For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धारावाहिक कहानी :- मिशन इज ओवर (अंक-१)

मिशन इज ओवर (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

  • अंक - एक

                                 अनायास विकास एक दिन अपने गाँव लौट आया. अपने सामने अपने बेटे को देखकर भानु प्रताप चौधरी के मुँह से हठात निकल गया -"अचानक ..... कोई खास बात ......?" घर में दाखिल होते ही प्रथम सामना पिता का होगा, संभवत: वह इसके लिए तैयार न था, परिणामत: वह पल दो पल के लिए सकपका गया ............. किन्तु, अगले ही क्षण स्वयं को नियंत्रित कर तथा अपनी बातों में सहजता का पुट डालते बोला - " ख़ास तो कुछ नहीं पिताजी, एम०ए० की पढ़ाई ख़तम कर गाँव में ही रहकर कुछ करने का विचार है, सो वापस आ गया.क्या करना ठीक होगा, इस पर आपसे राय - विचार करूंगा." पिताजी के चेहरे का भाव पढ़ने की ज़हमत उठाये बिना वह अपनी माँ से मिलने भीतर चला गया.बेटे के इस बदलाव पर चौधरी साहेब को सुखद आश्चर्य हुआ.भानु प्रताप चौधरी के पास खेती -बारी की अच्छी -खासी ज़मीन थी,इसके अलावा लम्बा-चौड़ा कारोबार भी था.वह शुरू से ही चाहते थे कि विकास अपनी पढ़ाई पूरी करके गाँव में ही रहकर उनकी मदद करे.माँ भी विकास की यह बात सुनकर निहाल हो उठीं.उन्हें अपनी कोख पर गर्व हो आया,होता भी क्यों नहीं ...............? पिताश्री की आज्ञा का लफ्ज़- ब-लफ्ज़ पालन कर विकास ने सपूत होने का प्रमाण जो दिया था.

 

माता -पिता को निहाल कर विकास जब अपने कमरे में आया तो वह हकीकत उसे पुन: गलबाँही देने लगी, जिसे बार -बार झटकने का नाकाम प्रयास पिछले कई दिनों से वह करता आ रहा था. सच से भाग रहे इंसान को एकांत काट खाने को दौड़ता है. न चाहते हुए भी विकास के मानस -पटल पर अतीत सजीव हो उठा ...............................एम ० ए० की परीक्षा के दौरान ही विकास की तबीयत खराब होने लगी थी. दवा खा -खा कर जैसे -तैसे उसने परीक्षा दी थी. ......................... परीक्षा ख़तम होते ही वह डॉक्टर से मिला ................. चिकित्सा -क्रम में ही जांचोपरांत उसे एच ० आई ० वी० पौजेटिव करार दे दिया गया था. डॉक्टर ने उसे काफी ऊँच-नीच समझाया था ............. ढाढ़स बंधाया था ,पर एड्स का नाम सुनकर विकास सूखे पत्ते की तरह काँप उठा. वह जानता था ................ एड्स के साथ जीने वालों को समाज किस तरह अपने से दूर कर देता है ........... किस तरह उनकी उपेक्षा की जाती है ................ लोग किस तरह उनसे कटने लगते हैं ........... घृणा करने लगते हैं. लगभग घसीटते हुए उस दिन वह खुद को हॉस्टल तक ला पाया था.उसे आज भी अच्छी तरह याद है, कई दिनों तक अपने कमरे से बाहर नहीं निकला था.हर पल एक ही प्रश्न उसके दिलो -दिमाग में कौंधता रहता ................ अब क्या होगा .....? ............... निराशा के गर्त्त में उसका वजूद कतरा - कतरा डूबता जा रहा था कि अचानक उसका विवेक जाग उठा ................ मरने से पहले क्यों मरना ? जिजीविषा ने उसका दामन थाम लिया ................... जीवन कभी निरर्थक नहीं होता ............... हर जीवन का कोई मकसद होता है ....... . वह मन ही मन बुदबुदा उठा ................. क्या मेरे जीवन का भी कोई मकसद है ? ................. आभास हुआ ,कोई मद्धिम, पर दृढ़ स्वर में कह रहा है ......... निःसंदेह .......... पर वो मकसद है क्या ---- ??????????

Views: 404

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 11:31pm

बहुत अच्छी कहानी लिखी आपने !बहुत बहुत बधाई आपको !  किसी भी परिस्थिति में इंसान को हार नहीं माननी चाहिए विकट से विकट स्थिति में भी इंसान को जीने के लिए कोई न कोई मिशन मिल ही जाता है ! :-)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2011 at 4:08am

आपकी बात और सन्निहित तथ्य को मैं सादर स्वीकार करता हूँ. यह वस्तुतः एक लेखक की सोच और उसकी सोच को संतुष्ट करते उसके शब्द होते हैं जो किसी कथा को गति देते हैं. प्रस्तुत कहानी के लेखक के अनुसार तथा कहानी के कथ्य के हिसाब से भी ’अनायास’ शब्द उचित है तो एक पाठक को इस ’अनायास’ के ’संदर्भ’ मिल जाने चाहिये थे. चूँकि कहानी ’अनायास’ शब्द से प्रारम्भ होती है और इसका पूर्व संदर्भ उपलब्ध नहीं हो सकता, अतः मैं आपसे ’अचानक’ शब्द हेतु आग्रह कर बैठा था.

 

कहानी को आगे पढ़ने के क्रम में मुझे एक पाठक के तौर पर यह अहसास हुआ है कि नायक का शहर से गाँव आ जाना पारिस्थिक अधिक है. सो उसका ’अनायास’ ही आना हुआ है.

 

मैं कहानी की प्रथम को पंक्ति को अब कुछ यों पढ़ रहा हूँ - विकास एक दिन अनायास ही अपने गाँव लौट आया.   इसतरह, ’अनायास’ के संदर्भ की आवश्यकता नहीं होती और कहानी पाठक को अगले परिदृश्य के लिये तैयार कर देती है.

 

वैसे कथ्य और शिल्प के लिहाज से देखा जाय तो कहानी आवश्यक उत्सुकता जगा सकने में पूरी तरह से सफल है. इस हेतु बधाई.

सादर

 

Comment by satish mapatpuri on August 12, 2011 at 11:44pm
परम आदरणीय एवं अभिन्न सौरभ जी, सर्वप्रथम कहानी तथा कथ्य की सराहना के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद. आपने "अनायास" के सम्बन्ध में जो सुझाव दिया है,उसके लिए आभार.सच मानें,इस कहानी को प्रारम्भ करते समय मैंने "अचानक" शब्द का ही प्रयोग किया था,किन्तु जैसे -जैसे कहानी आगे बढ़ने लगी- "अचानक" शब्द का प्रयोग मुझे खटकने लगा. मुझे ऐसा लगा कि अगर बेटा अचानक शहर से आकर बाप के सामने खड़ा हो जाता है तो बाप के चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता होगी जिसे देखकर बेटा का चेहरा भी खिल उठेगा कि इस तरह आकर मैंने SURPRISE दिया. कहानी के भाव से स्वत: स्पष्ट है कि पिता की ईच्छा के विरुद्ध वह शहर में रहना चाह रहा है. वह गाँव आने को नहीं सोचा था, पर परिस्थितिवश अनायास आना पड़ा.और "अनायास" शब्द का प्रयोग मुझे समुचित लगा. मेरी इस सोच को अगर आपकी सहमति प्राप्त होती है तो मुझे लगेगा कि मैंने शब्द और कथ्य दोनों के साथ न्याय किया है.उम्मीद है आगे भी आपका कृपापूर्ण मार्गदर्शन मिलता रहेगा.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 12, 2011 at 2:50pm

बहुत ही सशक्त तरीके से आपने इस कहानी के कथ्य को उठाया है सतीशभाईजी.बहुत-बहुत बधाई.

 

एक बात: आपने इस कहानी का प्रारम्भ ही शब्द ’अनायास’ से किया है. यह अचानक के पर्याय के रूप में आया है क्या? तो फिर इसे कृपया ’अचानक’ ही कर दें. ..

 

सादर.

Comment by satish mapatpuri on August 10, 2011 at 10:47pm

बहुत -बहुत शुक्रिया गुरूजी, कोशिश करूँगा की जिस तरह आपको आगाज़ पसंद आया, अंजाम भी पसंद आये

Comment by Rash Bihari Ravi on August 10, 2011 at 1:58pm

suruaat to bahut achchha hain sir

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
3 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
14 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
21 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
26 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
32 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
39 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
52 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
58 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
1 hour ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service