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ग़ज़ल : सूरज उगता है तो सब यादें सो जाती हैं

चंदा तारे बन रजनी में नभ को जाती हैं।
सूरज उगता है तो सब यादें सो जाती हैं।

आँखों में जब तक बूँदें तब तक इनका हिस्सा
निकलें तो खारा पानी बनकर खो जाती हैं।

खुशबूदार हवाएँ कितनी भी हो जाएँ पर
मरती हैं मीनें जल से बाहर जो जाती हैं।

सागर में बारिश का कारण तट पर घन लिखते
लहरें आकर पल भर में सबकुछ धो जाती हैं।

भिन्न उजाले में लगती हैं यूँ तो सब शक्लें
किंतु अँधेरे में जाकर इक सी हो जाती हैं।

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Comment by Rash Bihari Ravi on June 4, 2011 at 5:13pm

भिन्न उजाले में लगती हैं यूँ तो सब शक्लें
किंतु अँधेरे में जाकर इक सी हो जाती हैं।

 

vah kya bat hain 

Comment by Ravindra Prabhat on May 24, 2011 at 11:21am
अच्छी ग़ज़ल, बहुत बहुत बधाई !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 24, 2011 at 11:04am
धर्मेन्द्र भाई, सुंदर ख्यालों से सजी अच्छी ग़ज़ल कही है आपने, अंतिम शेर का कहन बहुत ही सुंदर लगा, बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल हेतु |

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