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कोई बाबा निर्मल नहीं -

कोई बाबा निर्मल नहीं

सब मन के बड़े मैले हैं ,

दौलत के ढेर पर बैठे

ये ठग बड़े लुटेरे हैं ,

व्यापार इनका धर्म है

धर्म का करते…

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Added by अरुण कान्त शुक्ला on April 14, 2012 at 12:30am — 11 Comments

" भीख "

मैं आपसे भीख मांगता हूँ...
क्या कभी आपसे किसी ने ऐसा कहा है,
उसको ऐसा क्यूँ लगा की
आपसे भीख मांगी जाए,
उसको कैसे यह अंदाज़ा है की आपके पास भीख है,
आपके पास भीख कहाँ से आई,
आपने किस से मांगी थी
भीख.....

© AjAy Kum@r ~

Added by AjAy Kumar Bohat on April 13, 2012 at 8:30pm — 6 Comments

विछोह

मेरा यार मुझसे जुदा हुआ,                                               

मेरी जान जैसे निकल गई.

मुझे प्यार उसका न मिल सका,

मेरी आह मुझमे ही मिल गई.

उसे चाहना या न चाहना

उसे पूजना या न पूजना 

मेरी चाहतों का हिसाब क्या,

मेरी रूह भी हो विकल गई..

मुझे प्यार उसका न मिल सका,

मेरी आह मुझमे ही मिल गई..

कोई…

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Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 13, 2012 at 8:00pm — 23 Comments

ये कौन सा मोड़ है जीवन का

ये कौन सा मोड़ है जीवन का 

जहा सिर्फ अंतर्द्वंद है 

यक़ीनन मै जनता हूँ 

हर उस  रास्ते को

जो मेरे चौराहे से गुजरता है 

परन्तु फिर भी मै अविचल हूँ 

यकीन मानो ,…

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Added by arunendra mishra on April 13, 2012 at 1:00pm — 10 Comments

हो न सका

हो न सका


ऐसे बिछुड़े दीदार हो न सका
बेवफाओं से प्यार हो न सका 
ऐसे बिछुड़े -------------
तुझको भूले न भूलना आया-२
हमको खोकर तुमने क्या पाया-२…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 13, 2012 at 12:25pm — 12 Comments

"जीवन-चक्र "

' जान ' तू मर गयी थी
सदियों पहले
और किसी को
पता न चला
कुछ भी..
और शायद
कोई बड़ी बात नहीं की,
तू मर गयी हो अब भी !
और..
पता न चल सके
मुझको भी /
हत्यारा कौन था ?
या
हत्यारा कौन है !
क्या करूँगा मैं यह जानकर
जबकि, एक हत्यारा तो हरदम
साथ रहता है
मेरे भी....
और
शनः - शनः जान रहा हूँ मैं की
निरंतर
होती रही इन हत्याओं का तारतम्य ही
है शायद
"जीवन-चक्र "
© AjAy Kum@r

Added by AjAy Kumar Bohat on April 13, 2012 at 8:47am — 5 Comments

"धूल से सने तीन किस्से "

धूल भरी आँधी चली, सारी धूल घर में आ गयी,
मगर आपके चरणों की धूल मेरे घर में नहीं आयी ,
आप कब आ रहे हैं मुझसे मिलने?

धूल भरी आंधी चली, सारी धूल घर में आ गयी,
आप तक पहुँचने के लिए, क्या सहारा लेना पड़ेगा आँधी का,
मुझ रास्ते की धूल को.....

धूल भरी आँधी चली, सब और धूल ही धूल छा गयी,
ओह्ह , आप तो घर के खिड़की दरवाज़े सब बंद रखते हैं,
ये गोग़ल्स भी आप पर खूब फबते हैं....

.
© AjAy Kum@r

Added by AjAy Kumar Bohat on April 13, 2012 at 8:30am — No Comments

कोख में ही मार दिया ?

जंग से जमीन में 

घाव बहुत होते हैं 

जख्म गर भरे भी तो 

रोम-रोम रोते हैं !

--------------------

इन्सां ने इन्सां को 

इन्सां सा प्यार दिया 

स्वर्ग धरा लाये आज …

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 12, 2012 at 10:30pm — 12 Comments

विकास कहां रुकेगा

(प्रस्तुत रचना 'सार' छन्द पर आधारित है।इसके अनुसार छन्द के प्रत्येक चरण में 28 मात्रायें होती हैं,16वीं तथा 12वीं मात्रा पर यति होती है।चरणान्त में दो गुरु अवश्य होने चाहिए।)



जीवन का आधार कहां है,आफत सिर पर भारी।

अपने में ही लिप्त घूमती,पागल दुनिया सारी॥

समय नहीं है पास किसी के,जीवन भागा दौड़ी।

प्यार-व्यार का रिश्ता झूठा,नफरत दरिया चौड़ी॥

कहां बची है वही मनुजता,मानव कहां पुराना।

और अधिक विकसित है दुनिया,मार्डन हुआ जमाना॥

वृद्धों का सम्मान कहां है,छूकर चरन… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 12, 2012 at 8:00pm — 13 Comments

सात जनम का सपना

आप में ही है यह सलीका,
जो कपडे भी- 
सहेजकर रखते हो |
एक थे मंत्री-
दिन में चार बार बदलते थे 
पत्रकार की नजर में आगये 
उनके दिन फिरगए-
मंत्री पद से चले गए…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 12, 2012 at 7:00pm — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
पिघलते हिमनद

सो रही है दुनिया सारी

तुम हर पल क्यूँ सजग रहे 

कौन व्यथा है दबी हिय में 

किस अगन में संत्रस्त रहे |

घूर रहे क्यूँ रक्तिम चक्षु 

कुपित अधर क्यूँ फड़क रहे 

दावानल से केश खुले क्यूँ 

तन से शोले भड़क रहे |

प्रदूषण ने ध्वस्त किये 

जो, बहु  तेरे संबल रहे 

कतरा -कतरा टूट-टूट कर 

चुपके -चुपके पिघल रहे…

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Added by rajesh kumari on April 12, 2012 at 6:30pm — 19 Comments

प्यार का ख्याल.....

प्यार  का ख्याल.....

प्यार  का ख्याल गर खाब मैं ही हो आये, 

तो ज़िन्दगी खूब से खूबतर हो जाये.

हर आँख से…

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Added by Monika Jain on April 12, 2012 at 4:31pm — 5 Comments

हक़ीकत

 हक़ीकत


आज नहीं तो कल सबके ही दिन आएँगे

सुंदर दिखते चेहरे इक दिन बदसूरत हो जाएँगे
फिर न दिखेगी चमक…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 12, 2012 at 12:48pm — No Comments

नदी सी मैं ...

जिंदगी के चंद टुकड़े
यूँही
बिखरने दिया
कभी यूँही
उड़ने दिया
संभाल कर जब कभी
रखना चाहा
समय ने ना रहने दिया
नदी सी मैं
बहती रही
कभी मचलती रही
कभी उफनती रही
तोड़ किनारा
जब भी बहना चाहा
बांधो( बन्धनों) से और भी
जकड़ा पाया
गंदे नाले हों
या शीतल धारा
जो भी मिला
अपना बना डाला
जिंदगी
कभी नदी सी
कभी टुकड़ो सी
जैसे भी पाया
बस जी डाला

Added by MAHIMA SHREE on April 12, 2012 at 11:45am — 12 Comments

मै भी लड़ना चाहती हूँ!

मै भी लड़ना चाहती हूँ! मुझे लड़ने दो!

हार का मै स्वाद चखना चाहती हूँ.

जीत का अभ्यास करना चाहती हूँ.

.

प्रेयसी बन बन के हो गई हूँ बोर!

मै नए किरदार बनना चाहती हूँ.

मै भी जिम्मेदार बनना चाहती हूँ.

.

सीता-गीता मेरे अब नाम मत रखो!

धनुष का मै तीर बनाना चाहती हूँ,

गरल पीकर रूद्र बनना चाहती हूँ.

.

अपने पास ही रखो हमदर्दी अपनी!

खड़े होकर सफ़र करना चाहती हूँ,

'बसो' का मै ड्राइवर बनना चाहती हूँ.

मै…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 12, 2012 at 11:03am — 10 Comments

हक़ीकत

हक़ीकत


आज नहीं तो कल सबके ही दिन आएँगे

सुंदर दिखते चेहरे इक दिन बदसूरत हो जाएँगे
फिर न दिखेगी चमक दमक सब फीका हो जाएगा…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 12, 2012 at 10:33am — 2 Comments

हमें माफ़ कर दो आफरीन.....

प्रिय आफरीन, 
हम तुम्हे पहले से कहाँ जानते थे. वो तो जब तुम्हारे अपने  पापा ने तुम्हारी जान लेने की कोशिश की तब अख़बार वालो ने हमें तुम्हारे बारे में बताया...पूरे पाँच दिन तुम ज़िन्दगी और मौत की लड़ाई लडती रही , लेकिन अफ़सोस .....हार गयी.....हमारा तुमसे कोई रिश्ता कहाँ है, लेकिन इन पांच दिनों में, एक एक पल हम तुम्हारे लिए बेचैन रहे , और आज ...जब तुम चुपचाप जिंदगी से लड़ते लड़ते, हार कर अपनी दुनिया में लौट गयी.....बता…
Continue

Added by Sarita Sinha on April 12, 2012 at 10:00am — 24 Comments

कुछ हाइकू

 
ईमानदार
बेईमानी बचाता
थक ही गया

 
इन्सान ही हैं
दिन गुजारते जो
तंग गली में

 
जिन्दा दिल हैं
काश समझ पाते
जिन्दा दिल को
 
 
 
बड़ा खतरा
बाहर वाले नहीं
अपने ही हैं

Added by Neelam Upadhyaya on April 12, 2012 at 10:00am — 2 Comments

कविता : सिस्टम

मच्छर आवाज़ उठाता है

‘सिस्टम’ ताली बजाकर मार देता है

और ‘मीडिया’ को दिखाता है भूखे मच्छर का खून

अपना खून कहकर

 

मच्छर बंदूक उठाते हैं

‘सिस्टम’ ‘मलेरिया’ ‘मलेरिया’ चिल्लाता है

और सारे घर में जहर फैला देता है

 

अंग बागी हो जाते हैं

‘सिस्टम’ सड़न पैदा होने का डर दिखालाता है

बागी अंग काटकर जला दिए जाते हैं

उनकी जगह तुरंत उग आते हैं नये अंग

 

‘सिस्टम’ के पास नहीं है खून बनाने वाली…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2012 at 8:30pm — 8 Comments

किसका किसका हिसाब बाक़ी है

किसका किसका हिसाब बाक़ी है,

जाने क्या क्या अज़ाब बाक़ी है......

नब्ज़ देखो अभी भी चलती है,

हसरते टूट गयीं जान अब भी बाक़ी है.....

दिलों के ज़ख्म हैं आँखों की राह रिसते हैं,

तुम समझते हो कि आँसू हमारे बाक़ी हैं.....

सुनो एक बात पूछनी थी, मगर रहने दो,

तुम को क्या पता एहसास कहाँ बाक़ी है.....

मेरे गुनाहों की…

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Added by Sarita Sinha on April 11, 2012 at 6:11pm — 15 Comments

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