ये पेट की आग भी
क्या क्या न कराती है ...
चैन नहीं दिन में
रातें भी घबराती हैं ...
जीवन जीने की इच्छा
मन को ललचाती है ...
आगे बढ़ने की ख्वाइश
मेहनत खूब कराती है ...
न गर्मी से तपता है तन
न ठण्ड डरा पाती है .....
ये पेट की आग भी
क्या क्या न कराती है ...
Comment
sahi kaha aapne...bilkul sahi...
bahut hi sundar rachna...
अनीता जी, आपकी रचनाओं मे अब पैनापन आने लगा है, बेहतरीन कविता है, मेहनतकश लोगो को समर्पित यह रचना अत्यंत खुबसूरत बन पड़ी है, इस पूरी कविता का निष्कर्ष इन दो पक्तियों मे ....
आगे बढ़ने की ख्वाइश
मेहनत खूब कराती है....क्या बात है ...
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