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मुफलिसी में दिन बिताने वाले 

पी के आंसू, घुड़कियाँ खाने वाले,

खोल आँखे, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|
न किसी धर्म से है तू
न तेरी कोई भाषा,
तुझसे छलकती है
निशि-दिन निराशा|
नित नयी घोषणाओं ने 
किया तुझको पंगु,
बन के रह गया तू
बस एक पिछलग्गू|
बीपीएल के कटोरे में रोटी खाने वाले
आधे पेट खा के कुपोषित है तू,
खोल आँखें, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|
महज वोट बैंक हैं कतारें तेरी
योजनाओं से छला जाता है तू,
आते हैं चुनाव, जीतते हैं नेता
पराजय की गर्त में चला जाता है तू|
होंगे एक-दो तेरी बिरादरी से
लाल बत्ती में चलते होंगे,
तेरी भलाई की सच्ची कोशिश से
देखता होगा वही जलते होंगे|
दो दिन काम करके, दस दिन बैठने वाले
कागज पर 'रोजगार मिला' घोषित है तू,
खोल आँखें, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|
जुल्म होते हैं तुझपर
आन्दोलन खड़ा होता है,
निकला नया चेहरा
पिछले से बड़ा होता है|
हालात वही रहते हैं
ढंग बदल जाते हैं,
टोपी और झंडों के 
रंग बदल जाते हैं|
जाति की जमीन से उगनेवाली
घटिया मानसिकता से पोषित है तू,
खोल आँखें, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|

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Comment

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 6, 2012 at 5:16pm

अरुण जी आपका स्वागत मेरे ब्लॉग पर. आपको रचना पसंद आई...आपका आभारी हूँ.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 6, 2012 at 5:14pm

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद योगराज सर.

Comment by Abhinav Arun on May 6, 2012 at 2:00pm

एक सन्देश परक सार्थक  और सशक्त रचना श्री अजीतेंदु जी हार्दिक बधाई !!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 5, 2012 at 11:16am

सुंदर अभिव्यक्ति. बधाई स्वीकारें कुमार गौरव जी

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 5, 2012 at 8:16am

सौरभ पाण्डेय जी

सादर प्रणाम
स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2012 at 11:22pm

कुमार गौरवजी, आपकी कोई पहली रचना देख रहा हूँ. प्रस्तुत रचना ’शोषित है तू..’ अपनी साफ़गोई और अपने तेवर के कारण जैसे सीधे उतरती चली जाती है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें, विशेषकर इन पंक्तियों के लिये - 

दो दिन काम करके, दस दिन बैठने वाले
कागज पर 'रोजगार मिला' घोषित है तू,

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 4, 2012 at 9:53pm

आदरणीय मुकेश कुमार जी

सादर नमस्कार
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका.
Comment by Mukesh Kumar Saxena on May 4, 2012 at 7:11pm
bhai ji dil ko chhoo lene bali rachna hai. Badhai
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 4, 2012 at 5:14pm

महिमा जी सादर !

आपका स्वागत है, आपको मेरी रचना अच्छी लगी...आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
Comment by MAHIMA SHREE on May 4, 2012 at 4:35pm
हालात वही रहते हैं
ढंग बदल जाते हैं,
टोपी और झंडों के
रंग बदल जाते हैं|
जाति की जमीन से उगनेवाली
घटिया मानसिकता से पोषित है तू,
खोल आँखें, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|
गौरव जी नमस्कार ,
छा गए आप :) बहुत बढ़िया .. अपने मजदूरो की दशा का इतना सटीक चित्रण प्रबाह के साथ किया की शब्द नहीं है मेरे पास बयाँ करने के लिए
बधाई स्वीकार करें

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