कब बदलोगे
कभी मस्जिद में ले चलना कभी मंदिर में आओ तुम
वहीँ से चर्च में चल देंगे मिलजुलकर हम और तुम
यह दर-ओ-दीवार मज़हव की कहीं आड़े न आ जाए
कहीं इंसानियत के फूल को कम्बखत खा जाए
बदलो सोच को अपनी झाँको दिल के बाहर भी
घटिया सोच के दायरे में कहीं हो जाएँ न हम गुम
यह मेरा दावा है गुरूद्वारे में भी राम बसते हैं
ज़रा तू मान ले यह बात दीपक 'कुल्लुवी' की भी सुन
दीपक कुल्लुवी
13 जून 2012 .
09350078399
Comment
HAM SABKO APNE ANTARMAN MEN JHANKNE KI ZAROORAT HAI..........
DHANYABAD
DEEPAK KULUVI
09350078399
यह दर-ओ-दीवार मज़हव की कहीं आड़े न आ जाए
कहीं इंसानियत के फूल को कम्बखत खा जाए
बदलो सोच को अपनी झाँको दिल के बाहर भी
घटिया सोच के दायरे में कहीं हो जाएँ न हम गुम
प्रिय दीपक जी ..बहुत सुन्दर सन्देश देती रचना ...आइये अपने अंतर्मन में झांके और हम कितने पानी में हैं कितने खरे इस पर आंकें
shukriya
Rekha Ji,Albela ji,patel ji.....for appriciating my Kab Badloge..
दीपक जी ,अति सुंदर रचना ,बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर रचना दीपक कुल्लुवी जी
बधाई आपको.......
जय हो !
बहुत सच्ची बात कही है आपने
जिसकी सल्तनत तिनके तिनके में है उसे कहाँ ढूंढते भटकते हैं
खुद तो भटकते हैं दूसरों को भी भटकाते हैं
उसे तो जहां देखो वो ही वो है
उसके अतिरक्त है कौन
कोई भी नहीं
कोई भी नहीं
आपको सादर बधाई
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