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प्रेम से : कुछ अलग ..कुछ जुदा, जीवन का सच ..

ये पेट की आग भी

क्या क्या न कराती है ...

 

चैन नहीं दिन में

रातें भी घबराती हैं ...

 

जीवन जीने की इच्छा

मन को ललचाती है ...

 

आगे बढ़ने की ख्वाइश

मेहनत खूब कराती है ...

 

न गर्मी से तपता है तन

न ठण्ड डरा पाती है .....

 

ये पेट की आग भी

क्या क्या न कराती है ...

मेहनत नहीं…
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Added by Anita Maurya on December 22, 2010 at 1:30pm — 7 Comments

दिल की ख्वाहिश ...................

दिल की ख्वाहिश ...................
दिल की ख्वाहिश 
 
एक बार फिर 
दिल की ख्वाहिश है 
कुछ कहने की 
कुछ सुनने की 
कुछ दिल की बातें कहने की 
कुछ किसी के मन की सुनने की 
 
पर किससे पूछूं वह सवाल 
जिसे पूछने का साहस 
अब तक न जुटा सका मन 
कैसे कहूं कि 
धर्म की आग में 
मत करो 
मन होम 
 
कैसे कहूं…
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Added by Amit Prabhu Nath Chaturvedi on December 22, 2010 at 10:19am — 4 Comments

मुक्तिका: कौन चला वनवास रे जोगी? -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



कौन चला वनवास रे जोगी?



संजीव 'सलिल'

**



कौन चला वनवास रे जोगी?

अपना ही विश्वास रे जोगी.

*

बूँद-बूँद जल बचा नहीं तो

मिट न सकेगी प्यास रे जोगी.

*

भू -मंगल तज, मंगल-भू की

खोज हुई उपहास रे जोगी.

*

फिक्र करे हैं सदियों की, क्या

पल का है आभास रे जोगी?

*

गीता वह कहता हो जिसकी

श्वास-श्वास में रास रे जोगी.

*

अंतर से अंतर मिटने का

मंतर है चिर…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 21, 2010 at 11:36pm — 7 Comments

बहकाती है क्यूँ जिंदगी...? ©

 

बहकाती है क्यूँ जिंदगी...? ©



शुरू में गज़ल सी , फिर भटकती लय है क्यूँ जिंदगी......

हर रंग भरा इसमें तुमने , सवाल सी है क्यूँ जिंदगी.......

ज़वाब दिए खुद तुम्हीं ने , फिर अधूरी है क्यूँ जिंदगी.....

माना है डगर कठिन , कदम बहकाती है क्यूँ जिंदगी.....

मंजिल का पता नहीं पर , राह भटकाती है क्यूँ जिंदगी.....



Photography & Creation by :- जोगेन्द्र सिंह…

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Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 21, 2010 at 11:30pm — 6 Comments

तुम जो साथ हो ...

 

कहा किसी ने 'बहुत ख्वाब सजाती हो तुम.
ज़िंदगी को भी सजाना सीखो.
नुस्खे जितने बताती हो ज़िंदगी जीने के,…
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Added by Lata R.Ojha on December 21, 2010 at 11:30pm — 5 Comments


प्रधान संपादक
बलात्कार (लघुकथा)

"क्या यह बात सच है कि कल तुम्हारी बेटी से बलात्कार किया गया ?"
"हाँ साहब, कल शाम खेतों से लौटते हुए मेरी बेटी की इज्ज़त लूटी गई !"
"क्या तुम जानते हो कि दोषी कौन है !?"
"मैं ही नही साहब, सारा गाँव जानता है उस पापी को जिसने मेरी बेटी को बर्बाद किया है !"
"मगर इतनी बड़ी बात होने के बावजूद भी तुमने थाने जाकर रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई ?"
"क्योंकि मैं अपनी बेटी का सामूहिक बलात्कार नही चाहता था ! "

Added by योगराज प्रभाकर on December 21, 2010 at 4:30pm — 24 Comments

सच्चाई सूरत लेगी एक दिन

सच्चाई सूरत लेगी एक दिन

माटी मूरत होगी एक दिन



क्यों भागता है यों रूठकर तू मुझसे

मुझे तेरी जरूरत होगी एक दिन



कभी राज अपने भी बतलाऊंगा तुझे

जो सुनने कि फुरसत होगी तुझे एक दिन



क्यों लगाया है मन तूने में चोखट पे

खुद तेरे दर पे आऊंगा बनके जोगी एक दिन



बहुत ठोकरें खाई हैं तूने इन राहों में

कभी मंजिल भी दिखलाऊंगा तुझे एक दिन



बहता पानी है तू चलाती है ये ज़मीं तुझे

बहते बहते समुन्दर बन जायेगा तू एक दिन



गम ना…

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Added by Bhasker Agrawal on December 21, 2010 at 3:51pm — 1 Comment

गीत: निज मन से हांरे हैं... -- संजीव 'सलिल'

गीत:

निज मन से हांरे हैं...

संजीव 'सलिल'

*

कौन, किसे, कैसे समझाये

सब निज मन से हारे हैं.....

*

इच्छाओं की कठपुतली हम

बेबस नाच दिखाते हैं.

उस पर भी तुर्रा यह, खुद को

तीसमारखां पाते हैं.

रास न आये सच कबीर का

हम बुदबुद-गुब्बारे हैं.....

*

बिजली के जिन तारों से

टकरा पंछी मर जाते हैं.

हम नादां उनका प्रयोग कर,

घर में दीप जलाते हैं.

कोई न जाने कब चुप हों

नाहक बजते इकतारे हैं.....

*

पान, तमाखू,…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 21, 2010 at 12:00am — 5 Comments

कैसा है यह नाते पर नाता..? Copyright ©

 

कैसा है यह नाते पर नाता..? Copyright ©



निकल कर देखा.. अपनी माँ के उदर से उसने,

अनजानी.. कुछ मिचमिचाती अपनी आँखों से,

सारा जहान था दिख रहा अजनबी सा उसको,

लग रही माँ भी उसकी.. अजनबी सी उसको,

बना फिर इक नया.. माँ से पहचान का नाता,

फिर भी अकसर.. क्यूँ लगती माँ अजनबी सी,

गोद…

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Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 20, 2010 at 9:30pm — 2 Comments

हैं तुझपे नाज आज जो तुने कर दिया ,

हैं तुझपे नाज आज जो तुने कर दिया ,
हार हुई मगर तुने दर्द किनारा कर दिया ,
जय हो तेरी जय हिंदुस्तान की हो ,
सतकबीर जय तेरी उस धार की हो ,

Added by Rash Bihari Ravi on December 20, 2010 at 5:43pm — No Comments

घनाक्षरी : जवानी --संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी :

जवानी

संजीव 'सलिल'

*

१.

बिना सोचे काम करे, बिना परिणाम करे, व्यर्थ ही हमेशा होती ऐसी कुर्बानी है.

आगा-पीछा सोचे नहीं, भूल से भी सीखे नहीं, सच कहूँ नाम इसी दशा का नादानी है..

बूझ के, समझ के जो काम न अधूरा तजे- मानें या न मानें वही बुद्धिमान-ज्ञानी है.

'सलिल' जो काल-महाकाल से भी टकराए- नित्य बदलाव की कहानी ही जवानी है..

२.

लहर-लहर लड़े, भँवर-भँवर भिड़े, झर-झर झरने की ऐसी ही रवानी है.

सुरों में निवास करे,…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 20, 2010 at 5:00pm — 1 Comment

GHAZAL - 17

                  ग़ज़ल



प्रश्न   मेरे  सामने  यह   एक   अन्धा   सा   कुआँ    है |

क्या हुआ जो दोस्त था कल आज वो दुश्मन  हुआ  है ||



जिसने  दी  थी  कल  खुशी, वो  आज  आँसू दे रहा,

ये   न  जाने   किसकी   मेरे   वास्ते एक …

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Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 20, 2010 at 3:00am — 2 Comments

क्यों आज भी.....???

मैं भी कुछ लफ्ज़ तेरे बारे कह दूँ,

शायद तब दो घड़ी सुकून आए..…
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Added by Lata R.Ojha on December 20, 2010 at 12:30am — 2 Comments

भेड़ चाल

माहिर होते है
भेड़ और गधे
एक लीक एक चलने में //

सुना है ---
अगर एक भेड़ कुए में गिरा
सब भेड़ उसी में गिरेंगे //

आज ----
कंक्रीट के जंगल में
रहनेवाला मानव
इसी भेडचाल की नक़ल तो कर रहा //

Added by baban pandey on December 19, 2010 at 5:49pm — 2 Comments

GAZAL ग़ज़ल by अज़ीज़ बेलगामी

 

ग़ज़ल

by

अज़ीज़ बेलगामी

 

हम समझते रहे हयात गयी

क्या खबर थी बस एक रात गयी



खान्खाहूँ से मैं निकल आया

अब वो महदूद काएनात…

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Added by Azeez Belgaumi on December 19, 2010 at 4:00pm — 22 Comments

विकीलिक्स ये भी बताएं

अमेरिकी वेबसाइट विकीलिक्स के क्या कहने, वह सब कुछ जानती है। किसने, किसके बारे में क्या कहा, उसे सब कुछ पता है। दुनिया में आज हर किसी की नजर जूलियन असांज की वेबसाइट पर टिक गई हैं, क्योंकि वह एक के बाद एक खुलासे करती जा रही है। बीते कुछ दिनों से ऐसा कुछ माहौल बन गया है कि जैसे कोई कुछ बता सकता है तो वह है, विकीलिक्स। यही कारण है कि मेरा भी ध्यान विकीलिक्स पर है कि अब वे क्या खुलासा करने वाली है ? वैसे विकीलिक्स, जो भी भीतर की बात बता रही है, उससे इन दिनों बड़े चेहरे माने जाने वाले कइयों की पाचन…

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Added by rajkumar sahu on December 19, 2010 at 1:09pm — No Comments

GHAZAL - 16

                    ग़ज़ल



रात - रात  भर  सोते - जगते,  मैंने   उसे   मनाया   है |

फिर भी खुदा न मेरा अब तक, सिर  सहलाने  आया है ||



कहते हैं- मालिक ने हमको, तुमको, सबको, जन्म दिया,

पर  लगता  है - कोई  वो पागल था जिसने भरमाया है ||



एक …

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Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 19, 2010 at 12:00am — 2 Comments

लघुकथा: काफिला -- संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा:



काफिला



संजीव वर्मा 'सलिल'

*

कें... कें... कें...



मर्मभेदी कटर ध्वनि कणों को छेड़ते एही दिल तक पहुँच गयी तो रहा न गया.बाहर निकलकर देखा कि एक कुत्ता लंगड़ाता-घिसटता-किकयाता हुआ सड़क के किनारे पर गर्द के बादल में अपनी पीड़ा को सहने की कोशिश कर रहा था.



हा...हा...हा...



अट्टहास करता हुआ एक सिरफिरा भिखारी उस कुत्ते के समीप आया ... अपने हाथ की अधखाई रोटी कुत्ते की ओर बढ़ाकर उसे खिलाने और सांत्वना देने की कोशिश करने लगा. तभी खाकी…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2010 at 12:00am — 5 Comments

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