal on February 12, 2018 at 12:30am — 2 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
खूब नजरें जो गढ़ाये हैं पराये माल पर
है भरोसा खूब उनको दोस्तो घड़ियाल पर।१।
भूख बेगारी औ' नफरत है पसारे पाँव बस
अब भगत आजाद रोते हैं वतन के हाल पर ।२।
आज सम्मोहन कला हर नेता को आने लगी
है फिदा जनता यहाँ की हर सियासी चाल पर।३।
खुद पहन खादी चमकते पूछता हूँ आप से
दाग कितने नित लगाओगे वतन के भाल पर।४।
ऐसा होता तो सुधर जाते सभी हाकिम यहाँ
वक्त जड़ता पर कहाँ है अब तमाचा गाल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 11, 2018 at 10:25pm — 8 Comments
बह्र:-2122-1221-22
वक्त बे वक्त का आसरा है।।
घर का टुटा हुआ जो घड़ा है ।।1
जो मुहब्बत में अपनी बिका है।
उसको दौलत ओ शुहरत से क्या है ।।2
जब समझलो की क्या माजरा है।
बोल बोलो नही कुछ बुरा है।।3…
Added by amod shrivastav (bindouri) on February 11, 2018 at 8:30pm — 2 Comments
अस्तित्व ....
एक अस्तित्व
शून्य हुआ
एक शून्य
अस्तित्व हुआ
धूप-छाँव के बंधन का
हर एक सूरज
अस्त हुआ
ज़िंदगी ज़मीन की
ज़मीन के पार
चलती रही
और
दूर कहीं
कोई चिता
धू-धू कर
जलती रही
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 11, 2018 at 3:15pm — 7 Comments
“भाई अरविन्द ,कब तक ताड़ते रहोगे ,अब छोड़ भी दो बेचारी नाजुक कलियाँ हैं |”
“मैंsए ,नहीं तो -----“
वो ऐसे सकपकाया जैसे कोई दिलेर चोर रंगे हाथों पकड़ा जाए और सीना ठोक कर कहे –मैं चोर नहीं हूँ |
“अच्छा तो फिर रोज़ होस्टल की इसी खिड़की पर क्यों बैठते हो ?”
“यहाँ से सारा हाट दिखता है |”
“हाट दिखता है या सामने रेलवे-क्वार्टर की वो दोनों लडकियाँ --–“
“कौन दोनों !किसकी बात कर रहे हो !देखों मैं शादी-शुदा हूँ ---और तुम मुझसे ऐसी बात कर रहे हो –“ उसने बीड़ी को झट से…
ContinueAdded by somesh kumar on February 11, 2018 at 7:30am — No Comments
देख दुर्दशा यार वतन की, गीत रुदन के गाता हूँ
कलम चलाकर कागज पर मैं, अंगारे बरसाता हूँ
कवि मंचीय नहीं मैं यारों, नहीं सुरों का ज्ञाता हूँ
पर जब दिल में उमड़े पीड़ा, रोक न उसको पाता हूँ
काव्य व्यंजना मै ना जानूँ, गवई अपनी भाषा है
सदा सत्य ही बात लिखूँ मैं, इतनी ही अभिलाषा है
आजादी जो हमे मिली है, वह इक जिम्मेदारी है
कलम सहारे उसे निभाऊं, ऐसी सोच हमारी है
काल प्रबल की घोर गर्जना, लो फिर मैं ठुकराता हूँ
देख…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 11, 2018 at 6:18am — 9 Comments
"बहुत हो गये फोटो! अब मैं तुम्हें बिकनी में देखना चाहता हूं!" अंततः शरीर की भूख उसके शब्दों से ज़ाहिर हो गई थी। दोस्ती से तन तक के फार्मूले से बचकर अगली बार जब उसने मुहब्बत बरसाने वाले शादीशुदा आदमी के साथ वेलेंटाइन डे मनाया तो दो शरीर एक हो ही गये थे और बरसने वाली मुहब्बत चंद दिनों में ही रफूचक्कर हो गई थी। शादीशुदा मर्द से धोखा खाने के बाद इस बार वेलेंटाइन डे पर वह एक साहित्यकार की आगोश में थी।
"तुमने विवाह क्यों नहीं किया?" अपनी लिखी कुछ काव्य रचनाएं सुनाकर साहित्यकार ने…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 10, 2018 at 9:30pm — 7 Comments
1222 1222 122
मुहब्बत के सफ़र की दास्ताँ है,
तू मेरी जान है मेरा जहाँ है,
मेरी मुस्कान होठों पर सजी और,
मेरा ग़म मेरी आँखों में निहां है,
शबे -ग़म हिज्र का तुझको सताये,
वो मेरी ज़िन्दगी में भी रवां है,
सफ़र में साथ मेरे तुम हो जानां,
मेरे कदमों के नीचे आसमां है,
लबों से कुछ नहीं कहता कभी वो,
बस उसके लम्स से सबकुछ अयाँ है..
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on February 10, 2018 at 6:41pm — 4 Comments
212 212 212
आप फिर याद आने लगे ।
क्या हुआ जो सताने लगे।।
दिल तो था आपके पास ही ।
आप क्यूँ आजमाने लगे ।।
क्या कमी थी मेरे हुस्न में ।
गैर पर दिल लुटाने लगे ।।
रफ्ता रफ्ता नजर से मेरी ।
आप दिल में समाने लगे ।।
क्या हुआ आपको आजकल…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 10, 2018 at 2:44pm — 3 Comments
22 22 22 22
मुद्दत से उलझा रहता है ।
यह मन कब तन्हा रहता है ।।
मिलता है अक्सर जो हंसकर ।
वो गम को पीता रहता है ।।
जो गुलाब भेजा था तुमने ।
वो दिल मे खिलता रहता है ।।
कब आओगे मेरे घर तुम ।
खत में वो लिखता रहता है ।।
मुझसे मेरा हाल न…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 10, 2018 at 2:36pm — 6 Comments
आशियाँ
"मैं मानता हूँ सुम्मी। मुझे तुम्हें यहां नहीं बुलाना चाहिए था लेकिन यदि आज मैं अपनी बात नहीं कह पाया तो फिर कभी ऐसा अवसर नहीं आएगा।" ढलती शाम के साये में वह अपनी बचपन की मित्र के सामने खड़ा,अपनी बात कह रहा था।
"मैं जानती हूँ यार, तुम 'जॉब' के लिये बाहर जा रहे हो।" सुम्मी हल्का सा मुस्करायी। "और ये भी जानती हूँ कि तुम क्या कहना चाहते हो? लेकिन हमारे बीच ये कभी संभव नहीं था, और अब तो बिलकुल भी नहीं।"
"नहीं सुम्मी, मुझे अपनी…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on February 10, 2018 at 12:00pm — 11 Comments
मापनी :-
1212-1122-1212-112
शुरू कहाँ से करूँ ओऱ कहाँ से बात करूँ।।
नजर से वार करूँ या जुबाँ से बात करूँ।।
मुझे तो इतना तज्ज्रिबा नहीं मुहब्बत की।
फ़िसल वो जाएं शुरू मैं जहां से बात करूँ।।
कोई हसीन सा किरदार जिंदगी से जुड़े।
यही है चाह की उल्फत की हाँ से बात करूँ ।।
समझ समझ के समझ को समझ न पाए हमीं।
की किससे कौन अदा से जुबाँ से बात करुं।।
मेरे हबीब मेरे रब मेरी अना में अभी।
है इतनी चाह जमीं आसमाँ से बात…
Added by amod shrivastav (bindouri) on February 9, 2018 at 6:22pm — 3 Comments
2212 2212 2212 12
शायद तेरी नज़र को मिला इंतखाब है ।
उगने लगा मगरिब में कोई आफताब है ।।
उड़ते परिंदे खूब हैं इस जश्ने प्यार में ।
छाया मुहब्बतों में कोई इन्क्लाब है ।।
मुद्दत से मैं था मुन्तज़िर अपने सवाल पर ।
ख़त में किसी का आज ही आया जबाब है ।।
कुछ दिन से वह भी होश में मिलता नहीं मुझे ।
कैसा नशा है इश्क़…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 9, 2018 at 12:09pm — 6 Comments
22 22 22 22 22 22 2
जब भी तेरी यादें जानां कम हो जाती हैं
मेरी आँखें और जियादा नम हो जाती हैं
दर्द संभालूँ आहें रोकूँ दिल को समझाऊँ
अश्क़ों की बरसातें बेमौसम हो जाती हैं
राह तुम्हारी तकते तकते आँखें पथराईं
साँसें भी चलते चलते मद्धम हो जाती हैं
रफ़्ता रफ़्ता रात चली और सवेरा आया
फिर ये होता है सोचें बरहम हो जाती हैं
उस दर पे दम तोड़ गई हर एक सदा मेरी
और सभी उम्मीदें 'ब्रज' बेदम हो जाती…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 8, 2018 at 7:30pm — 14 Comments
आज वह बहुत खुश थी, सारे गुलाब बिक गए थे. रात काफी हो चली थी और एक आखिरी गुलाब को पास रखकर वह पैसे गिनने में तल्लीन थी तभी एक कार उसके पास रुकी.
"वो गुलाब देना", अंदर से एक नवयुवक ने आवाज लगायी. उसने एक उड़ती हुई नजर युवक पर डाली और उसकी बात अनसुना करते हुए वापस पैसे गिनने में लग गयी.
"अरे सुना नहीं क्या, वो गुलाब तो दे, कितने पैसे देने हैं", युवक ने इस बार थोड़ी ऊँची आवाज में कहा, उसके स्वर में झल्लाहट टपक रही थी.
उसने सर उठाकर युवक को देखा और पैसे अपनी थैली में रखते हुए बोली…
Added by विनय कुमार on February 8, 2018 at 6:00pm — 14 Comments
बहर :-1212-1122-1212-22
गरीब वो हैं कि जिनका मकां नहीं मिलता।।
अमीर वो जो कभी खामखां नहीं मिलता।।
कोई भी शख़्स मुझे खुश नुमां नहीं मिलता।।
मुझे तो दर्द भी हँस कर मियां नहीं मिलता।।
मैं ढूंढता हूँ खुद का निशाँ नहीं मिलता।।
शह्र में तेरे मिरा हम जुबाँ नहीं मिलता।।
मिले बहुत से मगर और बात है तुम में।।
तुम्हारे जैसा कोई खुशनुमां नहीं मिलता।।
कसम भी प्यार में खाई कसम को तोड़ा भी।
हाँ यार…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on February 8, 2018 at 5:55pm — 8 Comments
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