For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122, 1122, 1122, 22

है दुआ तुझसे यूँ चमका दे मुक़द्दर मौला
कर दे ईमाँ से मेरे दिल को मुनव्वर मौला

अबरहा चल पड़ा है आज सितम ढाने को
भेज दे फिर से अबाबीलों का लश्कर मौला

मोड़ कर पैरों को सीने से लगा रक्खा है
फिर भी छोटी ही पड़े मेरी ये चादर मौला

होंगी कितनी हसीं जन्नत की वो हूरें आख़िर
सोचता रहता हूँ ये बात मैं अक्सर मौला

ज़िन्दगी कट तो गयी पर मैं जिसे अपना कहूँ
ऐसा इक पल न हुआ मुझ को मयस्सर मौला

इतनी दुश्वारियाँ आती हैं मेरी राहों में
लगने लगता है मुझे दरिया समंदर मौला

मेरे अशआर हुकूमत करें सब के दिल पर
तू बना दे मुझे इक ऐसा सुख़नवर मौला

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 538

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Md. Anis arman on July 13, 2021 at 1:24pm

जनाब लक्ष्मण धामी साहब ग़ज़ल तक आने और पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 13, 2021 at 9:24am

आ. भाई अनीस जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Md. Anis arman on July 10, 2021 at 3:10pm

जनाब उस्ताद समर कबीर साहब ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, आपकी इनायत है आपकी मुहब्बत हमेशा मुझे भिगोती रहे (aamin)

Comment by Md. Anis arman on July 10, 2021 at 3:07pm

जनाब अमीरुद्दीन अमीर साहब ग़ज़ल तक आने और पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on July 10, 2021 at 2:56pm

जनाब अनीस अरमान जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल कही आपने,मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 9, 2021 at 10:41pm

जनाब अनीस अरमान साहिब आदाब, रूहानी जज़्बात की अक्कासी करती ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

तीसरे शे'र में 'चादर' को चद्दर करना बहतर होगा। सादर। 

 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service