क्या पता ईमान की इतनी कमी हो जाएगी॥
चंद सिक्कों के लिए नीयत बुरी हो जाएगी॥
…
"चल कल्लुआ जल्दी से दारु पिला, आज मैं बहुत खुश हूँ |"…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 14, 2012 at 3:30pm — 36 Comments
आदरणीया/आदरणीय गुरुमां, गुरुजनों और मेरे प्रिय मित्रों. आज पहली बार मैंने ओ.बी.ओ पर ग़ज़ल की कक्षा से सीख कर एक ग़ज़ल लिखने का प्रयास किया है. कृप्या मेरा मार्ग दर्शन करें कि मैंने कहाँ पर त्रुटी की है. सभी को सादर प्रणाम.
दो घूंट भरके पी ले, बड़ी उम्दा शराब है,
ए दोस्त तेरी प्यार में किस्मत ख़राब है,
धोखा है, बेवफा है, ये हुस्न है फरेबी,…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 14, 2012 at 1:30pm — 8 Comments
कह मुकरियाँ
एक प्रयास किया है मुकरियाँ लिखने का दोस्तों आशा करता हूँ मार्गदर्शन मिलेगा
जब आती है नए ख्वाब दिखाती है
फिर अपनी बात से ही मुकर जाती है
उसको होती नहीं फिर हमारी दरकार
क्या मित्र सजनी ??? ना मित्र सरकार
जब आती है कली कली खिल जाती है
भंवरों के गुन्जन को गती मिल जाती है
उसके आने से मिल जाए दिल को करार
क्या मित्र सजनी ??? ना मित्र बहार
उसके बिना सब फीका सा लगता है
छप्पन भोग भी नीका न…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 14, 2012 at 1:16pm — 7 Comments
ढोल- नगाड़े
हाथी- घोड़े
आतिशबाजी
इतने रंग
सब हैं संग
कभी पालकी लिए
कभी रणभूमि
कभी रंगभूमि
चले जा रहे हैं
भागे जा रहे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 14, 2012 at 10:59am — 4 Comments
Added by rajkaran on July 13, 2012 at 10:31pm — 4 Comments
नयन लड़ाना पाप नहीं है बाबाजी
प्यार जताना पाप नहीं है बाबाजी
अगर पड़ोसन पट जाये तो उसके घर
आना - जाना पाप नहीं है बाबाजी
बीवी बोर करे तो कुछ दिन साली से
काम चलाना पाप नहीं है बाबाजी
पत्नी रंगेहाथ पकड़ ले तो उसके
पाँव दबाना पाप नहीं है बाबाजी
रोज़ सुबह उठ, अपनी पत्नी की खातिर
चाय बनाना पाप नहीं है बाबाजी
वेतन से यदि कार खरीदी न जाये
रिश्वत खाना पाप नहीं है बाबाजी
'अलबेला' हर व्यक्ति यहाँ…
Added by Albela Khatri on July 13, 2012 at 7:30pm — 30 Comments
"मौन एक सशक्त अभिव्यक्ति है "
लब खामोश हैं
कुछ कम्पन है
कहना चाह रहे हैं
पर खामोश हैं
फिर भी कोई तो है
जो कर रहा है बात
चुप चुप…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 6:30pm — 3 Comments
ताज महल
चंचल हिरनी मृग नयनी
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 13, 2012 at 6:28pm — 12 Comments
कब बदलोगे
कभी मस्जिद में ले चलना कभी मंदिर में आओ तुम
वहीँ से चर्च में चल देंगे मिलजुलकर हम और तुम
यह दर-ओ-दीवार मज़हव की कहीं आड़े न आ जाए
कहीं इंसानियत के फूल को कम्बखत खा जाए
बदलो सोच को अपनी झाँको दिल के बाहर भी
घटिया सोच के दायरे में कहीं हो जाएँ न हम गुम
यह मेरा दावा है गुरूद्वारे में भी राम बसते हैं
ज़रा तू मान ले यह बात दीपक 'कुल्लुवी' की भी सुन…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on July 13, 2012 at 5:02pm — 6 Comments
कभी अपने नाखून देखे हैं
अपने अल्फाजों के नाखून
हाँ यही बहुत पैने हैं तीखे हैं
चुभते हैं
ज़रा तराश लो इन्हें
इनकी खरोंचों से चुभन होती है
ये विदीर्ण कर जाते हैं
मेरे मोम से कोमल ह्रदय को…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 2:59pm — 9 Comments
क्या पता ईमान की इतनी कमी हो जाएगी॥
चंद सिक्कों के लिए नीयत बुरी हो जाएगी॥
…
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 13, 2012 at 11:00am — 11 Comments
दिल खोलकर सखियों में मेरा ज़िक्र करती थी,
ज़रा सी देर क्या हो जाए बहुत फिक्र करती थी.........
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......
अश्क आँखों में जब आता है, दर्द जब मुझको सताता है,
जब उदास हो जाता है मन, जब बढ़ जाती है उलझन,
तेरी याद आती है माँ, हाँ…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2012 at 10:30am — 21 Comments
सब रह जाएगा
कहीं किडनी फेल कहीं हार्ट फेल
कुदरत के हैं यह अजीब खेल
कर्म किए हैं तूने जैसे
वैसी ही अब सज़ा तू झेल
भूल गया था तू औकात
कुछ भी तुझको रहा न याद
बहुत हँसा अब रोएगा तू
कौन सुने तेरी फरियाद
वोह ऊपर बैठा सब देखे है
कर्मों के ही सब लेखे हैं
इंसाफ़ करेगा वोह तो ज़रूर
मिटा के रहेगा तेरा गरूर
जीवन में चाहे कुछ भी करना
किसी के हक से घर न भरना
धन दौलत यहीं रह जाएगा
अपनी हस्ती पे गुमाँ न…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on July 13, 2012 at 10:00am — 6 Comments
सब जानते हैं
क्या चल रहा है
कैसे चल रहा है
हल भी है
लेकिन चुप है
क्यूंकि इनके दिलों ने
धडकना छोड़ दिया है
वो केवल फड-फडाता है
घुटन पसंद हैं इन्हें…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 10:00am — 12 Comments
झूमो, नाचो, मौज मनाओ बाबाजी
जीवन का आनन्द उठाओ बाबाजी
ये क्या, जब देखो तब रोते रहते हो ?
घड़ी दो घड़ी तो मुस्काओ बाबाजी
मुझ जैसे मसखरे का चेला बन जाओ
दिवस रैन दुनिया को हँसाओ बाबाजी
ये सब नेता रक्तपिपासु कीड़े हैं
इनसे मत कुछ आस लगाओ बाबाजी
जनता के दुःख को जो अपना दुःख समझे
अब ऐसी सरकार बनाओ बाबाजी
एक मिनट में ऐसी-तैसी कर देगी
बीवी को मत आँख दिखाओ बाबाजी
ओ बी ओ की परिपाटी है…
Added by Albela Khatri on July 13, 2012 at 9:00am — 34 Comments
रास्तों में मुश्किलें हैं आज इनसे होड़ ले.
जिन्दगी भी रेस है तू दम लगा के दौड़ ले.
मंजिलें अलग-अलग हैं रास्ते जुदा-जुदा,
गर तू पीछे रह गया तो साथ देगा क्या खुदा,
हिम्मतों से काम लेके रुख हवा का मोड़ ले.
जिन्दगी भी रेस है तू दम लगा…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on July 13, 2012 at 1:00am — 32 Comments
रुस्तमे-हिन्द दारासिंह के देहावसान पर उनके प्रशंसक अलबेला खत्री की विनम्र शब्दांजलि
नील गगन के पार गया है बाबाजी
छोड़ के यह संसार गया है बाबाजी
हरा सका न कोई जिसे अखाड़े में
मौत से वह भी हार गया है बाबाजी
देवों को कुछ दाव सिखाने कुश्ती के
कुश्ती का सरदार गया है बाबाजी
अपनी माता के संग भारत माता का
सारा क़र्ज़ उतार गया है बाबाजी
हाय! रुस्तमे-हिन्द को कैसा रोग लगा
हर इलाज बेकार गया है…
Added by Albela Khatri on July 12, 2012 at 9:30pm — 25 Comments
परिवर्तन के नाम पर ,अलग -अलग है सोच
किसी ने वरदान कहा ,इसे किसी ने बोझ ||
परिवर्तन वरदान है ,या कोई अभिशाप
एक को बांटे खुशियाँ ,दूजे को संताप ||
विघटित करके देश के ,कई प्रांत बनवाय
महा नगर विघटित हुए ,इक -इक शहर बसाय||
शहर- शहर विघटित हुए ,और बन गए ग्राम
ग्रामों में गलियाँ बनी ,परिवर्तन से धाम||
घर बाँट दीवार कहे ,परिवर्तन की खोज
बूढ़े मात -पिता कहें ,ये छाती पर सोज ||
जो नियम भगवान् रचे ,वो…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 12, 2012 at 9:00pm — 27 Comments
मित्रों दोहों के रूप में कुछ अपने जीवन के अनुभव और विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ अपने विचार अवश्य रखें प्रसन्नता होगी
==========दोहे =========
पीर पराई देख के , नैनन नीर बहाय
दया जीव पे जो करे, वो मानव कहलाय
सब धर्मों का एक ही, तीरथ भारत देश
सबको देता ये शरण, कैसा भी हो वेश
मोक्ष आखिरी लक्ष्य है, हर मानव का दीप
मोती पाना कठिन है, गहरे सागर सीप
दीप जलाओ ज्ञान का, मन से मन का मेल
बाती जिसमें शास्त्र की, रीतों का हो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 8:38pm — 9 Comments
देखो
तूफ़ान उठ रहा है
सागर मचल रहा है
लहरें उठ रही हैं
आसमान छू लेने को
चल रहा अपनी धुन में
दुनिया से बेखबर
स्वतंत्र
बाधाओं को लांघते…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 6:23pm — 6 Comments
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