क्या भरोसा जिन्दगी का कल रहे या ना रहे।
क्या पता यह बुलबुला कुछ पल रहे या ना रहे।।
है भयंकर इक समन्दर ये जहाँ उठ्ठे तूफां,
तैरती कागज की कश्ती तेज मौजों में यहाँ।
है किसे मालूम कब ये गल रहे या ना रहे।।
पूरी हो पायेंगी शायद ही खुशी ओ ख्वाहिशें,
मिट्टी के इस ढेले पे होतीं गमों की बारिशें।
क्या पता पानी में कब ये घुल रहे या ना रहे ।।
हो गई मुश्किल न कम है जिन्दगी अब बोझ से,
मौत रूपी माशूका की गोद में सब…
ContinuePosted on June 30, 2011 at 8:00am
गाँधीवादी गुण्डों ने ही लूट लिया गाँधी का देश
जात पात मजहब पंथों में फूट लिया गाँधी का देश॥
रघुपति राघव राजाराम मंदिर के कारण बदनाम,
ईश्वर या अल्लाह का नाम अब करवाता कत्ले-आम।
सत्य प्रेम की पगडंडी से छूट लिया गाँधी का देश॥
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई बन बैठे हैं आज कसाई,
चंगुल में हैवानों के मानवता बकरी सी आयी।
कर हलाल हैं रहे हाय! अब टूट लिया गाँधी का देश ।।
गाँधी जी का धर्म अहिंसा, इनका है…
ContinuePosted on June 3, 2011 at 8:28am — 2 Comments
निम्नांकित पद्यों में घनाक्षरी छंद है, ‘कवित्त’ और ‘मनहरण’ भी इसी छन्द के अन्य नाम हैं। इसमें चार पंक्तियाँ होती है और प्रत्येक पंक्ति में ३१, ३१ वर्ण होते हैं। क्रमशः ८, ८, ८, ७ पर यति और विराम का विधान है, परन्तु सिद्धहस्त कतिपय कवि प्रवाह की परिपक्वता के कारण यति-नियम की परवाह नहीं भी करते हैं। यह छन्द यों तो सभी रसों के लिए उपयुक्त है, परन्तु वीर और शृंगार रस का परिपाक उसमें पूर्णतया होता है। इसीलिए हिन्दी साहित्य के इतिहास के चारों कालों में इसका बोलबाला रहा है। मैं इस छन्द को छन्दों का…
ContinuePosted on May 31, 2011 at 8:19am — 9 Comments
Posted on May 27, 2011 at 8:46am — 1 Comment
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Comment Wall (8 comments)
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...
janamdin mubarak ho
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…