इससे पहले के तुम दर्पण निहारों
मैं इन केशों में इक वेणी लगा दूँ
लो रख दी बाँसुरी धरती पे मैंने
तुम्हें गाकर के मैं लोरी सुला दूँ
समीरण रुक गई है बहते बहते
कहो तो शाख पेडो की हिला दूँ
पवन से वेग की इच्छा अगर है
कहो तो अंक में लेकर झूला दूँ
सुगंधित हैं सुमन उपवन के सगरे
बताओ कौन सा मैं पुष्प ला दूँ
घटा आकाश में छाने को व्याकुल
कहो तो नयनों में तुमको बिठा…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 7, 2020 at 1:30pm — 6 Comments
(221 2121 1221 212)
(बहर मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़)
अब के अजीब रंग में आया है जनवरी
ग़म सब पुराने साथ में लाया है जनवरी
बे-नूर सुब्ह-ओ-शाम हैं वीरां हैं रास्ते
तू भी किसी के ग़म का सताया है जनवरी
ना दिन में आफ़्ताब न महताब रात में
मत पूछिये कि कैसे निभाया है जनवरी
क़हर-ओ-सितम है ठंड का जारी उसी तरह
कोहरा-ओ-धुंद और भी लाया है जनवरी
शादाब ना शजर हों तो क्या लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी
तुझको सितम…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on January 7, 2020 at 11:41am — 6 Comments
स्वप्न-मिलन
रात ... कल रात
कटने-पिटने के बावजूद
बड़ी देर तक उपस्थित रही
नींद के धुँधलके एकान्त में
पिघलते मोम-सा
कोई परिचित सलोना सपना बना…
ContinueAdded by vijay nikore on January 7, 2020 at 6:30am — 8 Comments
छोड़ गये थे केवट जिन को तूफानी मझधारों पर
साहिल वालो उनसे पूछो क्या बीती दुखियारों पर।१।
हम जैसों की मजबूरी थी हालातों के मारे थे
कहने वाले खुदा स्वयम् को नाचे खूब इशारों पर।२।
आग जलाकर मजहब की नित सबने जो तैयार किये
सच में हर पल देश हमारा बैठा उन अंगारों पर।३।
माग रहे हैं तोड़ के घर को नित…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2020 at 4:55am — 10 Comments
12122×4
समझ नहीं आ रही है हमको ज़माने वाले तेरी पहेली,
शिकन से माथा भी भर दिया है लकीरों से जब भरी हथेली.
उदास बच्चे ने माँ के आंचल से अपनी आंखों को ढक लिया है,
गुज़र ही जाएगी रात काली जो चांद तारों की ओट लेली.
इक ऐसा गम है मैं जिससे यारों नजर चुरा के ही जी रहा हूँ,
ज़रा सा उसके करीब जाऊं बिखरने लगती है जां अकेली.
अजब है दुनिया का ये बगीचा ,अजब है इसका हठीला माली
तमाम…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 5, 2020 at 1:53am — No Comments
बात बर्फ सी जमी हुई है, शब्दों में है लेकिन आग ।
देखो चमन न बँटने पाये, निकले हैं जहरीले नाग ।।
बाढ़ आ गई आगजनी की,तोड़-फोड़ होती अविराम ।
भाईचारा है सूली पर, लोकतंत्र के चक्के जाम ।।
राष्ट्र संपदा की बलि देकर, दुश्मन खेल रहा है फाग ।
देखो चमन न बँटने पाये , निकले हैं जहरीले नाग ।।
हिंसा भीड़ तमाशे का जो,…
ContinueAdded by Anamika singh Ana on January 4, 2020 at 3:30pm — 5 Comments
त्रिवेदी जी अपने समय के ख्याति प्राप्त व्यापारी, समाज सेवक, राज नेता, मंत्री और ना जाने किस किस पद को शोभायमान कर चुके थे।
आज वृद्धावस्था के कारण जर्जर शरीर को लेकर अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई में मरणासन्न स्थिति में पड़े थे। दवाओं का शरीर पर कोई अनुकूल प्रभाव नहीं हो रहा था। लेकिन अस्पताल वाले अति आशावादी होने का नाटक कर रहे थे। वहाँ के डॉक्टरों का दावा था कि वे पूर्व में मृत प्रायः लोगों में भी जान डाल चुके हैं| वे इतनी मोटी मुर्गी को तबियत से हलाल करना चाहते थे।यमदूत बार बार आकर…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 4, 2020 at 11:00am — 8 Comments
पधार गए हो नए साल जो
खुश रहो औ ख़ुश रहने दो
आओ जीमो मौज मनाओ
जो जमा हुआ वो बहने दो
पथ भी रहें पंथी भी रहें
राहें भी दुश्वार न हों
सुरों मे गीत रहें न रहें…
Added by amita tiwari on January 4, 2020 at 4:00am — 4 Comments
1222 1222 1222 1222
हमारे सारे मिसरे मुख्तलिफ अर्थों में लिपटे हैं,
तुझे अब याद भी करते हैं तो डर कर ही करते हैं.
बहुत मुमकिन है इसमें फिर तुम्हारा ज़िक्र आ जाए,
नज़र में आज लेकिन दर्द सब दुनिया जहां के हैं.
जरा सा ध्यान से आ जाते हैं छोटे से मिसरे में,
मुहब्बत के सभी अफसाने रेशम के दुपट्टे हैं.
कई खुदगर्ज मछुआरों ने कब्जा कर लिया उस पर,
वह दरिया जिसमें अपनी नेकियां हम डाल आते हैं.
जहाँ से…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 4, 2020 at 12:30am — 4 Comments
जन्म लिया जिस देश धरा पर वो हमको लगता अति प्यारा
वैर न आपस में रखते वसुधैव कुटुम्ब लगे जग सारा
पूजन कीर्तन साथ जहाँ सम मन्दिर मस्जिद या गुरुद्वारा
लोग निरोग रहे जग में नित पावन सा इक ध्येय हमारा।।1
पूरब में जिसके नित बारिश, हो हर दृश्य मनोरम वाला
लेकर व्योम चले रथ को रवि वो अरुणाचल राज्य निराला
गूढ़ रहस्य अनन्त छिपा पहने उर पादप औषधि माला
जो मकरन्द बहे घन पुष्पित कानन को कर दे मधुशाला।।2
उत्तर में जिसके प्रहरी सम पर्वत राज हिमालय…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 3, 2020 at 5:00pm — 9 Comments
तुम यूँ ही बीच राह में
रोज़ तरूवर क़ी छाँव में
मुझे यूँ ही रोक लेते हो
और मैं भी रुक जाती हूँ
क्यों कि मैं भी रहती हूँ अधीर
तुमसे मिलकर बातें करने को!
तुम्हारा यूँ एकटक निहारना
मेरे दिल को भाता है बहोत*
मैं भी देखने लगती हूँ तुम्हें
सीधी कभी तिरछी नज़रों से
तुम मुस्कुरा देते हो शरारत से
मैं शर्माकर कुरेदती हूँ ज़मीन
पर ये सब भी कब तलक
जब ये कुहासा नहीं होगा
बढ़…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 3, 2020 at 12:43pm — 2 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
मिट्टी को जिसने देश की चन्दन बना लिया
जीवन को उसने हर तरह पावन बना लिया।१।
करते नमन हैं उस को नित छोटा भले सही
जिसने भी अपना सन्त सा यौवन बना लिया।२।
कहते हैं राह रच के ही रहजन हुए मगर
अब तो वही है जिसने पथ भटकन बना लिया।३।
साधन हो साध्य से अधिक पावन ये रीत थी
पर अब फरेब झूठ को साधन बना लिया।४।
जो उम्र पढ़ने लिखने की पत्थर हैं हाथ में
कैसा सुलगता देश का बचपन बना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 3, 2020 at 6:32am — 4 Comments
आओ और निकट से देखो
हिलोरें लेते इस पारावार को
हमारा जीवन भी ऐसा ही है
नीर जैसा स्वच्छ और निर्मल
जब पयोधि क़ी लहरें छूती हैं
रेत क़ी फ़ैली हुई कगार को
तब वह समेट लेती सब कुछ
और ले जाती है पयोनिधी में
हम मनुष्य भी तो ऐसे ही हैं
जब हम प्रेम में होते हैं तब
ढूंढते रहते हैं बस एक साहिल
ताकि समेट सकें स्वयं में सब कुछ
किंतु उदधि और मनुज क़ा प्रेम
उदर में ज्य़ादा काल नहीं…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 2, 2020 at 12:30pm — 6 Comments
2122 2122 2122
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जानते हैं तुम में ताकत हो गयी है,
और किस-किस पे ये आफत हो गयी है।
झूठ है जो, झूठ बिन कुछ भी नहीं, पर
अब जमाने में सदाक़त हो गयी है।
जब चमन का फूल होने का भरो दम,
क्यों चमन से ही अदावत हो गयी है?
जिस्म पर ठंडा लबादा, आग मुँह में,
जिसने रक्खे उसकी शुहरत हो गयी है।
कौम के अच्छे की खातिर काम हो अब,
छोड़ दो काफ़ी सियासत हो गयी है।
हर खुशी पर, मेरी बोलो तो भला क्यों,…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2020 at 12:00pm — 14 Comments
चलो, विश्वास भरें
गया पुरातन वर्ष
नवीन विचार करें
आपस के सब मनमुटाव कर दूर
चलो, विश्वास भरें
बैर भाव से हुए प्रदूषित
जो मन, बुद्धि , धारणाएँ
ज्ञानाग्नि से , सर्व कलुष कर दग्ध
सभी संत्रास हरें
आपस के सब मनमुटाव कर दूर
चलो, विश्वास भरें
है अनेकता में सुन्दर एकत्व
उसे अनुभूति करें
कर संशय, भ्रम दूर
नेह, सतभाव वरें
आपस के सब मनमुटाव कर दूर
चलो,…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 1, 2020 at 9:12pm — 5 Comments
Added by Vivek Pandey Dwij on January 1, 2020 at 9:00pm — 7 Comments
नव विहान का गीत मनोहर गाता चल।
जीवन में मुस्काता चल।।
मन मराल को कभी मनोहत मत करना ।
हो कण्टक परिविद्ध तनिक भी ना डरना।
गम को भूल सभी से नेह लगाता चल।
जीवन में मुस्काता चल।।
वैर भाव की ये खाई पट जाएगी।
वर्गभेद तम की बदली छँट जाएगी।
बनकर मयार मधुत्व रस छलकाता चल।
जीवन में मुस्काता चल।।
महदाशा रख मर्ष भाव अंतर्मन में
जानराय बन ओज जगाओ जनजन में।
हो भवितव्य पुनर्नव राह बनाता चल।
जीवन में मुस्काता…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on January 1, 2020 at 1:00pm — 8 Comments
छोटी बातों से तू इतना, विचलित क्यूँ कर होता है
जीवन धार नदी की, इसमें उन्नीस बीस तो होता है
दुनियाँ का दस्तूर है, ज्यादा रोते को रुलवाने का
कितना समझाया तुझको तू, फिर भी नयन भिगोता है
जाने वाले साल को सारे, दुख अपने तू अर्पण कर दे तेरे भाग्य में फिर वो कैसे, बीज खुशी के बोता है
अस्त हुआ उन्नीस का भानु, बीस का दिनकर…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 1, 2020 at 11:00am — 10 Comments
बर्षों से जब रहते आये दुख से मालामाल यहाँ
सुख आकर भी कर पायेगा फिर कितना कंगाल यहाँ।।
तुम रख लेना शायद तुमको उम्मीदों का साल मिले
हमने तो हर पल है खोया उम्मीदों का साल यहाँ।।
शीष झुकाये रहे सहिष्णुता जैसे सब की दोषी हो
खूब मजहबी झगड़े रहते ताने अब तो भाल यहाँ।।
साल नया कितनी उम्मीदें…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2020 at 5:51am — 10 Comments
नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो
घर आँगन में उजियारा हो
दुःखों का दूर अँधियारा हो
हो नई चेतना नवल स्फूर्ति
नित नव प्रभात आभामय हो
नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो
नित नई नई ऊँचाई हो
हृद प्राशान्तिक गहराई हो
नित नव आयामों को चूमो
चहुँओर तुम्हारी जय जय हो
नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो
जो खुशियाँ अब तक नहीं मिलीं
जो कलियाँ अब तक नहीं खिलीं
जीवन के नूतन अवसर पर
उनका मिलना-खिलना तय हो
नव वर्ष तुम्हे मंगलमय…
Added by आशीष यादव on January 1, 2020 at 12:31am — 13 Comments
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