मुझे यकीं है
समझ न सकोगे तुम
दुनिया की रस्में
उल्फत की कसमें
क्यूंकि तुम हो ही नहीं
खुद के वश में
तुम हर रोज चलते हो
नित नए सांचे में ढलते हो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 25, 2012 at 3:02pm — 3 Comments
याद है तुम्हें वे ढाक के पेड़
जहां ऐसे ही सावन में
हम-तुम भींगे थे.....
और....कितना रोया था मैं
कि पहली छुअन की सिहरन
को पचा नहीं पाया ...
उस विशाल मैंदान की मांग.....
जब मेरे साइकिल पर
तुम बैठी थी और
Added by राजेश 'मृदु' on August 25, 2012 at 2:40pm — 2 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 25, 2012 at 1:02pm — 7 Comments
Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:41am — 10 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 25, 2012 at 11:40am — No Comments
Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:30am — 17 Comments
(१) झुकी नजरें
खामोशी इजहार
पहला प्यार
(२) सब अपना
हरेक का सपना
कलियुग है
(३) भारी टोकरा
रोकड़ा ही रोकड़ा
उपरी आय
(४) संतों का बैरी
लुटेरों का चहेता
हमारा नेता
(५) अँगूठा छाप
पढ़े-लिखों का बाप
जनतंत्र है
(६) संकीर्ण सोच
इंसानी खुराफात
ये जात-पात
(७) तिल का ताड़
मजहब की आड़
आतंकवाद
(८) बेमेल दल
लाचार सरकार
गठबंधन
(९) सब ने ठगा…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 25, 2012 at 10:48am — 4 Comments
=====ग़ज़ल =======
एक तूफाँ यहाँ से गुजरा है
आइना जो मकाँ से गुजरा है
आरजू भीगने की फिर जागी
अब्र इक आसमाँ से गुजरा है
इश्क करके दिले नाशाद हुए
दर्द दिल और जाँ से गुजरा है
चश्म क्यूँ…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 25, 2012 at 9:25am — 2 Comments
जिंदगी में सफलता पाने के लिए जरूरी है, सबसे पहले उसको ढूंढा जाए. जो आपके और आपकी सफलता के बीच में बाधक बना हुआ है. संभव है कि वह आपके पास नहीं तो बहुत दूर भी नहीं होता है. हम जिनको अपना कहते है कि उनको हमारी सफलता पर गर्व होता है. इसलिए वह चार से ज्यादा नहीं हो सकते. क्योंकि किसी भी परिस्थिति में हम अपने दाएं-बाएं और आगे-पीछे वालों के ही नजदीक होते है. हम हमेशा उन चारों के सुरक्षा घेरे में स्वयं को सुरक्षित महसूस करते है. इन चारों की वजह से ही हम अपने लक्ष्य को पाने में कामयाब होते है.…
ContinueAdded by Harish Bhatt on August 25, 2012 at 2:30am — 1 Comment
जिंदगी एक रेल होती है
ये न समझो कि खेल होती है।
जिंदगी का सफर बहुत लम्बा,
रूक गये तो ये फेल होती है।
वो जहाँ चाहे मोड दे हमको,
हाथ उसके नकेल होती है।
आजकल जिंदगी की भागमभाग,
पानी कम ज्यादा तेल होती है।
आज कानून ही बदल गया है,
बोल दो सच तो जेल होती है।
अब तो राशन की लाइने या सडक,
हर जगह धक्का पेल होती है।।।।
सूबे सिंह सुजान
Added by सूबे सिंह सुजान on August 24, 2012 at 11:00pm — 10 Comments
जंगे-आज़ादी के जांबाज़ सूरमा अमर बलिदानी राजगुरु के जन्म दिवस पर आज तिरंगे को सलाम करते हुए तीन कह-मुकरियां विनम्र श्रद्धांजलि के रूप में सादर समर्पित कर रहा हूँ
सब कुछ अपना हार गये वो
प्राण भी अपने वार गये वो
बिना किये कुछ भी उम्मीद
ऐ सखि साधु ? नहीं शहीद !…
Added by Albela Khatri on August 24, 2012 at 9:59pm — 4 Comments
एक सुसज्जित भव्य पंडाल में सेठ धनीराम के बेटे की शादी हो रही थी ,नाच गाने के साथ पंडाल के अंदर अनेक स्वादिष्ट व्यंजन ,अपनी अपनी प्लेट में परोस कर शहर के जाने माने लोग उस लज़ीज़ भोजन का आनंद उठा रहे थे |खाना खाने के उपरान्त वहां अलग अलग स्थानों पर रखे बड़े बड़े टबों में वह लोग अपना बचा खुचा जूठा भोजन प्लेट सहित रख रहे थे ,जिसे वहां के सफाई कर्मचारी उठा कर पंडाल के बाहर रख देते थे |पंडाल के बाहर न जाने कहाँ से मैले कुचैले फटे हुए चीथड़ों में लिपटी एक औरत अपनी गोदी में भूख से…
ContinueAdded by Rekha Joshi on August 24, 2012 at 8:33pm — 4 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on August 24, 2012 at 7:12pm — 19 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 24, 2012 at 5:57pm — 4 Comments
जो तुम बोलते हो क्या सिर्फ वही है भाषा ?
मैं जब सोचती हूँ तुम्हें
और खोती हूँ ,
तुम्हारे ख्यालों में ,
सपने सजाती हूँ नयनों में ,
और मुझे बहुत दूर जहाँ
के पार ले जाते है मेरे सपने
वहां जहाँ कोई नही होता मेरे पास
मैं नहीं खोलती अपना मुंह
फिर भी मैं बतयाती हूँ
फूलों से,तितलियों से, बहारों से
और तुमसे .
मेरे अहसास में होते हो तुम ,
बिन बोलें करती…
Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 5:30pm — 8 Comments
यह जो तुम्हारे आस पास
नदियाँ है ना.
इनको कभी देखना मेरी
नज़र से .
यह तुम्हें बिना थके
बिना…
Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 5:30pm — No Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 24, 2012 at 1:30pm — 9 Comments
मिट्टी को रंग के लाल-हरे रंग दे दिये
लिख-लिख किताबें सोंचने के ढंग दे दिए
देनी थीं वुसअतें तो खुले आसमान सी
धर्मो ने दायरे बड़े ही तंग दे दिए
चन्दन गुल या इत्र की खुशबू,जिसको होना है हो जाए
घूमे जंगल-जंगल ,महके उपवन-उपवन धूम मचाए
पर ,ख़ुलूस से बढ़ कर कोई गंध नहीं है इस दुनिया में
जो बिखरे इस दर इठलाकर उस दर की देहरी महकाए
ईमान अब संदेह का पर्याय हो…
Added by seema agrawal on August 24, 2012 at 11:00am — 11 Comments
क्यों कर जाते है परिस्थितियों से पलायन हम ,
ये परिस्थितियां ही तो सिखाती है हमें जीना
पलायन में कहाँ होती है ,
स्थितियों को बदलने की इच्छा,
फिर क्यों नहीं हम परिस्थितियों का सामना करते रूककर ,
आखिर कहाँ जा सकते है भागकर .
जहाँ जायेंगें वहां की स्थितियां ,
फिर खड़ी होंगी बन कर परिस्थितियां
इनका कोई अंत नही ,
तो बस करो अब भागना
और करो दृढ़ निश्चय
परिस्थितियों से संघर्ष का…
Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 11:00am — 7 Comments
नहीं है पास तू अगर तो तेरी याद सही
रही जो याद वो शहद सी मीठी बात सही
ग़मों में मुस्कुरा रहा हूँ गहरे जख्म छुपा
दिले-नाशाद क्यूँ फिरूँ जो रहना शाद सही
उजाले चीखने लगे जो तुझको देख अगर
अँधेरी गर्दिशों भरी ही काली रात सही
तुझे तो था…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 24, 2012 at 10:14am — 6 Comments
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