मारा गया फ़कीर जो गया वह रोटी लाने,
बहती थी नदिया वेग तेज बहुत था /
मचा हाहाकार कोहराम कोई नहि जाने,
हुआ पानी लहू का वेग तेज बहुत था /
दीप बुझे कई देखो बाती जैसे टूट गई,
यों बही पुरवाई झोंका तेज बहुत था /
सिमट गए मानव मूल्य माता रूठ गई,
पश्चिम की आंधी का झोंका तेज बहुत था /
Added by Ashok Kumar Raktale on September 3, 2012 at 1:30pm — 8 Comments
सब कुछ जग में है, नश्वर
एक ही सबका हैं, ईश्वर
हिन्दू ,मुश्लिम, सिख, ईसाई
अनेक धर्मो में बट गया जग
फिर भी मन में है, भटकन l
सच जीवन का दर्पण है
वेद पुराण में वर्णन है
समाहित कर जग कल्याण को
गीता जग में उपस्थित है
मन में फिर क्यूँ भटकन है l
कभी खिलखिला हँसता जब
ओरो को दुःख देकर
कभी असहाय बन
खुद रोता तड़प तड़प कर
कृत्य अपने स्मरण कर l
रात्रि गुजारता करवटे बदल
कभी…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 3, 2012 at 11:13am — 8 Comments
गुरु ऐसा दीजिये प्रभु,चेला बने महान II
गुरु की भी अटकी रहे,चेले में ही जान II
चेले में ही जान,काम ऐसे कर जाए I
खुद का जो हो नाम,मशहूर गुरु हो जाए II
चेला ले गुरु नाम,सदा इश्वर के जैसा I
होवे बेड़ा पार, मिले जीवन गुरु ऐसा II
शिक्षा सदा वशिष्ठ से, पाते हैं श्रीराम I
और है श्रीकृष्ण से,सांदिपनी का नाम II
सांदिपनी का नाम, इश्वर भाग्य विधाता I
चतुर चाणक्य नाम,याद बरबस आ जाता II…
Added by Ashok Kumar Raktale on September 3, 2012 at 8:30am — 10 Comments
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 3, 2012 at 8:07am — 10 Comments
ये कहाँ खो गई इशरतों की ज़मीं;
मेरी मासूम सी ख़ाहिशों की ज़मीं; (१)
फिर कहानी सुनाओ वही मुझको माँ,
चाँद की रौशनी, बादलों की ज़मीं; (२)
वक़्त की मार ने सब भुला ही दिया,
आसमां ख़ाब का, हसरतों की ज़मीं; (३)
जुगनुओं-तितलियों को मैं ढूंढूं कहाँ,
शह्र ही खा गए जंगलों की ज़मीं; (४)
दौड़ती-भागती ज़िंदगी में कभी,
है मुयस्सर कहाँ, फ़ुर्सतों की ज़मीं; (५)
गेंहू-चावल उगाती थी पहले कभी,
बन गई आज ये असलहों…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 3, 2012 at 3:00am — 32 Comments
अरे ! कहाँ गई !
अभी तो यहीं थी !
लगता है कहीं गिर ही गई
इस आपाधापी में,
हो सकता है कुचल दी गई होगी
किन्हीं कदमों के तले,
या फिर उड़ा ले गया उसे
झोंका कोई हवा का ;
चाहे चुरा ले गया होगा चोर कोई,
लेकिन चुराएगा कौन !
चीज तो काफी पुरानी थी
फटी-चिटी, धूल-धूसरित,
बहुत संभव है फेंक दिया होगा
किसी ने बेकार समझ के
और ले गया होगा कोई
आउटडेटेड आदमी अपने
स्वभाव के झोपड़े में लगाने के लिए ;
कहीं कहानी लिखनेवाले
तो उठा नहीं ले गये…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 2, 2012 at 7:23pm — 16 Comments
Added by Ashish Srivastava on September 2, 2012 at 7:05pm — 4 Comments
प्रेम कसूरी उर बसै, वन उपवन मत भाग ,
मृग दृग अन्तः ओर कर, महक उठेंगे भाग ll1ll
**************************************************
आत्मान्वेषण है सहज, यही मुक्ति का द्वार,
बाहर खोजे जग मुआ, भीतर सच संसार ll2ll
**************************************************
पूरक रेचक साध कर, जो कुम्भक ठहराय ,
द्विजता तज अद्वैत की, सीढ़ी वो चढ़ जाय ll3ll
*************************************************
वर्तमान ही सत्य है, शाश्वत इसके पाँव ,
नित्यवान के शीश पर, वक्त…
Added by Dr.Prachi Singh on September 2, 2012 at 7:00pm — 14 Comments
१
Added by yogesh shivhare on September 2, 2012 at 3:30pm — 2 Comments
कभी चिराग बनकर जला
कभी आग बनकर जला
जली हो चाहे किसी की भी खुशियाँ
लेकिन मैं ही दाग बनकर जला...01
.
सुलग-२ जल रहा जिस्म ये मेरा..
तपते आशियाने ही रहा अब मेरा डेरा..
कभी किसी ने तरस खाकर छोड़ा,
तो कभी किसी के लिए हिसाब बनकर जला....02
.
धोका देकर मुझे…
Added by Pradeep Kumar Kesarwani on September 2, 2012 at 3:30pm — 2 Comments
हवा के रुख को जो मोड़े वही बादल घनेरा था
जगह बारिश की जो बदले वही झोंका हवा का था
बदल मैं क्यूँ नहीं पाया मोहब्ब्बत इश्क की राहें
तुम्हे मुझसे रही उल्फत, मगर मुझे इश्क तुमसे था
-----------------------------------------------------------
अगर मुझको मोहब्बत थी, तुम्हे फिर इश्क हमसे था
अधर में रह गया क्यूँ फिर मोहब्बत का मेरा किस्सा
लिखावट उस विधाता की , बदल…
Added by Ashish Srivastava on September 2, 2012 at 1:00pm — No Comments
मेरे इस दिल का हर साज उनका है,
इस दिल में दबा हर राज उनका है,
चाहे दिन हो या रात उनका है,
सबसे जुदा, अलग अंदाज उनका है,
मैं आज जो भी और जैसा भी हूँ,
मेरी सफलता के पीछे हाथ उनका है,
भले ही आज नाखुश हूँ अपनेआप से पर,
याद कर खुश होता हूँ वो हर याद उनका है,
वो जहाँ भी रहे सदा खुश रहे दुआ है मेरी
मेरा दिल आज भी सिर्फ तलबगार उनका है,
मेरे इस दिल का हर साज उनका है ऐ 'अनिश',
इस दिल में दबा आज भी हर राज उनका है....!
Added by Neelkamal Vaishnaw on September 2, 2012 at 10:30am — 3 Comments
जैसे
ठहरा हुआ समंदर कोई
गहरे नीले रंग से रंगा...ऐसा आसमाँ
दूर दूर तक फैला हुआ...
जिसके किसी छोर पर
तुम हो...
किसी छोर पर मैं हूँ
और
हम दोनों के बीच
ये तैरता हुआ सफ़ेद मोती....
सब कुछ वैसा ही है/ कुछ नहीं बदला
बस बदल गयीं हैं,
इस समंदर से अपनी शिकायतें |
पहले ये बहुत छोटा लगता था हमें,
और अब ये समन्दर ख़त्म ही नहीं होता
....मीलों तक......
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on September 1, 2012 at 10:05pm — 4 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2012 at 5:35pm — 6 Comments
मुद्दत हो गई है कुछ भी लिखे, इक अधूरापन समा गया हो जैसे मेरे अन्दर, और गोया ये अधूरापन अपने अधूरेपन के अधूरेपन में ही मुतमईन हो. भोपाल से सफर पे आमादा हुए तीन हफ्ते गुज़र गए हैं और इन तीन हफ़्तों में कई मंज़िलात से गुज़रा- इंदौर-बैंगलोर-चेन्नई-बैंगलोर-मैसूर-बैंगलोर-चेन्नई- और फिर वापस बैंगलोर. आगे आने वाले दिनों में और भी कई जगहों का कयाम करना है- अहमदाबाद, पुणे, नॉएडा, जयपुर.... कभी हवा में थम से गए हवाई जहाज़, कभी लोहे की पटरियों पे दौड़ती रेल, कभी फर्राटे से भागती कार, तो कभी वोल्वो बस की…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 1, 2012 at 5:30pm — 6 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on September 1, 2012 at 3:00pm — 5 Comments
"निवाले"
रामू के
विदीर्ण वस्त्रों में छुपी
कसमसाहट भरी मुस्कान
एहसास कराती है
खुश रहना कितना जरुरी है
दिन-रात
कचरा बीन बीन के
उससे दो चार निवाले निकाल लेना
कुछ फटी चिथी पन्नियों से
खुद के लिए और छोटी बहन के लिए भी
एहसास कराता है
कर्मयोगी होने का
रात उसके बगल में सोती है
कभी दायें करवट
कभी बाएं करवट
खुले आसमान के नीचे
उसका जबरन आँखों को मूंदे
भूख को मात देना
परिभाषित करता है आज़ादी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 1, 2012 at 2:11pm — 9 Comments
(1) आजमाईश
न ख्वावों पे कर भरोसा कमबख्त टूट भी सकते है
और न यकीं दोस्तों पे कमबख्त लूट भी सकते हैं
हम यूँ ही नहीं कहते आजमाईश की है यारो
रिश्ते आज जो अपने से लगे ,कल छूट भी सकते हैं
(2) बेवजह
ताउम्र हम तेरी यादों में तड़पे
नज़रों से अपने तो आंसू भी बरसे
मगर तुमको हरगिज़ न आया तरस
पागल थे हम बेवजह ही जो तरसे
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 1, 2012 at 1:00pm — 3 Comments
इन्सान की जिंदगी भी
क्या जिंदगी है
पल में गम,
और क्षण में ख़ुशी है
कभी संघर्ष का दौर तो
कभी मस्ती भरी है
कभी अपने पराये तो
पराये अपने है
जिसको ख़ुशी दी
उसी ने दिल दुखायें है
फिर भी लोगो ने देखो
बंधन हर निभाए है
कभी सपने सजोंये और
कभी ख़ुशी के दीप जलाये है
विरह वेदना से छुड़ा
अनुभूति वक़्त दे जाती है
हर्ष उल्लास के गीत सुना
दुःख से मुक्त कराती…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 1, 2012 at 12:18pm — 13 Comments
टूटा सा ख्वाव हूँ (गीत)
पूछो न कोई मुझसे क्यों पीता शराब हूँ-2
अब किसको क्या पता मैं इक टूटा सा ख्वाव हूँ-2
--पूछो न कोई मुझसे क्यों पी----------
(1) 'दीपक' था नाम जलना था,जलते रहे ऐ-दिल-2
बुझने से पहले बेवफा इक बार आके मिल-2
देती है ताहने दुनियाँ क्या सचमुच ख़राब हूँ
अब किसको क्या पता मैं इक टूटा सा ख्वाव हूँ-२
--पूछो न कोई मुझसे क्यों पी----------
(2) दो घूँट पी लिए अगर यहाँ किसका क्या गया -2
अपनें,बेगाने सबके ही दिल…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 1, 2012 at 11:00am — 8 Comments
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