बात इतनी बढ़ी के कहर हो गयी;
हमको बचपन में क़ैदे उमर हो गयी;
*
बात कानों में घुलती शहद की तरह,
रात ही रात में क्यूँ ज़हर हो…
ContinueAdded by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 4, 2012 at 9:30am — 21 Comments
काँटे, काँटे क्यों बनते हैं,
बन सकते हैं जब वो फूल,
एक डाल पर एक रस पीकर,
कैसे बन जाते हैं शूल?…
ContinueAdded by Neeraj Dwivedi on May 4, 2012 at 8:30am — 7 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 3, 2012 at 5:55pm — 9 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 3, 2012 at 5:37pm — 10 Comments
मुफलिसी में दिन बिताने वाले
पी के आंसू, घुड़कियाँ खाने वाले,
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 3, 2012 at 12:00pm — 18 Comments
हाइकू…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on May 2, 2012 at 12:47pm — 13 Comments
आत्म-विश्वास से सरोबर
आत्मविश्वास से लबालब सरोबार,
आशा है पौ फटते ही- सुबह जरूर आएँगी,
भंवरों क़ी गुन -गुन, कोयलक़ी कुहू-कुहू,…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 2, 2012 at 9:30am — 3 Comments
ये साथ बिताए लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे,
जब सोचोगे हो तन्हा तो तुमको तड़पायेंगे।।।।
वो फर्स्ट…
Added by आशीष यादव on May 1, 2012 at 10:30pm — 14 Comments
दो चार दिनों का जीवन मेरा,
क्या पाया है मैंने अब तक,
मुझसे कोई क्या सीखेगा,
कितनी दुनिया देखी अब तक।…
ContinueAdded by Neeraj Dwivedi on May 1, 2012 at 10:03pm — 5 Comments
मेरे लिए
क्या शहर ,क्या गाँव
जीवन तपती दुपहरी
नहीं ममता की छाँव
गाँव में,भाई को
मेरी देख रख में डाल
माँ जाती ,भोर से
खेती की करने
सार सम्भाल
शहर में,बड़ा भाई
जाता है कारखाने
गृहस्थी का बोझ बंटाने
खुद को काम में खपाने
कच्ची उम्र की मजबूरी
काम पूरा,मजदूरी मिलती अधूरी
हाथ में कलम पकड़ने की उम्र…
Added by rajni chhabra on May 1, 2012 at 1:00pm — 14 Comments
Added by dilbag virk on May 1, 2012 at 11:30am — 7 Comments
मजदूर दिवस पर विशेष
.
मजदूर दिवस बहुत बड़ी ख़ुशी लेकर आया था. आज मजदूरों के सामने मालिकों को झुकना ही पड़ा था. अन्य सुविधायों के अतिरिक्त मजदूरों की रोजाना दिहाड़ी बढ़ा दी गई उन्हें ओवरटाईम तथा बढ़ा हुआ बोनस देने की घोषणा भी कर दी गई. मजदूर बस्ती में हर तरफ ख़ुशी का माहौल था, अपनी मांगें पूरी होने की ख़ुशी में जहाँ मजदूर मंदिरों जाकर भगवान को धन्यवाद दे रहे थे, वहीँ दूसरी तरफ मजदूर यूनियन के कुछ नेता मालिकों के घर दावत उड़ा रहे थे, क्योंकि एक बात मजदूरों से…
Added by योगराज प्रभाकर on May 1, 2012 at 10:15am — 21 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on May 1, 2012 at 7:35am — 4 Comments
Added by वीनस केसरी on May 1, 2012 at 12:22am — 4 Comments
गुमनाम है
बड़ा बदनाम है
हाँ गुलाम है.
....................
रिश्ते नाते हैं
बड़ा ही रुलाते हैं.
टूट जाते हैं.
..................
वृक्ष रोते हैं
जनता हंसती है,
कैसी बस्ती है.
.......................
सुखा कंठ है,
मनवा उदास है,
कैसी प्यास है.
.......................
तू ही जीत है
तुझसे ही प्रीत है,
तू ही मीत है.
.....................
भ्रष्टाचार है,
ठोस जनाधार है,
सरकार है.…
Added by Ashok Kumar Raktale on April 30, 2012 at 6:30pm — 18 Comments
मेरा विचार है,
Added by Iti Sharma on April 30, 2012 at 4:30pm — 8 Comments
Added by MAHIMA SHREE on April 29, 2012 at 5:00pm — 26 Comments
भक्षक (लघु कथा )
साहब मेरी बेटी कहाँ है ?हरिया ने हाथ जोड़कर स्थानीय थाने में बैठे दरोगा से गिड़ गिडाते हुए पूछा |अब होश आया तुझे दो दिन हो गये तेरी बेटी को नहर से निकाला था,हाँ आत्महत्या का प्रयास करने से पहले तेरे पास भी तो आई थी अपनी ससुराल वालो के अत्याचार का दुखड़ा रोने करी थी क्या तूने उसकी मदद ,अब आया बेटी वाला |आत्म हत्या भी जुर्म है केस चलेगा अभी लाकअप में बंद है कल आना वकील के साथ लिखत पढ़त करके छोड़ देंगे|पर साहब इन कोठरियों में तो दिखाई नहीं !!!उसकी बात पूरी होने से…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 29, 2012 at 12:30pm — 16 Comments
Added by kavita vikas on April 29, 2012 at 12:00pm — 3 Comments
आंदोलित विभिन्न कर्मचारी संगठनों ने अपनी मांगे सरकार से मनवाने हेतु व्यस्ततम चौराहे को मानव श्रृंखला बना कर घेर दिये थे, मेरे नेर्तित्व में भी एक संगठन नारेबाजी और रास्ता अवरुद्ध करने मे संलग्न था, भीड़ में कुछ मरीजों के परिजन अपनी गाड़ियों को आगे जाने देने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे, राधे बाबू जोर जोर से सभी को निर्देशित कर रहे थे कि एक व्यक्ति को भी आगे नहीं जाने देना है, चाहे कुछ हों जाए | एकाएक राधे बाबू का स्वर बदला और कहने लगे कि जाने दो भाई मरीजों की गाड़ियों…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 28, 2012 at 4:03pm — 18 Comments
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