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इंतज़ार, अँधेरा और अकेलापन

कभी महफ़िल हुआ करती थी यहाँ,
अब सब है धुआं-धुआं,
इंतज़ार, अँधेरा और अकेलापन
बसता है अब यहाँ 
किसी की आहट, कोई दस्तक,
किसी का आना, कहाँ होता है अब यहाँ?
शायद इस कुँए में वो मिठास ही नहीं रही  
के कोई प्यासा रुकता यहाँ 
बस बेरंग पर्दों से खेलती है हवा आजकल,
शमा कहाँ जलती है अब यहाँ?
साज़ खामोश ही रहते हैं अक्सर,
मोसिक़ी-ए-ख़ामोशी बजती है अब यहाँ 
सब कद्रदान…
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Added by Anjana Dayal de Prewitt on May 27, 2011 at 6:58pm — No Comments

अच्छा है

तेरी यादों में खुदको इस तरह से झोंक रखा है
के मैंने कुछ पलों को तेरी खातिर रोक रखा है

तडपता देखकर मुझको अगर तू खुश हुआ तो क्या
मेरी उम्मीद बंधती है तेरा ये शौक़ अच्छा है

सिर्फ तू हो ख्यालों में, मेरी हर सोच में तू हो
न कोई पास आये मैंने सबको टोक रखा है

ये बेटे कल तुम्हारी सब ज़मीनें बाँट ही लेंगे
तो इनकी छह में तुम न उजाडो कोख अच्छा है

Added by Vishal Bagh on May 27, 2011 at 1:35pm — No Comments

प्यार करते हैं बेइन्तहा

प्यार करते हैं बेइन्तहा इम्तहां चाहे ले ले जहाँ।

हम ना होंगे जुदा जाने जाँ, हम हैं दो जिस्म और एक जां।।



चाँदनी चाँद में ज्यों बसी, फूल में है ज्यों मीठी हँसी।

त्योंही उर में बसी उर्वसी छोड़कर तुम ये सारा जहां।।



सुन हकीकत ऐ हुस्ने परी, मैं हूँ शायर हो तुम शायरी।

चश्मो दिल में हो कब से मेरी, कह नहीं सकती है ये जुबां।।



बिन पिये भी नहीं होश है क्या नशीला ये आगोश है।

जामे लब  में भरा जोश है, हैं मिलाये जमीं आसमां।।



मय मयस्सर हुई ही नहीं, हमको… Continue

Added by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on May 27, 2011 at 8:46am — 1 Comment

ऐ ज़िन्दगी कभी तो मुझपे मेहरबां हो जा

ऐ ज़िन्दगी कभी तो मुझपे मेहरबां हो जा,…

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Added by Anshumali Srivastava on May 27, 2011 at 8:00am — No Comments

सरदार भगत सिंह के आत्मा की आवाज

सरदार भगत सिंह के आत्मा की आवाज



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एक दिन कलम ने आके चुपके से मुझसे ये राज खोला ,



कि रात को भगत सिंह ने सपने में  आकर उससे  बोला,







कहाँ  गया वो  मेरा इन्कलाब कहाँ गया वो  बसंती… Continue

Added by Rajeev Kumar Pandey on May 27, 2011 at 3:30am — No Comments

अनुभव..

जिन्दगीं हर घड़ी

एक नया अनुभव लाती है

पर मैं क्या करु मेरा हर नया अनुभव

मेरे हर पुराने अनुभव से

कुछ कड़वा है, कुछ फ़ीका है, कुछ खारा है

कुछ दुर ही सही

मैं उसके साथ चलता हूँ

कभी सभ्लता हूँ, कभी फ़िसलता हूँ

मैं उसे नहीं बांटता

ये ही मुझे रफ़्ता रफ़्ता बांट देता है

मेरी इस छोटी सी जिन्दगी को

जो मेरे लिये ही काफ़ी नही

दो आयामों में काट देता है

वह मेरा सबसे पुराना मित्र है

और सबसे बड़ा…

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Added by अमि तेष on May 26, 2011 at 6:42pm — No Comments

जुर्रत हो गयी है

Ye Jurrat ho gayi hai

Mohabbat ho gayi hai



Use bahi ne maaraa



siyasat ho gayi hai



Zalimon bach ke rehna



Baghawat ho gayi hai



Yahan matam na ho gar



Shahadat ho gayi hai



Buzargon ka karoon kya



Wasiyat ho gayi hai



Fata bam aur kya ho



Mazzamat ho gayi hai

ये जुर्रत हो गयी है

मोहब्बत हो गयी है



उसे भाई  ने…

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Added by Vishal Bagh on May 26, 2011 at 4:00pm — 1 Comment

अब किस के लिए ,

अधुरा जीवन जिऊँ  ,

अब किस के लिए ?



तू उनका ही नहीं हुआ .

जिन्होंने तुझे जन्म दिया,

बोल जी रहा हैं तू ,

अब किस के लिए ?



पैसा सब कुछ नहीं हैं ,

मगर पैसा ना हो ,

तो कुछ भी नहीं हैं ,

और तू पैसे के लिए ,



घरवार छोड़ दिया ,

तू आया साथ लाया ,

अपने बीबी और बच्चो को ,

उनको छोड़ दिया ,

सपने में भी उनको ,

एक गिलास पानी दिया ,

वो तुम्हारे पैसे को नहीं ,

तुम्हारी राह देखते हैं ,

उनके इस अधूरे…
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Added by Rash Bihari Ravi on May 26, 2011 at 1:30pm — No Comments


मुख्य प्रबंधक
ग़ज़ल : कुछ कड़वा सा एहसास

सभी रिश्ते है मतलब के ये मानो या न मानो तुम,
है मिलते प्यार में धोखे ये मानो या न मानो तुम,
 
रहूँ मैं राम भी बनके अगर हो भरत सा भाई,
है माता कैकई घर मे ये मानो या न मानो तुम,      
 
यकीं…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 25, 2011 at 5:00pm — 83 Comments

एक बार और

एक बार और



एक बार और जीने की ख्वाहिश हुई

और उमंगे सातवें आसमान छूने को है

एक बार और मन के बीज अंकुरित हुए

और दिल की सरहदें खुलने को है



असंभव कुछ पहले भी नही था

लेकिन इंद्रियां जुड़ नही रही थी

मन… Continue

Added by AJAY KANT on May 25, 2011 at 2:00pm — 1 Comment

GAZAL BY AZEEZ BELGAUMI

अहबाब ऐतबार के काबिल नहीं रहे

ये कैसे सर हैं ..! दार के काबिल नहीं रहे



जज़्बात इफ्तेखार के काबिल नहीं रहे

अब नवजवान प्यार के काबिल नहीं रहे



हम बेरुखी का बोझ उठाने से रह गए

कंधे अब ऐसे बार के काबिल नहीं रहे



ज़ागो ज़गन तो खैर, तनफ्फुर के थे शिकार

बुलबुल भी लालाज़ार के काबिल नहीं रहे



पस्पाइयौं के दौर में यलगार क्या करें

कमज़ोर लोग वार के काबिल नहीं रहे



कांटे पिरो के लाये हैं अहबाब किस लिए

क्या हम गुलों के हार…

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Added by Azeez Belgaumi on May 25, 2011 at 12:15am — 7 Comments

इक मासूम ग़ज़ल

हर दिन जमाना दिल को मेरे आजमाता है

 मिलता है जो भी, बात उसकी ही चलाता है

 

मालूम है मुझको की आईना है सच्चा पर

ये आजकल, सूरत उसी, की ही दिखाता है

 

पीना नहीं चाहा कभी मैने यहाँ फिर भी

मयखाने का साकी, ज़बरदस्ती पिलाता है

 

सच है खुदा तू ही मदारी है जहाँ का बस

हम सब कहाँ है नाचते, तू ही नचाता है

 

"मासूम" अब रोना नहीं दुनिया मे ज़्यादा तुम

इस आँख का पानी उठा सैलाब लाता है

Added by Pallav Pancholi on May 25, 2011 at 12:00am — 3 Comments

आज एक बार फिर OBO पे मेरी कविता ,

क्या करू मन कहता हैं उसको मैंने लिखा ,

आज एक बार फिर OBO पे मेरी कविता ,
राजा दसरथ के चौथापन नहीं कोई संतान ,
फिर गुरु वसिष्ठ ने दिया उनको ज्ञान ,
हुई जग सफल और प्रभु लिए अवतार ,
राम लक्ष्मण भरत शत्रुधन भाई चार ,
चौदह साल की वनवास बोल दिए पिता ,
चल पड़े प्रभु राम संग लक्ष्मण और सीता ,
रावण ने…
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Added by Rash Bihari Ravi on May 24, 2011 at 7:30pm — 1 Comment

कुछ ख़ुदरा शे'र.......कुछ क़ता'त....

तेरे लब छू के, कोई हर्फ़-ए-दुआ हो जाता.

तू अगर चाहता, तो मैं भी ख़ुदा हो जाता.

====

तन्हाइयों में गीत लिखे, और गा लिए.

नाकाम दिल के दर्द हँसी में छुपा लिए.

कल शब जो ज़िंदगी से हुआ सामना "साबिर"

क़िस्से सुने कुछ उसके, कुछ अपने सुना लिए.

====

हमने तो तुझे अपना ख़ुदा मान लिया है,

अब तेरी रज़ा है कि करम कर या मिटा दे.…

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Added by डॉ. नमन दत्त on May 24, 2011 at 6:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल : दिल की बात आँखों से बताना...........

दिल की बात आँखों से बताना अच्छा लगता है.

झूठा ही सही पर आपका बहाना अच्छा लगता है.

 

छू जाती है धडकनों को मुस्कराहट आपकी,

 फिर शरमा के नज़रे झुकाना अच्छा लगता है.

 

मुरझे फूलों में ताजगी आती है आपको देखकर,

आप संग हो तो मौसम सुहाना अच्छा लगता है.

 

बिन बरसात के ही अम्बर में घिर आते है बादल,

आपकी सुरमई जुल्फों का लहराना अच्छा लगता है.

 

जंग तन्हाई के संग हम लड़ते है रात-दिन,

देर से ही सही पर आपका आना अच्छा…

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Added by Noorain Ansari on May 24, 2011 at 1:00pm — 3 Comments

मेरे चमड़े का जूता

इन गर्मियों में,

अकस्मात् छाये बादल,

कहते हैं की,

हम नहीं बरसेंगे...

तो क्या हम यूँ ही,

मोतियों को तरसेंगे....

पर मैं जानता हूँ,

की आज नहीं तो कल,

ये बरसेंगे...

क्योंकि मेरे पास,

पानियों का अभाव है,

और बरसना तो,

बादलों का स्वभाव है...



आँख मिचौली खेलती धूप,

कहती है मुझे पकड़ो,

और हर बार,

छिटक कर दूर चली जाती है,

और मेरे मायूस होने पर,

फिर पास चली आती है...

मैं जानता हूँ की,

वो मुझे चिढ़ाती है,

उसके और मेरे… Continue

Added by neeraj tripathi on May 24, 2011 at 12:00pm — 1 Comment

ग़ज़ल : हो गयी नंगी सियासत, वजह क्या है ?

 

ग़ज़ल

भूख-वहशी , भ्रम -इबादत वजह क्या है

हो गयी नंगी सियासत, वजह क्या है ?

 

मछलियों को श्वेत बगुलों की तरफ से -

मिल रही क्या खूब दावत, वजह क्या है ?

 

राजपथ पर लड़ रहे हैं भेडिये सब…

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Added by Ravindra Prabhat on May 24, 2011 at 11:31am — 2 Comments

ग़ज़ल : सूरज उगता है तो सब यादें सो जाती हैं

चंदा तारे बन रजनी में नभ को जाती हैं।
सूरज उगता है तो सब यादें सो जाती हैं।

आँखों में जब तक बूँदें तब तक इनका हिस्सा
निकलें तो खारा पानी बनकर खो जाती हैं।

खुशबूदार हवाएँ कितनी भी हो जाएँ पर
मरती हैं मीनें जल से बाहर जो जाती हैं।

सागर में बारिश का कारण तट पर घन लिखते
लहरें आकर पल भर में सबकुछ धो जाती हैं।

भिन्न उजाले में लगती हैं यूँ तो सब शक्लें
किंतु अँधेरे में जाकर इक सी हो जाती हैं।

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 23, 2011 at 10:50pm — 3 Comments

इबादत...

 

उखाड़ दो खूंटे ज़मीन से इबादतगाहों के ,

 

उतारो गुम्बद,

 

समेटो खम्भे,

 

उधेड़ दो सारे मंदिर-मस्जिदों के धागे,

 

मिट्टी-पत्थरों में ख़ुदा नहीं बसता,

 

सुकूँ…

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Added by Veerendra Jain on May 23, 2011 at 1:40pm — 10 Comments

मात मिली

रस्ते रस्ते बात मिली 
नुक्कड़ नुक्कड़ घात मिली
 
चिंदी चिंदी दिन पाए है
 क़तरा क़तरा रात मिली
 
सिला करोड़ योनियों का है
ये मानुष की जात मिली
 
बादल लुका-छिपी करते थे 
कभी कभी बरसात मिली
 
चाहा एक समंदर पाना 
क़तरों की औकात मिली
 
जीवन को जीना चाहा पर 
सपनों की…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 23, 2011 at 11:30am — 3 Comments

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