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ऐ ज़िन्दगी कभी तो मुझपे मेहरबां हो जा

ऐ ज़िन्दगी कभी तो मुझपे मेहरबां हो जा,

या तो इस तरह उलझ जा कि आसां हो जा

 

जीने का फन ज़माने में कितना मुश्किल है,

आजमाने के लिए मेरी हमनवां हो जा



या तो इतना तू हुनर दे कि रश्क हो खुद पर,

या इस कदर तू बिखर जा कि रायदां हो जा



रोज़ इक रंग नया रूप नया होता है,

तू कभी अपने सवालों पे ही हैरां हो जा

 


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