For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुनो, नारी कभी नग्न नहीं होती है और सुनो, नारी कभी नहीं रोती है

सुनो, नारी कभी नग्न नहीं होती है

और सुनो, नारी कभी नहीं रोती है

नारी कभी नग्न नहीं होती
नग्न होती हैं ;

हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं

नारी कभी नहीं रोती है-
रोती हैं ;

हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं

फिर न कहना कभी ;
अमुक स्त्री को नग्न किया गया,
कहना ;

हमारी माता को नग्न किया गया
हमारी बहन को नग्न किया गया
हमारी पत्नी को नग्न किया गया
हमारी बेटी को नग्न किया गया
हमारी पुत्र-वधु को नग्न किया गया
हमारी विवशता को नग्न किया गया

फिर न कहना कभी;
अमुक स्त्री रोती थी,
कहना ;

हमारी माता रो रही थी
हमारी बहन रो रही थी
हमारी पत्नी रो रही थी
हमारी बेटी रो रही थी
हमारी पुत्र-वधु रो रही थी
हमारी विवशता रो रही थी

क्योंकि इतिहास गवाह है,
सारे ज़ुल्म स्त्रियों पर ही टूटे हैं
फिर भी

सुनो, नारी कभी नग्न नहीं होती है
और सुनो, नारी कभी नहीं रोती है

नारी, अकेली नारी नहीं होती है
माँ, बहन, पत्नी, बेटी, पुत्र-वधु होती है

सुनो, नारी कभी नग्न नहीं होती है
और सुनो, नारी कभी नहीं रोती है

मौलिक, अप्रकाशित

सादर,

सुधेन्दु ओझा

Views: 745

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2018 at 9:37pm

// उपरोक्त के विषय में यह कहना है कि यदि ऐसा सम्बोधन अनिवार्य है तो इसकी सूचना साइट पर फ्लैश की जाय। 

हिन्दी में यदि आप नाम के साथ "जी" का प्रयोग करते हैं तो स्वतः आदरणीय हो जाता है, उसमें आयु भेद न रह कर वह वरिष्ठ एवं सम्मानित माना जाता है //

आदरणीय सुधेन्दु जी, आप प्रस्तुत मंच पर अपेक्षाकृत नए सदस्य हैं. इस कारण, आपकी हर तरह की शंकाओं का समाधान आवश्यक है. 

हालाँकि, आपका निवेदन हर तरह से समीचीन है, किन्तु, आदरणीय समर भाईसाहब ने सही फ़रमाया है कि सम्बोधनों के क्रम में पटल पर यथायोग्य आदरणीय या आदरणीया या जनाब या मोहतरमा कहने की परिपाटी है. अपने अनुजों को भाई कहकर सम्बोधित करने का चलन है.

ऐसी परिपाटियाँ अथवा ऐसे चलन एक दिन में अथवा अनायास ही नहीं बन जाया करते, बल्कि इन्हें सभी सदस्यों के द्वारा तिल-तिल कर निभाना पड़ता है.

ओबीओ के पटल के आज आठ वर्ष हो चुके हैं. इस पटल के प्रारम्भिक दिनों में ही प्रधान संपादक महोदय की पहल पर तथा प्रबन्धन के सदस्यों की अनुशंसाओं पर इस आशय को स्वीकार कर लिया गया था, कि आदरणीय और आदरणीया का प्रयोग अपरिहार्य कर दिया जाय. आगे, सभी सदस्यों ने इस परिपाटी को व्यावहारिक आचरण की तरह निभाना शुरु कर दिया.

आदरणीय, सारी बातें लिखित नहीं होतीं. होनी भी नहीं चाहिए. बल्कि, अकाट्य, अपरिहार्य एवं परिपक्व हो चुकी परम्पराएँ सहज ही स्वीकार्य होनी चाहिए. जिनका अनुपालन उक्त संस्था अथवा मंच अथवा पटल के सदस्य निःसंशय करते रहें. ऐसी ही ठोस परम्पराओं के कारण कोई मंच या पटल विशिष्ट हो जाया करता है.

आप जैसे संवेदनशील एवं सुधी सदस्य से भी हम सभी को यदि आपसी व्यवहार में स्वीकृत हो चुकी परिपाटियों के अनुपालन की अपेक्षा है, तो यह कोई अचरज नहीं है. 

आपके सहयोग की अपेक्षाओं के साथ आपका आभार

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2018 at 9:07pm

आदरणीय सुधेन्दु ओझा जी, आपकी प्रस्तुत कविता की संवेदनशीलता बिन्दुवत एवंं प्रहारक है। इसके लिए आप अवश्य ही बधाई के पात्र हैं। आपकी रचना का कथ्य आवृतिजन्य होने से उक्ति विशिष्टता का प्रभाव समीचीन बन पड़ा है। हार्दिक शुभकामनाएँ.. 

शुभातिशुभ

Comment by SudhenduOjha on August 28, 2018 at 11:05am

//शेख शहज़ाद उस्मानी जी//

इस तरह का सम्बोधन ओबीओ की परिपाटी नहीं है, यहाँ बड़े छोटे सबको आदरणीय कहकर या मुहतरम जनाब,कहकर संबोधित किया जाता है ।

उपरोक्त के विषय में यह कहना है कि यदि ऐसा सम्बोधन अनिवार्य है तो इसकी सूचना साइट पर फ्लैश की जाय। 

हिन्दी में यदि आप नाम के साथ "जी" का प्रयोग करते हैं तो स्वतः आदरणीय हो जाता है, उसमें आयु भेद न रह कर वह वरिष्ठ एवं सम्मानित माना जाता है। 

मैं शेख शहजाद उस्मानी जी का सम्मान करता हूँ। यह प्रयत्न मंच से न किया जाय कि मैंने किसी भिज्ञ/अलिखित परिपाटी की अवहेलना कर के उनके सम्मान को कम करने का प्रयत्न किया है। 

Comment by Samar kabeer on August 27, 2018 at 11:54am

जनाब सुधेन्दु ओझा जी आदाब,अच्छी कविता है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on August 27, 2018 at 11:53am

जनाब सुधेन्दु ओझा जी आदाब,

//शेख शहज़ाद उस्मानी जी//

इस तरह का सम्बोधन ओबीओ की परिपाटी नहीं है, यहाँ बड़े छोटे सबको आदरणीय कहकर या मुहतरम जनाब,कहकर संबोधित किया जाता है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2018 at 9:34am

भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on August 26, 2018 at 2:05pm

आदरणीय सुधेन्दु ओझा जी बहुत बेहतरीन रचना के लिए बधाई

Comment by SudhenduOjha on August 26, 2018 at 10:51am

शेख शहज़ाद उस्मानी जी कविता का संज्ञान लेने हेतु धन्यवाद। 

इस कविता को छंद में पिरोने के सुझाव से स्पष्ट होता है कि आप ने इसे गंभीरतापूर्वक लिया है। धन्यवाद।

दरअसल, इस गद्य कविता में पुनरूक्ति की भरमार आप पाएंगे। इस में भाव हावी है।

गद्य में एक ही बात को बारबार कहने से विषय को बल मिलता है उसमें खूबसूरती पैदा की जासकती है।

पद्य में पुनरूक्ति शायद बड़ा दोष बन जाये।

तथापि आपका सुझाव उचित है।

आप बताएं इस पर किस तरह आगे बढ़ा जा सकता है?

सादर,

सुधेन्दु ओझा

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 26, 2018 at 6:24am

बेहतरीन कटाक्ष और समसामयिक विचारोत्तेजक रचना। हार्दिक बधाइयां जनाब सुधेन्दु ओझा साहिब। इसे किसी काव्य छंद में पिरोकर बेहतर रूप देने की भी कोशिश की जा सकती है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service