क्यों आ गया मैं हाय कभी हाथ छुड़ा कर,
तड़पता हूँ के अब रोज़ तिरे दिल को दुखा कर।
आज नदामत से पथरा गई हैं ये आंखें
आजा के बस इक बार तो आंचल से हवा कर।
दिन को सुकूँ शब को भी आराम नहीं है,
हवा भी चली आज ये नश्तर से चुभा कर।
अब ए दिल मुझे हयात की ख्वाहिश नहीं रही,
आया है वो मुकाम के मरने की दुआ कर।
दरे मौत पे आकर अटका है ये 'इमरान'
आ जा के मिरे जिस्म से ये रूह जुदा कर।
इमरान…
ContinueAdded by इमरान खान on September 15, 2011 at 2:23pm — 4 Comments
Added by mohinichordia on September 15, 2011 at 11:25am — 1 Comment
वो मासूम सा लड़का उसे बचपन से भला लगता था ,छोटी छोटी सी आँखें,घुंघराले बाल ,वो हमेशा से छुप छुप के उसे देखती आई थी ,जब वो अपना बल्ला लेकर खेलने जाता, अपने दीदी की चोटी खींचकर भाग जाता, मोहल्ले के बच्चो के साथ गिल्ली डंडा खेलता हर बार वो बस उसे चुपके से निहार लिया करती थी. जैसे उसे बस एक बार देख लेने भर से इसकी आँखों को गंगाजल की पावन बूदों सा अहसास मिल जाता था . घर की छत पर खड़ा होकर जब वो पतंग उडाता वो उसे कनखियों से देखा करती थी जेसे जेसे उसकी पतंग आसमान में ऊपर जाती, इसका दिल भी जोरों…
ContinueAdded by kanupriya Gupta on September 15, 2011 at 10:30am — No Comments
हिंदी-दिवस मनाना, है असल में बहाना |
Added by Shashi Mehra on September 15, 2011 at 9:30am — 1 Comment
हिंदी प्रसार
Added by Shashi Mehra on September 15, 2011 at 9:00am — 3 Comments
कितना अच्छा लगता है
कभी खुद से खोकर
खुद को ढूँढना.
बीती हुई गलतियों पर
एक निर्पेक्ष दृष्टिपात;
गुजरे रास्तों…
ContinueAdded by Kailash C Sharma on September 14, 2011 at 2:30pm — 7 Comments
मैं स्त्री हूँ रत्नगर्भा ,धारिणी,
पालक हूँ, पोषक हूँ
अन्नपूर्णा,
रम्भा ,कमला ,मोहिनी स्वरूपा
रिद्धि- सिद्धि भी मैं ही ,
शक्ति स्वरूपा ,दुर्गा काली ,महाकाली ,…
Added by mohinichordia on September 14, 2011 at 1:00pm — 7 Comments
मुक्तिका
अब हिंदी के देश में
संजीव 'सलिल'
*
करो न चिंता, हिंदी बोलो अब हिंदी के देश में.
गाँठ बँधी अंग्रेजी, खोलो अब हिंदी के देश में..
ममी-डैड का पीछा छोड़ो, पाँव पड़ो माँ-बापू के...
शू तज पहन पन्हैया डोलो, अब हिंदी के देश में
बहुत लड़ाया राजनीति ने भाषाओँ के नाम पर.
मिलकर गले प्रेम रस घोलो अब हिंदी के देश में..
'जैक एंड जिल' को नहीं समझते, 'चंदा मामा' भाता है.
नहीं टेम्स गंगा से तोलो अब हिंदी के देश में..…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 14, 2011 at 8:30am — 8 Comments
अभियंता दिवस १५ सितम्बर पर विशेष आलेख:
तकनीकी गतिविधियाँ राष्ट्रीय भाषा में
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
राष्ट्र गौरव की प्रतीक राष्ट्र भाषा:
किसी राष्ट्र की संप्रभुता के प्रतीक संविधान, ध्वज, राष्ट्रगान, राज भाषा, तथा राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह (पशु, पक्षी आदि) होते हैं. संविधान के अनुसार भारत लोक कल्याणकारी गणराज्य है, तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज है, 'जन गण मन' राष्ट्रीय गान है, हिंदी राज भाषा है, सिंह राष्ट्रीय पशु तथा मयूर…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 14, 2011 at 8:00am — No Comments
कुछ कह न सके तुम, चुप सह न सके हम .
Added by Lata R.Ojha on September 14, 2011 at 12:00am — 10 Comments
Added by सुनीता शानू on September 13, 2011 at 11:23pm — 6 Comments
घर शिफ्टिंग के दौरान एक पुरानी diary हाथ लगी और गर्द झाड़ी तो यह रचना नमूदार हुई. इस पर तारीख अंकित थी 12-8-1999...मैने सोचा कच्ची उम्र और कच्ची सोच की यह रचना के सुधि पाठकों की नज़र की जाए.
तुम्हारी जो ख़बर हमें है
वो किसी और के पास कहाँ
देख लेता हूँ कहकहों में भी
आंसू के कतरे
ऐसी नजर किसी और के पास कहाँ
ज़माने ने ठोकरें दी पत्थर समझकर
तुने मुझे सहेज लिया मूरत समझकर
होगी अब हमारी गुजर
किसी और के पास कहाँ
उम्र भर देख लिया
बियाबान में…
Added by दुष्यंत सेवक on September 13, 2011 at 6:44pm — 6 Comments
Added by Anwesha Anjushree on September 13, 2011 at 4:51pm — 4 Comments
मैं हिफाज़त से तेरा दर्दो अलम रखती हूँ
और खुशी मान के दिल में तेरा ग़म रखती हूँ।
मुस्कुरा देती हूँ जब सामने आता है कोई
इस तरह तेरी जफ़ाओं का भरम रखती हूँ।
हारना मैं ने नहीं सीखा कभी मुश्किल से
मुश्किलों आओ दिखादूं मैं जो दम रखती हूँ।
मुस्कुराते हुए जाती हूँ हर इक महफ़िल में
आँख को सिर्फ़ मैं तन्हाई में नम रखती हूँ
है तेरा प्यार इबादत मेरी पूजा मेरी
नाम ले केर तेरा मंदिर में क़दम रखती हूँ।
दोस्तों से न गिला है न शिकायत है…
Added by siyasachdev on September 13, 2011 at 1:17am — 16 Comments
कोई पल ना बीतें काम के बिन हैं
रस्ते जीवन के बहुत कठिन हैं l
खुशी और गम के घूँट घूँट के
अभिलाषायें मन में अनगिन हैं l
साँस जभी तक आस तभी तक
सिमट रहे हर पल पल-छिन हैं l
काया ठगती है क्षमता घटती है
और बुझती सी साँसें बैरिन हैं l
ना होता हर दिन एक समाना
उम्मीदें भी लगतीं नामुमकिन हैं l
काम बहुत और समय रेत है
सब फिसल रहे हाथों से दिन हैं l
मंजिल है…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on September 13, 2011 at 12:30am — 2 Comments
बस एक छोटी सी कोशिश है लिखने की...
मन को मनाने के अंदाज निराले है
हुए नही वो हम ही उसके हवाले हैं
उसने कसम दी तो न पी अभी तक
हाथ में पकड़े लो खाली प्याले है
दिल की बात जुबां पर लाये भी कैसे
ये भीड़ नही बस उसके घरवाले हैं
बात छोटी सी भी वो समझे नही
चुप रहेंगे भला जो कहने वाले हैं
इन्तजार की भी होती है हद दोस्तों
रूक न पायेंगे हम जो मतवाले हैं
शानू
Added by सुनीता शानू on September 12, 2011 at 11:30pm — 8 Comments
अमावास की रात अब बहुत सुकून देती है
वो भी भादों की अमावास हो तो क्या कहने
उसके अलावा हर रात को…
Added by आशीष यादव on September 12, 2011 at 1:00pm — 16 Comments
बाक़ी रहा न मैं, न ग़मे-रोज़गार मेरे.
अब सिर्फ़ तू ही तू है परवरदिगार मेरे.
यारब हैं सर पे आने को कौन सी बलायें,
क्यूँ आज मेरी क़िस्मत है साज़गार मेरे.
बरसेगी और तुझपे ? उनके करम की बदली,…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on September 12, 2011 at 7:30am — 2 Comments
मुझे देख के एक लड़की, बस हौले -हौले हँसती है I
प्रेम - जाल मैं डाल के थक गया, पर कुड़ी नहीं फंसती हैI
रहती है मेरे पड़ोस में वो, कुछ चंचल कुछ शोख है वो I
ना गोरी - ना काली है, सांवली है मतवाली है I
झील सी गहरी आँखें हैं , ज़ुल्फ़ यूँ काली रातें हैं I
लहरों जैसी बल खाती, दुल्हन जैसी शरमाती I
चेहरा चाँद है पूनम का, होंठ सुमन है उपवन का I
नाम है उसका नील कमल, वो है ज़िंदा ताजमहल…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 12, 2011 at 12:00am — 3 Comments
न कोई गिला, न कोई शिकवा,
उनसे न मिलना भी है एक सजा;
न मिले हम उनसे तो दिल डूबा रहता है उनकी यादो में,
मिले अगर हम उनसे तो दिल डूबा रहता है अरमानो में;
डरते हैं हम कि कहीं हम बह न जाएँ इन अरमानो में,
कहीं रह न जाये बस वो मेरे खयालो में;
मेरी जिंदगी में बस यही कशमकश है,
और बस यही मेरी जिंदगी की उलझन है;
जितना उनको खोना है …
Added by Smrit Mishra on September 11, 2011 at 10:29pm — 2 Comments
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