ग़ज़ल :- हथेली पे कैक्टस उगाने से पहले
हथेली पे कैक्टस उगाने से पहले ,
ज़रा सोचना तिलमिलाने से पहले |
मोहब्बत से तौबा तो कब का किया है ,
संभलना भला चोट खाने से पहले |
सियासत के रंग में सभी रंग गए हैं ,
गले मिल रहे दिल मिलाने से पहले |
गिरेबाँ में अपने ज़रा झाँक लेना ,
किसी दोस्त को आज़माने से पहले |
वो अक्सर हवाओं के रुख़ देखता है ,
पतंगों से पेंचें लड़ाने से पहले |
घरों से सभी पिंजरों को हटा दो ,
परिंदों को दाना खिलाने से पहले |
नहीं जानना आसमाँ की ऊँचाई ,
मेरे पंख के फड़फड़ाने से पहले |
सलीके के दो चार मिसरे सुना दो ,
उन्हें तुम अलिफ़ बे पढ़ाने से पहले |
- अभिनव अरुण
Comment
bahut khoob gazal kahi hai janaab .......kshama chahta hun der se dekhne ke liye
शुक्रिया श्री श्यामल जी !!आपका स्नेह बना रहे !!
सियासत के रंग में सभी रंग गए हैं ,
गले मिल रहे दिल मिलाने से पहले |
...वाह... भाई अभिनव अरुण जी... बहुत जीवंत गजल... बधाई...
वो अक्सर हवाओं के रुख़ देखता है ,
पतंगों से पेंचें लड़ाने से पहले |
घरों से सभी पिंजरों को हटा दो ,
परिंदों को दाना खिलाने से पहले |.............waaaaaaaaaaaaaaaaaah.............zabardast......kya kahna..........
abhaar aashish जी ! आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा प्रयास सार्थक हुआ |
सियासत के रंग में सभी रंग गए हैं ,
गले मिल रहे दिल मिलाने से पहले |
सलीके के दो चार मिसरे सुना दो ,
उन्हें तुम अलिफ़ बे पढ़ाने से पहले |
अरुण सर, बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने| मुझे हर शे'र पसंद आया|
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