ग़ज़ल :- मत फलक पर चाँद तारे बोइये
मत फलक पर चाँद तारे बोइए ,
रख परे सपनों को चुपकर सोइए |
है बहुत आसान टीका टिप्पणी ,
आईने से पेश्तर मुंह धोइए |
मछलियों का रूप आकर्षक है पर ,
तलहटी में मूंगे मोती टोइए |
अब सियासत का कोई मकसद नहीं ,
नोट के बदले में इज्ज़त खोइए |
आज चौराहे पे सच की लाश है ,
और घर घर में रूई के लोइए |
डर से मुश्किल है रहूँ खामोश मैं ,
आप ही ऐसी रवायत ढोइए |
हाथ खाली ही चले जाना मियाँ ,
किसकी खातिर और क्योंकर रोइए |
दर्द की कीलें भी देती हैं सुकून ,
आप ईसा की तरह तो होइए |
- अभिनव अरुण
Comment
वाह वाह वाह इन दो शेर ने तो ऐसा बाँधा लिया है कि आगे बढ़ने का मन ही नहीं कर रहा था
बहुत खूब अभिनव जी
मत फलक पर चाँद तारे बोइए ,
रख परे सपनों को चुपकर सोइए |
है बहुत आसान टीका टिप्पणी ,
आईने से पेश्तर मुंह धोइए |
दर्द की कीलें भी देती हैं सुकून ,
आप ईसा की तरह तो होइए |
अभिनव भाई, बेहद गंभीर प्रकृति की ग़ज़ल कही है आपने , दाद कुबुल किजिये |
पुनः एक बार आभार .... ह्रदय से ! गुरु जी आपका स्नेह बना रहे !!
दर्द की कीलें भी देती हैं सुकून ,
आप ईसा की तरह तो होइए |
kya bat hain sir ji bahut sundar
हाथ खाली ही चले जाना मियाँ ,
किसकी खातिर और क्योंकर रोइए |
धन्यवाद अभिनवजी, बहुत खुबसूरत ख्याल है I
kuchh isi bahar par tippani ka prayaas kiya hu.
margdharshan kare.
इस ग़ज़ल में सच में गूढ़ तत्व है|
पढ़ के पाए मोति, ना पढ़ कर खोइए||
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