२२२ २२२ २२
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ये मत पूछो क्या-क्या निकला,
आँसू का इक दरया निकला
हम उसके दिल से यूँ निकले
जैसे कोई काँटा निकला
जिसको जितना गहरा समझे
वो उतना ही उथला निकला
हिज्र की शब की बात बताऊँ ?
सदियों जैसा लम्हा निकला
दुनिया का ग़म, आहें, तड़पन
दिल से कितना मलबा निकला ....
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on July 8, 2022 at 6:46pm — 5 Comments
कुछ उक्तियाँ
उषा अवस्थी
आज 'गधे' को पीट कर
'घोड़ा' दिया बनाय
कल फिर तुम क्या करोगे
जब रेंकेगा जाय?
कैसे - कैसे लोग है
कैसे - कैसे घाघ?…
Added by Usha Awasthi on July 6, 2022 at 3:30pm — No Comments
बुढ़ापा ....
तन पर दस्तक दे रही, जरा काल की शाम ।
काया को भाने लगा, अच्छा अब आराम ।1।
बीते कल की आज हम, कहलाते हैं शान ।
शान बुढ़ापे की हुई, अपनों से अंजान ।2।
झुर्री-झुर्री पर लिखा, जीवन का संघर्ष ।
जरा अवस्था देखती ,मुड़ कर बीते वर्ष ।3।
देख बुढ़ापा हो गया, चिन्तित क्यों इंसान ।
शायद उसको हो गया, अन्तिम पल का भान ।4।
काया में कम्पन बढी , दृष्टि हुई मजबूर ।
अपनों से अपने हुए, जरा काल में दूर…
Added by Sushil Sarna on July 6, 2022 at 12:30pm — 4 Comments
मैं जताना जानता तो बन बैरागी यूं ना फिरता
मेरे ही ख़िलाफ़ ना होता आज ये उसूल मेरा
मैं ठहरना जानता तो बन के यूं भंवरा ना फिरता
मेरे पग को बांध लेता फिर कोई अरमान मेरा
मैं बताना जानता तो दाग़ लेकर यूं ना…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 6, 2022 at 11:40am — No Comments
दोहे
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मुख सा सम्मुख और के, रखिए शब्द सँवार
सुन्दर शब्दों के बिना, कहते लोग गँवार।१।
*
युद्ध शब्द से जन्मते, और शब्द से शान्ति
महिमा अद्भुत शब्द की, जिससे होती क्रांति।२।
*
कोई शब्दों में भरे, अद्भुत सहज मिठास I
कोई रीता रख उन्हें, देता अनबुझ प्यास।३।
*
कोई सज्जन कह गया, बात बड़ी गम्भीर।
जीवन घायल मत करो, शब्दों को कर तीर।४।
*
कोई छाया दे सदा, कर शब्दों को पेड़।
कोई शब्दों से यहाँ , बखिया देत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2022 at 5:30am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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पथ में कोई सँभालने वाला नहीं हुआ
ये पाँव जानते थे जो छाला नहीं हुआ।।
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कैसा तमस ये साँझ ने आगोश में भरा
इतने जले चराग उजाला नहीं हुआ।।
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कालिख दिलों के साथ में ठूँसी दिमाग में
ऐसे ही मुख ये आप का काला नहीं हुआ।।
*
नेता ने क्या क्या पेट में ठूँसा है देश का
बस आदमी ही उसका निवाला नहीं हुआ।।
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कोशिश बहुत की वैसे तो बँटवारे बाद भी
यह घर किसी भी राह शिवाला नहीं हुआ।।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2022 at 2:19pm — 3 Comments
दोहा मुक्तक ........
कड़- कड़ कड़के दामिनी, घन बरसे घनघोर ।
उत्पातों के दौर में, साँस का मचाए शोर ।
रात बढ़ी बढ़ते गए, आलिंगन के बंध -
पागल दिल को भा गया , दिल का प्यारा चोर ।
* * * * *
एक दिवानी को हुआ, दीवाने से प्यार ।
पलकों में सजने लगा, सपनों का संसार ।
गुपचुप-गुपचुप फिर हुए, नैनों में संकेत -
चरम पलों में हो गए, शर्मीले अभिसार…
Added by Sushil Sarna on July 4, 2022 at 9:38pm — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
*
जब कोई दीवानगी ही आप ने पाली नहीं
जान लो ये जिन्दगी भी जिन्दगी सोची नहीं।।
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पात टूटे दूब सूखी ठूठ जैसे हैं विटप
शेष धरती का कहीं भी रंग अब धानी नहीं।।
*
भर रहे हैं सब हवा में आग जब देखो सनम
फूल होगा याद में बस गन्ध तो होगी नहीं।।
*
तैरती है प्यास आँखों में सभी के रक्त की
हो गये हैं लोग दानव पी रहे पानी नहीं।।
*
राजशाही साम्यवादी लोकशाही दौर सब
भोर सुख की निर्धनों ने पर कहीं देखी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2022 at 7:22pm — 2 Comments
212 212 212 22
इक वहम सी लगे वो भरी सी जेब
साथ रहती मेरे अब फटी सी जेब
ख्वाब देखे सदा सुनहरे दिन के
आँख खुलते मिली बस कटी सी जेब
चैन आराम सब खो दिया तुमने
पास…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 4, 2022 at 9:30am — 6 Comments
सब एक
उषा अवस्थी
सत्य में स्थित
कौन किसे हाराएगा?
कौन किससे हारेगा?
जो तुम, वह हम
सब एक
ज्ञानी वही अज्ञानी भी वही…
Added by Usha Awasthi on July 3, 2022 at 6:56pm — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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पानी नहीं नदी से जिन्हें रेत चाहिए
रचने को सेज अन्न का हर खेत चाहिए।२।
*
औषध नहीं पहाड़ से पत्थर खदान कर
कंक्रीट के नगर को वो समवेत चाहिए।२।
*
दो पल के सुख दे छीनले पूरी सदी को जो
सब को विकास नाम का वो प्रेत चाहिए।३।
*
छाया से पेड़ की नहीं लकड़ी से प्यार है
कुर्सी को जंगलों की सभी बेत चाहिए।४।
*
धरती को नोच चाँद को रौंदा उन्हें यहाँ
रीती नदी में नीर का संकेत चाहिए।५।
*
वैभव नगर का साथ में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2022 at 6:40am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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अब झूठ राजनीति में दस्तूर हो गया
जिस का हुआ विरोध वो मशहूर हो गया।१।
*
जनता के हक में बोलते जो काम बोझ है
नेता के हक में काम वो मन्जूर हो गया।२।
*
कहते हो वोट शक्ति का पर्याय है अगर
क्यों लोक आज देश का मजबूर हो गया।३।
*
जो चाहे मोल दे के करा लेता काम है
कानून जैसे देश का मजदूर हो गया।४।
*
जनता न राजनीति की मन्जिल बनी कभी
उपयोग उस का राह सा भरपूर हो गया।५।
*
होता भला न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 2, 2022 at 3:30am — 2 Comments
सत्य
उषा अवस्थी
असत्य को धार देकर
बढ़ाने का ख़ुमार हो गया है
स्वस्थ परिचर्चा को
ग़लत दिशा देना
लोगों की आदत में
शुमार हो गया है।
असत्य के महल खड़े कर
खिल्ली मत उड़ाओ
अनेकानेक झूठ को
सत्य से,धूल चटाओ
शास्त्र वाक्यों को दोराकर
अभिमान मत जताओ
कर्म में परिणित करो
व्यर्थ मत,समय गँवाओ
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on July 1, 2022 at 7:05pm — 2 Comments
दीवारें हैं छत हैं
संगमरमर का फर्श भी
फिर भी ये मकान अपना घर नहीं लगता
चुकाता हूँ
मैं इसका दाम, हर तारीख पहली…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 1, 2022 at 11:30am — No Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
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सियासत को आता है तलवार पढ़ना
उसे भी सिखाओ तनिक प्यार पढ़ना।।
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किसी दिन सभी कुछ यहाँ फूक देगा
सिखाओ न अब तुम ये अंगार पढ़ना।।
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वही झूठ हर दिन वही दुख भरा है
सुखद कब लगेगा ये अखबार पढ़ना।।
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शिखर खोजते है बहुत लोग लेकिन
किसी को न भाता है आधार पढ़ना।।
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कभी तो पढ़ेगा वो संसार घर हैं
जिसे आ गया घर को संसार पढ़ना।।
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जमाने को अच्छा अगर कर न पाये
समझ लो हुआ सबका बेकार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2022 at 2:53am — 9 Comments
22 22 22 22 22 2
जबसे तुमने मिलना-जुलना छोड़ दिया
यूँ लगता है जैसे नाता तोड़ दिया
मंदिर-मस्जिद के चक्कर में कितनों ने
पुश्तैनी रिश्तों को यूँ ही तोड़ दिया
मुझ पर है इल्ज़ाम कि मैं चुप रहता हूँ
तुम ने भी तो लड़ना-वड़ना छोड़ दिया
मुझको आगे आते जो देखा उसने
ग़ुप-चुप अपनी राहों का रुख़ मोड़ दिया
मुझको बीच समंदर उसने जाने क्यों
लहरों की बाहों में तन्हा छोड़…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 30, 2022 at 10:44pm — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२
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जो नदी की आस लेकर जी रहे हैं
एक अनबुझ प्यास लेकर जी रहे हैं।१।
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है बहुत धोखा सभी की साँस में यूँ
परकटे विश्वास लेकर जी रहे हैं।२।
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जो पुरोधा हैं यहाँ स्वाधीनता के
साथ अनगिन दास लेकर जी रहे हैं।३।
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भोग में डूबे स्वयम् उपदेश देकर
कौन ये सन्यास लेकर जी रहे हैं।४।
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जिन्दगी उन को लुभा ले हर्ष देकर
जो मरण की आस लेकर जी रहे हैं।५।
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एक दिन तो ईश को सुनना पड़ेगा
जीभ में अरदास लेकर जी रहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2022 at 10:50am — 11 Comments
गज़ल
221 2121 1221 212
अख़लाक पर मुहब्बत भरोसा रहा नहीं
हमदम रहा कोई कहाँ जानाँ हुआ नहीं
दिल जानता है तुझसे अभी प्यार भी कहाँ
जो बिक चुका है वो जहाँ तो मन बसा नहीं
लगता उन्हे नहीं है वो दरकार भारती
गर चाहिए है मुल्क तो मौसम रहा नहीं
गुलदस्ता हिन्दुस्तान है था और होगा भी
क़मज़र्फ था सदा वो तो भाई हुआ नहीं
औरंगजेब तेरा तो राणा हमारा है
मत खेल तू ज़मीर से…
Added by Chetan Prakash on June 30, 2022 at 10:00am — 1 Comment
२१२ १२१२ १२१२ १२१२
चाहता रहा उसे मगर न बोल पा रहा
उम्र बीतती रही मलाल सालता रहा
जिंदगी की दोपहर अगर-मगर में रह गयी
शाम की ढलान पर किसे पुकारता रहा ?
बाद मुद्दतों दिखा.. हवा सिहर-सिहर गयी
मन गया कहाँ-कहाँ, मैं बस वहीं खड़ा रहा
आयी और छू गयी कि ये गयी कि वो गयी
मैं इधर हवा-छुआ खुमार में पड़ा रहा
रौशनी से लिख रखा है खुश्बुओं में डूब कर
खत तुम्हारे नाम का.. लिफाफा बेपता रहा !
बादलो, इधर न आ…
Added by Saurabh Pandey on June 27, 2022 at 11:00pm — 15 Comments
ले चल अपने संग हमराही, उन भूली बिसरी राहों में
जहां बिताते थे कुछ लम्हे हम एक दूजे की बाहों में
चल चले उन गलियों में फिर थाम कर एक दूजे का हाथ
क्या पता मिल जाए हमको फिर वो जुगनू की बारात
जहां चाँद की मद्धिम बुँदे वादी से छन कर आती…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 27, 2022 at 12:25pm — 2 Comments
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