For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता- अनुभूत पपड़ियों का महाकाव्य !

कविता-  अनुभूत पपड़ियों का महाकाव्य !

 

सोचना उन भाईयों की जिनकी बहने नहीं हैं

हो सके तो सोचना उन पुत्रों की जिनकी माएं भी नहीं

सोचना क्या मायने होते होंगे रिश्तों के उनके लिए |

कभी सोचना उनकी जिनकी होली दिवाली नहीं होती

जो जी चुराते हैं समाज और समाज के समाजवाद से

जिनके लिए कोइ अर्थ नहीं किसी के होने या खोने का

सूखे कबके जिनके आंसू

अब तकिये नहीं भींगते किसी रात क्योंकि आदत सी हो गयी है

बिना रिश्तों के लिहाफ के खुली छत को निहारने की

और जिनके चाँद तारे रोज़ ही ढंके होते हैं काले बादलों की ओट में

सोचना क्यों कुछ लोग लिखते हैं एकांत की कवितायें

क्यों करते हैं बातें साम्यवाद और सर्वहारा वर्ग की

क्यों उन्हें भाते हैं गोर्की चे-गवेरा और ईसा के वृत्तांत

क्यों गढ़ते हैं वे सलीब अपनी हर रात हर दिन के लिए

और क्यों खाते हैं अपने सीने पर बोलियों की गोली

सोचना क्योंकि ऐसा हर व्यक्ति लिखता नहीं कवितायें

और लिखता तो तुम तक पहुंचा नहीं पाता

सोचना क्योंकि मुश्किल होता है राग में विराग का गान

इस भान के साथ कि शायद इसे असामयिक भी समझ लिया जाए

या मखौल भी बन जाए इसका

क्योंकि हर केक्टस में फूल नहीं खिलते

और नखलिस्तान में कोई एक ही होता है कवि

जो लिखता है अपने लहू से अनुभूत पपड़ियों का महा काव्य  |

                                                 -- अभिनव अरुण

Views: 399

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on August 14, 2011 at 11:26am
 आभार सतीश जी ! आपकी टिप्पणी मेरे लिए हौसले से कम नहीं !
Comment by satish mapatpuri on August 14, 2011 at 2:14am

क्योंकि हर केक्टस में फूल नहीं खिलते

और नखलिस्तान में कोई एक ही होता है कवि

जो लिखता है अपने लहू से अनुभूत पपड़ियों का महा काव्य |

बहुत खूब अभिनवजी, उत्कृष्ट प्रस्तुति. साधुवाद.

Comment by Abhinav Arun on August 13, 2011 at 3:48pm
आपके इस अनुमोदन के लिए आभार आदरणीय श्री सौरभ जी |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2011 at 3:06pm

प्रश्नों के प्रस्तुत समूह पर निरुत्तर होना इन प्रश्नों की आवृति और उनकी गंभीरता का अनुमोदन है.

बहुत खूब.. शुभेच्छा

 

Comment by Abhinav Arun on August 13, 2011 at 12:15pm
आभार गणेश जी बागी जी कविता आपको पसंद आयी लेखन सार्थक  हुआ  | सही कहा यह सामयिक सन्दर्भों का विरह गान है सहज और बिना  बनाव   श्रृंगार के ... नैसर्गिक |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 12, 2011 at 9:36pm

प्राकृतिक रूप से ह्रदय से निकलते भाव जिसमे कोई बनावट नहीं, कोई मिलावट नहीं, कोई सजावट नहीं, बिलकुल स्वाभाविक अभिव्यक्ति हेतु बहुत बहुत बधाई अभिनव अरुण जी |

Comment by Abhinav Arun on August 12, 2011 at 8:05pm

गुरु जी साधुवाद !! आभारी हूँ उत्साह वर्धक टिप्पणी के लिए !!!

Comment by Rash Bihari Ravi on August 12, 2011 at 7:44pm

हो सके तो सोचना उन पुत्रों की जिनकी माएं भी नहीं

सोचना क्या मायने होते होंगे रिश्तों के उनके लिए |

कभी सोचना उनकी जिनकी होली दिवाली नहीं होती

जो जी चुराते हैं समाज और समाज के समाजवाद से

जिनके लिए कोइ अर्थ नहीं किसी के होने या खोने का

 

sir har ek sabd apne aap kuchh kah rahe hain 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय रवि शुक्ला जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
44 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar updated their profile
57 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"भाई मयंक जी, व्यवहार में निरमलता व विनम्रता ही ज्ञान का परिचय देती । सभी वरिष्ठों का आशीष बना रहे…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मंच के सभी सदस्यों को सादर अभिवादन। कई बार मन में आया कि मंच से वरिष्ठ व अनभवी और मार्गदर्शक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय नीलेश भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सलाह के लिए आपका आभार  आपकी दोनों सलाह अच्छी हैं ,…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय रवि भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. गिरिराज जी समर सर ग़ज़ल पर कह ही चुके हैं. बादल वाले शेर को यूँ कर के देखें... बूँद जो बारिश…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"आ. मयंक जी,आप जैसे युवाओं को ग़ज़ल कहने का प्रयास करते देख कर बहुत अच्छा लगता है.आप को अभी और समय…"
2 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सादर प्रणाम सर जी 🙏 मैं मयंक कुमार द्विवेदी इस मंच पर बहुत पहले से जुड़ा हूँ और इस मंच से जुड़ने के…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सुशील जी सुदंर कुडलिया छंद की प्रस्तुति के लिये बधाई "
2 hours ago
Ravi Shukla commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . उल्फत
"आदरणीय सुशील जी दोहो की प्रस्तुति के लिये ेबहुत बहुत बधाई दोहो में कुछ कल संयोजन पर काम…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाई जी  ग़ज़ल पेश करने के लिये आपको बहुत बहुत बधाई । चरचा  पढने…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service