देखो
तूफ़ान उठ रहा है
सागर मचल रहा है
लहरें उठ रही हैं
आसमान छू लेने को
चल रहा अपनी धुन में
दुनिया से बेखबर
स्वतंत्र
बाधाओं को लांघते
चाहत है उसे
बनाने की एक पहचान
खुद की पहचान
वो स्वयं सूर्य है
चन्द्र भी है
उसका विस्तार
धरती भी है
आसमान भी है
वो क्षितज भी है
देखो उसे
कहीं ये सच में न निकल जाए
हवाओं से आगे
तुम्हारे आस्तित्व को मिटा के
स्वयं की पहचान बनाते
देखो उसे
बिछाओ जाल
जात का पात
मंदिरों मस्जिदों को
फेंको पासे
दिवा स्वप्नों के
जाने न दो उसे हवाओं से आगे
विफलता के काले बादलों से डराओ उसे
देखो वो जा रहा है
सीमाओं का पाठ पढाओ उसे
दीवार बनाओ
विस्तार को रोक लो
देखो अगर वो निकल गया
तो कौन कहेगा हमें स्वयंभू
हम हैं स्वयंभू
जन्मजात
सारे अधिकार हमें हैं
फिर कौन पूछेगा हमें
रोको इसे
रोक लो
उठते तूफ़ान को
इस भूचाल को
रोक लो
इन उठती लहरों को विराम दो
दिखाओ उसे
गुलामी की तस्वीरें
वो लाठी चार्ज
वो दहशत गर्दी
वो गुंडागर्दी
आतंकवाद
नक्शल्वाद
ठंडा कर दो ये जूनून
रोक लो
उसे
वरना सिंघासन छोड़ना होगा
सबको
हम पूजित देवों को
ये युवा है
रोक लो इसके प्रवाह को
रोक लो रोक लो
रोक सको तो रोक लो
ये युवा है ये युवा है
रक्त के उबाल को रोक लो
ये युवा है
संदीप पटेल "दीप"
Comment
सदीप जी
वाकई रक्त प्रवाहित करती हुई रचना जोश की कलम चली
रोक सको तो रोक लो, ये युवा है ये युवा है, रक्त के उबाल को रोक लो
ये युवा है, वाह भाई संदीप पटेल "दीप"जी अच्छी रचना आखिर हम भी तो युवा है
लगता है आज जोश भरे दिन से अच्छी शुरुआत होनी है तभी तो अम्बरीश जी के
जिन्दी का गीत और अब आपका रक्त के उबल को रोकने का गीत पढने का मौका मिला है
बहुत सुंदर रचना बहुत बधाई आपको
रोक लो
उसे
वरना सिंघासन छोड़ना होगा
सबको
हम पूजित देवों को
ये युवा है
रोक लो इसके प्रवाह को
बहुत खूब कविता ........
झकझोर देने वाला शिल्प और आग्नेय शब्दावली........
जय हो आपकी
जाने न दो उसे हवाओं से आगे
विफलता के काले बादलों से डराओ उसे
देखो वो जा रहा है
सीमाओं का पाठ पढाओ उसे
दीवार बनाओ
विस्तार को रोक लो
___वाह वाह संदीप पटेल जी...बधाई !
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