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कविता = कहाँ आज़ाद हैं हम

कविता = कहाँ आज़ाद हैं हम

कहाँ आज़ाद हैं हम

हजारों हर तरफ ग़म

भ्रष्टाचार के टीले - पहाड़

और जनता की नित हार

अवनति…

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Added by Abhinav Arun on August 14, 2011 at 1:39pm — 16 Comments

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष गीत: सारा का सारा हिंदी है -----संजीव 'सलिल'

 

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष गीत:



सारा का सारा हिंदी है…

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Added by sanjiv verma 'salil' on August 13, 2011 at 8:30am — 3 Comments

कविता- अनुभूत पपड़ियों का महाकाव्य !

कविता-  अनुभूत पपड़ियों का महाकाव्य !…

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Added by Abhinav Arun on August 12, 2011 at 7:37pm — 8 Comments

शौक (झलकी) भाग-२

गतांक से आगे ...
शौक (झलकी) भाग-२
.
सोनू प्रवेश कर विनोदजी को नमस्ते कर अपने कमरे में प्रवेश कर जाता है.
रंजना-          आप तो इंजिनियर बन गए हैं, वो भी एक बड़ी कम्पनी में.
विनोदजी-     यह सब आप सभी के आशीर्वाद का फल है भाभी जी. वही तो अभी बात हो रही थी कि रामदीन भी तो…
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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 12, 2011 at 9:00am — 1 Comment

१५ अगस्त

फिर आ रहा है १५ अगस्त. फिर से उस दिन सुबह उठते ही हम देश प्रेम के गीत को सुनेगे | सारे समाचार,टीवी चैनल सब जगह देश प्रेम की बाते की जायेगी, स्कुलो में भी गली के सबसे भ्रष्ठ नेता जी को देश प्रेम का भाषण देने के लिए बुलाया जाएगा | टीवी चैनल्स पर देश प्रेम की फ़िल्म लगाई जायेगी,दया करुणा प्रेम भाईचारे के साथ रहने की कसम खाई जायेगी. पूरा देश,देशभक्ति के रंग में डूब जाएगा..और जैसे…

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Added by Tapan Dubey on August 12, 2011 at 2:00am — 3 Comments

धारावाहिक कहानी :- मिशन इज ओवर (अंक-3)

मिशन इज ओवर (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

अंक 1 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

अंक 2 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

अंक - तीन

विकास के पूछने पर अली ने कहा- 'एड्स के मामले में भला मैं क्या बोल सकता हूँ?...........सच पूछो तो गाँव में इसका रहना उचित भी नहीं है…

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Added by satish mapatpuri on August 11, 2011 at 11:30pm — 2 Comments

दोहा सलिला: गले मिले दोहा यमक... संजीव 'सलिल'





दोहा सलिला:

गले मिले दोहा यमक...

संजीव 'सलिल'


*

गले मिले दोहा यमक, झपक लपक बन मीत.

गले भेद के हिम शिखर, दमके श्लेष सुप्रीत..


गले=कंठ, पिघले.



पीने दे रम जान अब, ख़त्म हुआ रमजान.

कल पाऊँ, कल का पता, किसे? सभी अनजान..


रम=शराब, जान=संबोधन, रमजान=एक महीना, कल=शांति, भविष्य.



अ-मन नहीं उन्मन मनुज, गँवा अमन बेचैन.

वमन न चिंता का किया, दमन सहे क्यों चैन??


अ-मन=मन…

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Added by sanjiv verma 'salil' on August 11, 2011 at 10:00am — 7 Comments

धारावाहिक कहानी :- मिशन इज ओवर (अंक-२)

मिशन इज ओवर (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

अंक -१ पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

  • अंक - दो

                   इंसान अगर जीने का मकसद खोज ले तो निराशा स्वत: दम तोड़ देगी. विकास को निराशा के गहरे अँधेरे कुंए में आशा की एक टिमटिमाती रोशनी नज़र आई,उसने मन ही मन सोचा -" क्यों न एड्स के साथ जी रहे लोगों के पुनर्वास और उनके प्रति लोगों के दृष्टिकोण में…

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Added by satish mapatpuri on August 11, 2011 at 1:00am — 5 Comments

‘तुर्रीधाम में पहाड़ का सीना चीर बहती है अनवरत जलधारा’

देश में ऐसे अनेक ज्योतिर्लिंग है, जहां दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। भक्तों में असीम श्रद्धा भी देखी जाती है। सावन के महीने में शिव मंदिरों की महिमा और ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि इस माह जो भी मन्नतें सच्चे मन से मांगी जाती है, ऐसी मान्यता है, वह पूरी होती हैं। लोगों में भगवान के प्रति अगाध आस्था ही है, जहां हजारों-लाखों की भीड़ खींची चली आती है।

ऐसा ही एक स्थान है, तुर्रीधाम। छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के सक्ती क्षेत्र अंतर्गत ग्राम तुर्री स्थित है। यहां भगवान शिव का एक ऐसा… Continue

Added by rajkumar sahu on August 10, 2011 at 10:25pm — No Comments

ऐ मेरे वतन के लोगों ....

 

 

 

फिर नज़दीक आती स्वतंत्रता दिवस की एक और वर्षगाँठ और मन  में उठते सवालों का बवंडर ,क्या यह पूर्ण स्वतंत्रता है  या क्या येही स्वतंत्रता है ? की जब जिसे चाहो लूट लो ,मार दो ,उजाड़ दो ? या फिर ..आज शहीदों को नमन करो कल भूल जाओ ? या फिर गरीबों की सहायता करने के झूठे वादे करो ,अपना मतलब साधो और…

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Added by Lata R.Ojha on August 10, 2011 at 10:00pm — No Comments

शौक (झलकी) भाग-१

शौक (झलकी) भाग-१
  • लेखक :-अतेन्द्र कुमार सिंह"रवि"
.
रामदीन-    अजी सुनती हो ,सोनू कहाँ है ? जरा उसे आवाज़ तो देना ---
रंजना-       (घर के अन्दर से आवाज़ आती है )
                 घर में तो नहीं है ........
रामदीन-   (घर में जाकर)
                शहर से हमारे सहपाठी श्री विनोद जी , जो एक बड़ी कम्पनी में इंजिनियर है आज वो…
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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 10, 2011 at 10:30am — 4 Comments

चुड़ैल

 

            मै पश्चिम वाली कोठरी में आलमारी पर पड़े सामानों को इधर-उधर कर के देख रहा था| तभी मेरी नज़र एक निमंत्रण कार्ड पर पड़ी| कार्ड के ऊपर देखने पर पता चला की वो निमंत्रण भैया के नाम से था, प्रेषक वाली जगह के नाम से मै अनजान था| कौतुहल वश मैंने बड़ी आसानी से अन्दर के पत्र को निकाल कर देखा, अगले दिन बारात आने वाली थी| दर्शनाभिलाषी में पढने पर ज्ञात हुआ की वह निमंत्रण भैया के एक मित्र के बहन की शादी का था| मै और भैया एक ही स्कूल में पढ़े थे और उनके लगभग सारे मित्र मुझे भी…

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Added by आशीष यादव on August 10, 2011 at 10:00am — 11 Comments

धारावाहिक कहानी :- मिशन इज ओवर (अंक-१)

मिशन इज ओवर (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

  • अंक - एक

                                 अनायास विकास एक दिन अपने गाँव लौट आया. अपने सामने अपने बेटे को देखकर भानु प्रताप चौधरी के मुँह से हठात निकल गया -"अचानक ..... कोई खास बात ......?" घर में दाखिल होते ही प्रथम सामना पिता का होगा, संभवत: वह इसके लिए तैयार न था, परिणामत: वह पल दो पल के लिए सकपका गया ............. किन्तु, अगले ही क्षण स्वयं को नियंत्रित कर तथा अपनी बातों में सहजता का पुट डालते…

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Added by satish mapatpuri on August 10, 2011 at 1:30am — 6 Comments

ग़ज़ल :- हथेली पे कैक्टस उगाने से पहले

ग़ज़ल :- हथेली पे कैक्टस उगाने से पहले

 

हथेली पे कैक्टस उगाने से पहले ,

ज़रा सोचना तिलमिलाने से पहले |

 

मोहब्बत से तौबा तो …

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Added by Abhinav Arun on August 9, 2011 at 7:00am — 19 Comments

ग़ज़ल :- मत फलक पर चाँद तारे बोइये

ग़ज़ल :- मत फलक पर चाँद तारे बोइये

मत फलक पर चाँद तारे बोइए ,

रख परे सपनों को चुपकर सोइए |…

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Added by Abhinav Arun on August 8, 2011 at 2:37pm — 8 Comments

मित्र दिवस का अभिनन्दन

भारत देश के सब मित्रों का,
अन्तःमन से अभिनंदन है.
नैतिक मूल्यों को सदा समर्पित,
विश्व हेतु यह आह्वाहन आयी.

आओ हम इस मानवता को,
सत्य प्रेम नव पाठ पढ़ा दें,
भ्रष्ट अनैतिक आतंको का, 
दुनिया से अब नाम मिटा दें.

करें मित्रता हम सब मिलकर,
विश्व एक परिवार बनाकर,
आज मित्र दिवस के अवसर पर, 
यही सभी से अर्चन है.

Added by vishnukantmisra on August 7, 2011 at 11:00am — No Comments

गौरवान्ज्जली - शहीद की पत्नी के नाम एक पत्र

 अपने मन को मुर्झाने मत देना 

अपने बच्चों की दुनियाँ को कुम्हलाने मत देना 

बच्चे यदि पापा से मिलने को मचलें ,तो उन्हें ,

समन्दर की लहरें दिखा लाना ,

बगीचे में जाकर फूलों की खुशबू सुंघा लाना |

 

क्या हुआ जो एक जिन्दगी ने 

'अपने अनगिनत बसंत देश के नाम लिख दिए ?                        

लोग पतंगों की मानिंद जी कर…

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Added by mohinichordia on August 7, 2011 at 10:00am — 2 Comments

हर हाल में चलो

 

“.....चलो....... चलो हर हाल में चलो ”

पाँव फिसले जमीं पर तो घबराना क्या....

आसमां से कदम तुम मिलाते चलो ...

 

लाख तोड़े समंदर घरोंदे तो क्या ...

रेत के फिर भी घर तुम बनाते चलो…

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Added by प्रदीप सिंह चौहान on August 6, 2011 at 4:00pm — 4 Comments

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