[विषम चरण 16 मात्राएँ + यति+ सम चरण 14 मात्राएँ तुकांत पर तीन गुरु (222) सहित]
ओ री सखी नदी तुम भी हो, हुई न तुम वैसी गंदी।
हम सब पर तुम मर मिटती हो, सहकर भी सब पाबंदी।।
धुनाई-धुलाई हर पत्नी की, करते पति बस वस्त्रों सी।
मैल दिखाकर अपने मन का, पिटाई करते जब बच्चों सी।।
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ताक-झांक बच्चे करते पीछे, दिखे आज बदले पापा।
झाग-दाग़ रिश्तों के छूटे, हृदय 'नदी' का जब नापा।।
दिन छुट्टी का अब ग़ज़ब हुआ, नदी से 'नदी' को जाना।
समय का अजब यह फेर हुआ, मां…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 20, 2018 at 4:00am — 11 Comments
अश्रु भरे नैन,
नाहीं आवे मोहे चैन
कैसे कटें दिन रैन,
इस विरहा की मारी के...
मन में समायो है,
ये जसुदा को जायो
कोई ले चलो री गाम मोहे,
कृष्ण मुरारी के...
कर गयो टोना,
नंनबाबा को ये छोना
देख सांवरो सलौना,
गाऊँ गीत मल्हारी के...
व्याकुल सो मन
अकुलाये से नयन
बिन धीरज धरें ना
चितवन को निहारि के...
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by रक्षिता सिंह on August 19, 2018 at 8:58pm — 11 Comments
1222 1222 122
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तेरे आने से आये दिन सुहाने ।
हैं लौटे फिर वही गुजरे ज़माने ।।
भरा अब तक नही है दिल हमारा ।
चले आया करो करके बहाने ।।
हमारे फख्र की ये इन्तिहाँ है ।
वो आये आज हमको आजमाने ।।
बड़ी शिद्दत से तुझको पढ़ रहा था ।
हवाएं फिर लगीं पन्ने उड़ाने ।।
शिकायत दर्ज जब दिल में कराया ।
अदाएँ तब लगीं पर्दा हटाने ।।
नज़र से लूट लेना चाहते हैं ।
हैं मिलते लोग अब कितने…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on August 19, 2018 at 8:30pm — 4 Comments
सुखिया को संसार में, सब कुछ मिलता मोल
पर दुखिया के वास्ते, सकल जिन्दगी झोल।१।
हर देहरी पर चाह ले, आँगन बैठे लोग
भूखों को दुत्कार नित, मंदिर मंदिर भोग।२।
पाले कैसी लालसा, हर मानव मजबूर
हुआ पड़ोसी पास अब, सगा सहोदर दूर।३।
बिकने को कोई बिके, पर ये दुख का योग
औने-पौने बिक रहे, ऊँचे कद के लोग।४।
घुट्टी में सँस्कार की, अब क्या क्या खास
रिश्तों से आने लगी, अब जो खट्टी बास।५।
मौलिक व…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2018 at 5:28pm — 12 Comments
आज १५ अगस्त... कई दिनों से प्रतीक्षा रही इस दिन की ... डा० रामदरश मिश्र जी का जन्म दिवस जो है । आज उनसे बात हुई तो उनकी आवाज़ में वही मिठास जो गत ५६ वर्ष से कानों में गूँजती रही है। उनका सदैव स्नेह से पूछना , “भारत कब आ रहे हैं ? ” ... सच, यह मुझको भारत आने के लिए और उतावला कर देता है .. और मन में यह भी आता है कि आऊँगा तो प्रिय सरस्वती भाभी जी के हाथ का बना आम का अचार भी खाऊँगा ... बहुत ही अच्छा अचार बनाती हैं वह ।
कैसे कह दूँ उनके स्नेह से मुझको स्नेह नहीं है, जब उनकी मीठी…
ContinueAdded by vijay nikore on August 19, 2018 at 6:19am — 4 Comments
महिमा दिखने में अतिसुंदर किंतु मासूम थी। उच्च शिक्षा के बाद उच्च स्तरीय नौकरी हासिल करना उस मध्यमवर्गीय के लिए न तो आसानी से संभव था, न ही असंभव। जब दूसरे सक्षम लोग उसको नियंत्रित या 'स्टिअर' कर मनचाही दिशा देने की कोशिश करते तो उसे लगता कि वह पश्चिमी आधुनिकता की चपेट में आ रही है, कुछ समझौते कर कठपुतली सी बनायी या बनवाई जा रही है। आज वह लैपटॉप पर चैटिंग कर आभासी दुनिया के मशविरे लेने को विवश थी; पिता को सच बताने से डरती थी, किंतु 'सहेली सी' मां को भी तो सब कुछ उसने नहीं बताया था! हालांकि…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on August 19, 2018 at 2:49am — 4 Comments
"अरे लल्ला, साहब लोगन के लिए दुइ कप चाय तो बनवा दो", दशरथ ने आवाज लगाया.
"रहने दीजिये, अभी तो यहाँ खाना खाया, चाय की जरुरत नहीं है", उसने दशरथ को मना किया. तब तक बगल में बैठे मलखान ने लल्ला को आवाज़ लगायी "अरे चाय नहीं, काफ़ी बनवाओ, और हाँ कम शक्कर वाली", और उन्होंने मुस्कुराते हुए ऐसे देखा जैसे मन की बात पकड़ ली हो. उसने फिर से मना किया लेकिन तब तक लल्ला घर के अंदर घुस गया. गाँव में अभी भी काफी चहल पहल थी.
"साहब आपको १२ बजे आना था, असली मेला तो ओही समय था. कल से अखंड रामायण करवाए थे…
Added by विनय कुमार on August 18, 2018 at 10:43pm — 8 Comments
Added by Saurabh Pandey on August 18, 2018 at 10:00pm — 20 Comments
गर्द (लघु रचना ) .....
वह्म है
पोंछ देने से
आँसू
मिट जाते हैं
दर्द
मोहब्बत के शह्र में
जब उड़ती है
यादों की गर्द
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 18, 2018 at 6:00pm — 4 Comments
(फा इलातुन _फइलातुन _फइलातुन_फेलुन)
तोड़ते भी नहीं यारी को निभाते भी नहीं l
शीशए दिल में है क्या मुझको बताते भी नहीं l
ऐसे दीवाने भी हम दम हैं जो उलफत के लिए
गिड़ गिड़ाते भी नहीं सर को झुकाते भी नहीं l
मांगता जब भी हूँ मैं उनसे जवाबे उलफत
ना भी करते नहीं हाँ होटों पे लाते भी नहीं l
उनकी उलफत का यकीं कोई भला कैसे करे
वो मिलाते भी नहीं आँख चुराते भी नहीं l
हक़ गरीबों का जो बिन मांगे तू देता…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on August 18, 2018 at 6:00pm — 16 Comments
बह्र-212-212-212-212
घर पे अपने बुरा या भला ठीक हूँ।।
गुमशुदा हूँ अगर गुमशुदा ठीक हूँ।।
पर्त धू की चढ़ी,दीमकों का बसर।
हो लगी चाहे सीलन पता ठीक हूँ।।
मेरा लहजा है कोई कहे न कहे।
मैं रदीफ़ ए ग़ज़ल काफिया ठीक हूँ।।
ठाठ की टोकरी या तुअर झाड़ की ।
घर के सपने संजो अधभरा ठीक हूँ।।
शान ओ शौक़त न कोई बसर चाहिए।
बस है चादर फटी अध-ढका ठीक हूँ।।
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आमोद बिन्दौरी…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on August 18, 2018 at 5:00pm — 4 Comments
घूंघट - लघुकथा –
"बहू, जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी नहीं हुए शादी को और तुमने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिये"।
"माँ जी, यह आप क्या कह रहीं हैं? मैं कुछ समझी नहीं"?
"अरे वाह, चोरी और सीना जोरी"।
"माँ जी, आप मेरी माँ समान हैं। मुझसे कोई गलती हुयी है तो बेशक डाँटिये फटकारिये मगर मेरी गलती तो बताइये"।
"क्या तुम्हारी माँ ने तुम्हें अपने ससुर और जेठ का आदर सम्मान करना नहीं सिखाया"?
"माँ जी, मैं तो पिता जी और बड़े भैया का पूरा सम्मान करती हूँ"।
"तुम्हें क्या…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 18, 2018 at 11:01am — 9 Comments
"लगता है वाक़ई बहुत गड़बड़ हो गई। कुछ ज़्यादा ही नेक साहित्य पढ़ ऊल-जलूल उसूल बना कर उलझन में डाल दिया अपनी इस शख़्सियत को!" एक मुशायरे में शामिल होने के लिए मिर्ज़ा साहिब सूटकेस जमाते हुए पिछले अनुभवों से 'सबक़' सीखने की कोशिश कर रहे थे; आजकल के हालात के हिसाब से अपने कुछ फैसले वे बदलने की सोच रहे थे।
"उस दाढ़ी वाले मुल्लाजी को रोक कर ज़रा उसकी तलाशी तो लो!" उनके पिछले अनुभव की पुनरावृत्ति करते हुए देर रात ग़श्त लगाते हुए एक पुलिस वाले ने अपने साथी को निर्देश दिया था पिछली दफ़े। मिर्ज़ा जी को आवाज़…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 17, 2018 at 5:00pm — 1 Comment
कितनी ही बार वह प्रयास कर चुका था लेकिन झोला संभालने में वह अपने आप को असमर्थ पा रहा था. अपने आप पर उसे अब क्रोध आने लगा, क्या जरुरत थी पैदल आकर सब्जी खरीदने की. स्कूटर रहता तो कम से कम उसपर इसे रख तो लेता लेकिन अब करे? सब्जियों से ठसाठस भरा झोला उठाने में उसे वैसे ही बहुत कठिनाई हो रही थी और उस पर इसकी पट्टी को आज ही टूटना था.
अब घर कैसे जाए, झख मारकर उसने घर पर बेटे को फोन लगाया. बेटा भी मैच देखने में मगन था तो उसने भी टालते हुए कहा "अरे एक रिक्शा ले लीजिये और आ जाईये", और फोन रख…
Added by विनय कुमार on August 17, 2018 at 12:30pm — 4 Comments
पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को नमन
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हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन रग रग हिन्दू युक्त अटल।
आज जगत के इस बन्धन को त्याग हो गए मुक्त अटल।।
नैतिकता के मानदंड थे प्रेम राग के अनुरागी
सर्वधर्म समभाव के असली आप थे सच्चे अनुगामी
सकल विश्व में भारत की जो मान-प्रतिष्ठा आज बढ़ी
उसकी गाथा अटल बिहारी के द्वारा परवान चढ़ी
विश्व पटल पर एक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र है भारत जो
आप…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 16, 2018 at 6:00pm — 10 Comments
"लो! एक और गया! .. बह गया बेचारा!"
"वो देखो! एक तो अब आ गया न!" आशावादी दृष्टिकोण वाले युवक ने तेज बहाव वाले जलप्रपात के किनारे वाली चट्टान पर खड़ी भीड़ से आसमान की ओर देखते हुए कहा। रेस्क्यू ऑपरेशन में भेजे गये इकलौते चॉपर हेलिकॉप्टर से लगभग चालीस लोगों को जलसमाधि से बचाना था। घने काले बादलों के अंधकार और रुक-रुक कर हो रही बारिश को झेलते हुए रेस्क्यू दल-सदस्य 'रस्सी की सीढ़ी' से पार्वती नदी के बीच चट्टान में फंसे चार-पांच युवाओं को ही बचाने में सफल हुए। क़रीब तीन सौ मीटर दूर किनारे…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 15, 2018 at 10:30pm — 4 Comments
स्वतंत्रता दिवस पर ३ रचनाएं :
एक चौराहा
लाल बत्ती
एक हाथ में कटोरा
भीख का
एक हाथ में झंडा बेचता
कागज़ का
न भीख मिली
न झंडा बिका
कैसे जलेगा
चूल्हा शाम का
क्या यही अंजाम है
वीरों के बलिदान का
सुशील सरना
.... .... ..... ..... ..... ..... ....
हाँ
हम आज़ाद हैं
अब अंग्रेज़ नहीं
हम पर
हमारे शासन करते हैं
अब हंटर की जगह
लोग
आश्वासनों से
पेट भरते हैं
महंगाई,भ्रष्टाचार
और…
Added by Sushil Sarna on August 15, 2018 at 1:00pm — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 15, 2018 at 9:59am — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
बड़ी उम्मीद थी उनसे वतन को शाद रक्खेंगे ।
खबर क्या थी चमन में वो सितम आबाद रक्खेंगे ।।
है पापी पेट से रिश्ता पकौड़े बेच लेंगे हम।
मगर गद्दारियाँ तेरी हमेशा याद रक्खेंगे ।।
हमारी पीठ पर ख़ंजर चलाकर आप तो साहब ।
नये जुमले से नफ़रत की नई बुनियाद रक्खेंगे ।।
विधेयक शाहबानो सा दिये हैं फख्र से तोहफा ।
लगाकर आग वो कायम यहां उन्माद रक्खेंगे ।।
इलक्शन आ रहा है दाल गल जाए न फिर उनकी।
तरीका…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 14, 2018 at 8:06pm — 8 Comments
122 122 122 122
उजाले हमें फिर लुभाने लगे हैं
नया गीत हम आज गाने लगे हैं।1
बढ़े जो अँधेरे, सताने लगे हैं
गये वक्त फिर याद आने लगे हैं।2
कदम से कदम हम मिलाके चले थे
पहुँचने में क्यूँ फिर जमाने लगे हैं? 3
लुटे जालिमों से,यहाँ भी ठगे हम
लुटेरे मसीहा कहाने लगे हैं।4
अदाओं ने मारा बहाने बनाकर,
बसे जो ज़िगर खूं बहाने लगे हैं।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on August 14, 2018 at 7:13pm — 11 Comments
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