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‘तुर्रीधाम में पहाड़ का सीना चीर बहती है अनवरत जलधारा’

देश में ऐसे अनेक ज्योतिर्लिंग है, जहां दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। भक्तों में असीम श्रद्धा भी देखी जाती है। सावन के महीने में शिव मंदिरों की महिमा और ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि इस माह जो भी मन्नतें सच्चे मन से मांगी जाती है, ऐसी मान्यता है, वह पूरी होती हैं। लोगों में भगवान के प्रति अगाध आस्था ही है, जहां हजारों-लाखों की भीड़ खींची चली आती है।
ऐसा ही एक स्थान है, तुर्रीधाम। छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के सक्ती क्षेत्र अंतर्गत ग्राम तुर्री स्थित है। यहां भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है, जहां पहाड़ का सीना चीर अनवरत जलधारा बहती रहती है। खास बात यह है कि यह जलधारा कहां से बह रही है, अब तक पता नहीं चल सका है। आज भी यह शोध का विषय बना हुआ है कि आखिर पहाड़ी क्षेत्रों से पानी का ऐसा स्त्रोत कहां से है, जहां हर समय पानी की धार बहती रहती है।
दिलचस्प बात यह है कि बरसात में जलधारा का बहाव कम हो जाता है, वहीं गर्मी में जब हर कहीं सूखे की मार होती है, उस दौरान जलधारा में पानी का बहाव बढ़ जाता है। इसके अलावा जलधारा के पानी की खासियत यह भी है कि यह जल बरसों तक खराब नहीं होता। यहां के रहवासियों की मानें तो 100 साल बाद भी जल दूषित नहीं होता। यही कारण है कि तुर्रीधाम के इस जल को ‘गंगाजल’ के समान पवित्र माना जाता है और जल को लोग अपने घर ले जाने के लिए लालायित रहते हैं।
एक बात और महत्वपूर्ण है कि शिव मंदिरों में जब भक्त दर्शन करने जाते हैं तो वहां भगवान शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं, मगर यहां कुछ अलग ही है। जलधारा के पवित्र जल को घर ले जाने श्रद्धालुओं में जद्दोजहद मची रहती है तथा वे कोई न कोई ऐसी सामग्री लेकर पहुचंते हैं, जिसमें जल भरकर ले जाया जा सके। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण तुर्रीधाम में दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश, झारखंड, उड़ीसा तथा बिहार समेत अन्य राज्यों से भी दर्शनार्थी आते हैं और यहां के मनोरम दृश्य देखकर हतप्रद रह जाते हैं। यहां की अनवरत बहती ‘जलधारा’ सहसा ही किसी को आकर्षित कर लेती हैं। साथ ही लोगों के मन में समाए बगैर नहीं रहता और जो भी एक बार तुर्रीधाम पहुंचता है, वह यहां दोबारा आना चाहता है।
करवाल नाले के किनारे स्थित तुर्रीधाम में भगवान शिव का मंदिर है। यहां अन्य और मंदिर है, जो पहाड़ के उपरी हिस्से में स्थित है। अभी सावन महीने में भी हर सोमवार को ‘तुर्रीधाम’ में हजारों की संख्या में पहुंचे। इस दौरान यहां 15 दिनों का मेला लगता है, जहां मनोरंजन के साधन प्रमुख आकर्षण होता है। महाशिवरात्रि में भी भक्तों की भीड़ रहती है और सावन सोमवार की तरह उस समय भी दर्शन के लिए सुबह से देर रात तक भक्तों की कतार लगी रहती हैं।
किवदंति है कि ‘तुर्रीधाम’ में बरसों पहले एक युवक को सपने में भगवान शिव ने दर्शन दिए और कुछ मांगने को कहा। उस समय ग्राम - तुर्री में पानी की समस्या रहती थी और गर्मी में हर जगह पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची रहती थी। भगवान शिव को उस युवक ने ‘पानी-पानी’ कहा और एक जलधारा बहने लगी, जिसकी धार अब तक नहीं रूकी है। इसके बाद से यहां भगवान शिव का मंदिर बनवाया गया। इस तरह तुर्री ने एक धाम का रूप ले लिया और भक्तों की श्रद्धा भी बढ़ने लगी। लोगों की भक्ति इसलिए और बढ़ जाती है, क्योंकि तुर्री में पानी की समस्या अब कभी नहीं हुई। साथ ही गर्मी में जलधारा के पानी का बहाव तेज होना भी लोगों की जिज्ञासा का विषय बना हुआ है।
तुर्रीधाम मंदिर की व्यवस्था समिति के सदस्य कृष्णकुमार जायसवाल ने बताया कि तुर्रीधाम के भगवान शिव के दर्शन से संतान प्राप्ति होती है। इसी के चलते छग के अलावा दूसरे राज्यों बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश समेत अन्य जगहों से भी निःसंतान दंपती भगवान शिव के दर्शनार्थ पहुंचते हैं। तुर्रीधाम में जो जलधारा बहती है, वह प्रकुति उपहार होने के कारण इसे देखने वाले वैसे तो साल भर आते रहते हैं, मगर सावन महीने के हर सोमवार तथा महाशिवरात्रि पर भक्तों की भीड़ हजारों की संख्या में रहती है। अपनी खास विशेषताओं के कारण ही आज ‘तुर्रीधाम’ की छग ही नहीं, वरन देश के अन्य राज्यों में भी अपनी एक अलग पहचान है।

लेखक राजकुमार साहू जांजगीर, छत्तीसगढ़ में इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार हैं। पिछले दस बरसों से पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े हुए हैं तथा स्वतंत्र लेखक, व्यंग्यकार व ब्लॉगर हैं।

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा - 098934-94714

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