तृप्ति ....
मेरा कहाँ था
वो पल
जो बीत गया
वक्त के साथ
तुम्हारा आकर्षण भी
रीत गया
यादों के धागों पर
मिलते रहे
अतृप्त तृप्ति की
अव्यक्त अभियक्ति के साथ
कहीं तुम
कहीं हम
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 25, 2018 at 1:20pm — 5 Comments
अनुसरण- लघुकथा –
माँ भारती अपनी संध्याकालीन पूजा अर्चना से निवृत होकर जैसे ही प्रांगण में आयीं। उन्होंने देखा कि उनके बच्चे दो गुट में बंटे हुए एक दूसरे पर तमंचों से गोलियाँ दाग रहे थे। एक गुट हर हर महादेव के जयकारे लगा रहा था और दूसरा गुट अल्ला हो अकबर के नारे लगा रहा था। माँ भारती स्तब्ध रह गयीं।
उन्होंने तुरंत बच्चों को रोका,"बच्चो, यह क्या कर रहे हो तुम लोग"?
"माँ, हम लोग हिंदू मुसलमान खेल रहे हैं"।
"पर यह खेल कौन सा है"?
"यह हिंदू मुस्लिम दंगा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 25, 2018 at 12:08pm — 8 Comments
221 2121 1221 212
क़ीमत ज़बान की है जहाँ बढ़के जान से
है वास्ता हमारा उसी ख़ानदान से
चढ़ना है गर शिखर पे, रखो पाँव ध्यान से
खाई में जा गिरोगे जो फिसले ढलान से
पल - पल झुलस रही है ज़मीं तापमान से
मुकरे हैं सारे अब्र अब अपनी ज़बान से
काली घटाएँ रास्ता रोकेंगी कब तलक?
निकलेगा आफ़ताब इसी आसमान से
ये दौलतों के ढेर मुबारक तुम्हीं को हों
हम जी रहे हैं अपनी फ़क़ीरी में शान से
क्या-क्या न हमसे छीन…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on August 25, 2018 at 11:03am — 8 Comments
मस्त हुए वे प्रभुताई में
देश झुलसता महँगाई में
घास तलक उगना हो मुश्किल
क्या रक्खा उस ऊँचाई में
फटी…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 25, 2018 at 10:00am — 6 Comments
सुनो, नारी कभी नग्न नहीं होती है
और सुनो, नारी कभी नहीं रोती है
नारी कभी नग्न नहीं होती
नग्न होती हैं ;
हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं
नारी कभी नहीं रोती है-
रोती हैं ;
हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं
फिर…
Added by SudhenduOjha on August 24, 2018 at 6:30pm — 9 Comments
मिश्रित दोहे :
कड़वे बोलों से सदा, अपने होते दूर।
मीठी वाणी से बढ़ें, नज़दीकियाँ हुज़ूर।।
भानु किरण में काँच भी, हीरे से बन जाय।
हीरा तो अपनी चमक, तम में ही दिखलाय।।
घडी-घड़ी क्यों देखता, जीव घडी की चाल।
घड़ी गर्भ में ही छुपा, उसका अंतिम काल।।
हंस भेस में आजकल, कौआ बांटे ज्ञान।
पीतल सोना एक सा, कैसे हो पहचान।।
राखी का त्यौहार है बहना की मनुहार।
इक -इक धागे में बहिन, बाँधे अपना…
Added by Sushil Sarna on August 24, 2018 at 4:15pm — 4 Comments
जीवन की धमाचौकड़ी में वो अस्त-व्यस्त था।
मिलता तो था सभी से मगर ज़्यादा व्यस्त था।।
हर चंद कोशिशें थीं कि दीदार-ए-यार हो।
पहरा मगर महल में बहुत ज़्यादा सख्त था।।
कहने को गर हैं भाई फिर मैदान-ए-जंग में।
गिरता था ज़मीन पे वो फिर किसका रक्त था।।
गर सब हैं बेगुनाह तो चल अब तू ही दे बता।
खंज़र मेरे शरीर में वो किसका पेवस्त था।।
जिससे भी जुड़ा रिश्ते में वो बंधता चला गया।
बस उसका ही मिजाज थोड़ा ज़्यादा…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 24, 2018 at 3:00pm — 1 Comment
वो बेबसी का
कहर देखते हैं
हम भी अपना
शहर देखते हैं
उतर गया है
पानी सैलाब का
मिट्टी से सना
घर देखते हैं
शर्म, हया, अना
कहाँ बची है
झुक के सभी
दीवारो-दर देखते हैं
घोल दी गई कुछ
इस तरह मिठास
ज़ुबाँ में ज़हर का
असर देखते हैं
इस उम्र न आओगे
लौट कर यहाँ
हम न जाने किसकी
डगर देखते हैं
मौलिक एवम अप्रकाशित
सुधेन्दु ओझा
Added by SudhenduOjha on August 24, 2018 at 12:20pm — 1 Comment
Added by Dr.Prachi Singh on August 24, 2018 at 1:05am — 6 Comments
अरकान:-
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा
फिर ज़ख़्मों को धोने का दिल करता है
चुपके चुपके रोने का दिल करता है
जब जब…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on August 22, 2018 at 10:09pm — 14 Comments
"ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद! जान ज़िन्दाबाद! .. ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद!"- सुंदर 'राष्ट्रीय राजमार्ग' पर मौत को करारी शिकस्त देती कुछ ज़िन्दगियां ख़ुशी की अश्रुधारा बहाती चिल्ला रहीं थीं। वहां दैनिक दिनचर्या तहत बेहद तीव्र गति में दौड़ रहे ट्रैफ़िक में एक बाइक को विपरीत दिशा से आते एक स्कूटर ने यूं टक्कर मारी कि दोनों पर सवार युवा किसी फुटबॉल या सिक्के माफ़िक टॉस करते हुए सड़क के डिवाइडर से टकराने के बावजूद चोटिल होकर ज़िंदा बच गये थे। वह बाइक अभी भी एक छोटे से बच्चे को यथावत बिठाले सड़क पर दौड़ती हुई डिवाइडर से…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on August 22, 2018 at 1:33pm — 8 Comments
कुछ रंजो गम के दौर से फुर्सत अगर मिले ।
आना मेरे दयार में कुर्बत अगर मिले ।।1
यूँ हैं तमाम अर्जियां मेरी खुदा के पास ।
गुज़रे सुकूँ से वक्त भी रहमत अगर मिले ।।2
आई जुबाँ तलक जो ठहरती चली गयी ।
कह दूँ वो दिल की बात इजाज़त अगर मिले ।।3…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 22, 2018 at 1:25pm — 16 Comments
"कौन? ... कौन डूब रहा है इस सैलाब में इतने रेस्क्यू ऑपरेशंस के बावजूद?"
"आम आदमी साहिब! आम मतदाता डूब रहा है, उपेक्षा के सैलाब में या फिर अहसानात के सैलाब में... इस चुनावी सैलाब में!"
"रेस्कयू में हम कोई कसर नहीं छोड़ रहे ! धन, नौकरी, छोकरी, योजना, लोन-दान, वीजा-पासपोर्ट, नये-नये बिल-क़ानून, पशु-रक्षा, धार्मिक-स्थल-मुद्दे, मीडिया-कवरेज , वाद-विवाद, पुलिस-समर्पण ... सब कुछ तो लगा दिया उनके लिए उनके हितार्थ! .. और क्या चाहिए!"
"जनता इनको चुनावी-हथकंडे मान रही है, रेस्क्यू नहीं!…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 22, 2018 at 12:30am — 5 Comments
आल्हा (वीर छन्द)
बरसे बादल उमड़ घुमड़ के,चहुँ दिशि गूँजे चीख पुकार
गाँव नगर सब डूब गया है,कुदरत की ऐसी है मार
विषम घड़ी आयी केरल में,बाढ़ मचाई है उत्पात
कांप उठा है कोना कोना, संकट से ना मिले निजात
भारी जन धन काल गाल में,कैसे सभी बचाएं जान
खेत सिवान झील में बदले,ध्वस्त हुए सारे अरमान
तहस नहस केरल की धरती,मची तबाही चारो ओर
नाव चले गलियों कूँचे में,काल क्रूर बन गया कठोर
जमींदोज सब भवन हो गए,आयी बाढ़ बड़ी…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on August 21, 2018 at 8:36pm — 14 Comments
ऐ आसमान ....
क्या हो तुम
आज तक कोई नहीं
छू पाया तुम्हें
फिर भी तुम हो
ऐ आसमान
किसी बेघर की
छत हो
किसी का ख्वाब हो
किसी परिंदे का लक्ष्य हो
या
किसी रूह का
अंतिम धाम हो
क्या हो तुम
ऐ आसमान
नक्षत्रों का निवास हो
किसी चातक की प्यास हो
मेघों का क्रीड़ा स्थल हो
सूर्य का पथ हो
या
चाँद तारों का आवास हो
क्या हो तुम
ऐ आसमान
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on August 21, 2018 at 1:53pm — 14 Comments
बेहद तेजी से प्रोफेशनल तरक्की
के रास्ते पर हो दोस्त,
बुन ली है तुमने अपने
आस पास एक ऐसी दुनिया,
जिसमें ना प्रवेश कर सकते हैं हम
और ना ही तुम आ सकते हो हम तक !
नहीं बची है दूसरों के लिए करुणा,
प्रेम, स्नेह और आत्मीयता की कोई जगह,
तुम्हारी इस दुनिया में !
हंसना, मुस्कुराना तो कभी का
हो चुका था बंद,जब भी मिले,मिले…
Added by Naval Kishor Soni on August 21, 2018 at 12:00pm — 6 Comments
२२ २२ २२ २
पूछ न इस रुत कैसा हूँ
अबतक तो बस तन्हा हूँ।१।
बारिश तेरे साथ गयी
दरिया होकर प्यासा हूँ।२।
आता जाता एक नहीं
मैं भी कैसा रस्ता हूँ।३।
जब तन्हाई डसती है
सारी रात भटकता हूँ।४।
हाथों में चुभ जाते हैं
काँटे जो भी चुनता हूँ।५।
जाने कौन चुनेगा अब
उतरन वाला कपड़ा हूँ।६।
तारों सँग कट जाती है
शरद अमावस रैना हूँ।७।
अनमोल भले बेकार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2018 at 11:57am — 18 Comments
कितने ही सालों से भटकती उस रूह ने देखा कि लगभग नौ-दस साल की बच्ची की एक रूह पेड़ के पीछे छिपकर सिसक रही है। उस छोटी सी रूह को यूं रोते देख वह चौंकी और उसके पास जाकर पूछा, "क्यूँ रो रही हो?"
वह छोटी रूह सुबकते हुए बोली, "कोई मेरी बात नहीं सुन पा रहा है… मुझे देख भी नहीं पा रहा। कल से ममा-पापा दोनों बहुत रो रहे हैं… मैं उन्हें चुप भी नहीं करवा पा रही।"
वह रूह समझ गयी कि इस बच्ची की मृत्यु हाल ही में हुई है। उसने उस छोटी रूह से प्यार से कहा, "वे अब तुम्हारी आवाज़…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 20, 2018 at 11:30pm — 10 Comments
जीवन के दोहे :
बड़ा निराला मेल है, श्वास देह का संग।
जैसे चन्दन से लिपट, जीवित रहे भुजंग।1।
अजब जहाँ की रीत है, अज़ब यहाँ की प्रीत।
कब नैनों की रार से, उपजे जीवन गीत ।2।
बड़ा अनोखा ईश का, है आदम उत्पाद।
खुद को कहता है खुदा, वो आने के बाद।3।
झूठे रांझे अब यहां, झूठी उनकी हीर।
झूठा नैनन नीर है, झूठी उनकी पीर।4।
जैसे ही माँ ने रखा, बेटे के सर हाथ।
बह निकली फिर पीर की, गंगा जमुना…
Added by Sushil Sarna on August 20, 2018 at 4:30pm — 24 Comments
लोकतंत्र
अर्जी लिए खड़ा है बुधिया,
भूखा प्यासा खाली पेट.
राजा जी कुर्सी पर बैठे,
घुमा रहे हैं पेपरवेट.
कहने को तो लोक तंत्र है,
मगर लोक को जगह कहाँ है.
मंतर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 20, 2018 at 1:29pm — 18 Comments
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