अमेरिकी वेबसाइट विकीलिक्स के क्या कहने, वह सब कुछ जानती है। किसने, किसके बारे में क्या कहा, उसे सब कुछ पता है। दुनिया में आज हर किसी की नजर जूलियन असांज की वेबसाइट पर टिक गई हैं, क्योंकि वह एक के बाद एक खुलासे करती जा रही है। बीते कुछ दिनों से ऐसा कुछ माहौल बन गया है कि जैसे कोई कुछ बता सकता है तो वह है, विकीलिक्स। यही कारण है कि मेरा भी ध्यान विकीलिक्स पर है कि अब वे क्या खुलासा करने वाली है ? वैसे विकीलिक्स, जो भी भीतर की बात बता रही है, उससे इन दिनों बड़े चेहरे माने जाने वाले कइयों की पाचन क्रिया ही गड़बड़ा गई है और उनकी सेहत पर भी असर पड़ने लगा है। दबंग चेहरों से भी हवाईयां उड़ने लगी हैं कि उनका भी कुछ खुलासा विकीलिक्स न कर दें। उन्हें डर लग रहा है कि कोई ऐसी पोल न खुल जाए, जिससे वे एक पल में सौ से शून्य में पहुंच जाएं।
देखा जाए तो विकीलिक्स ने जो कारनामा कर दिखाया है, वह अब तक किसी के नहीं किया। हमारे देश में भ्रष्टाचार, घोटाले समेत तमाम कार्य पूरी ईमानदारी से किए जाते हैं, मगर कोई खुलासा थोड़ी ना कर सकता है ? एक बात है कि जनता विकीलिक्स के खुलासे देख रही है कि कैसे, किसने, क्यों व क्या गुल खिलाया है ? मैं तो विकीलिक्स के रोज-रोज खुलासे से दंग रह गया हूं कि किस खातिर, क्यों तथा किस तरह, किससे, कैसी-कैसी बातें होती हैं ? किसे परवाह है कि क्या कुछ कहने से देश का बेड़ा का गर्क हो जाएगा और खुद के चेहरे पर कालिख पुत जाएगी ? विकीलिक्स के परदे उठाने के कारण देश का राजनीतिक पारा तो चढ़ गया है और नहीं लगता कि अभी इसका तापमान कम होगा। मैं तो यह भी सोच रहा हूं कि एक विकीलिक्स से इतना कुछ भीतर से बाहर आया है, यदि एक-दो और हो जाए तो फिर तो क्या कहने ? विकीलिक्स की सूची में अब बड़े नाम भी आ गए हैं, इसी के चलते कई चेहरों की रंगत भी उतरी हुई है कि कहीं विकीलिक्स की टेढ़ी नजर उन पर न पड़ जाए। विकीलिक्स ने जिस तरह तूफान की भांति आकर दुनिया को बिदबिदाने का काम किया है और फिलहाल कई दिनों से वह पूरी रंग में दिख रही है, इस हालात में मीडिया को भी बैठे-ठाल्हे कई दिनों का खुराक नसीब हो गया है। आज हर किसी की जुबान पर एक ही नाम है, वह विकीलिक्स। हो भी क्यों न, काम ही वैसा किया है, सूचना पहुंचाने का बड़ा जरिया जो साबित हुआ है। देश का सूचना तंत्र भले ही कमजोर हो, लेकिन पड़ोसी की मेहरबानी से जुगाड़ में घर बैठे जैसे-तैसे कुछ सूचना तो मिल जा रही है, ना।
अब तो मैं यहां तक सोचने लगा हूं कि क्यों न इसी तरह और विकीलिक्स तैयार किए जाएं, जिससे कुछ तो पता चलें, नहीं तो हम जैसे अदने से व्यक्ति के पास इतनी भारी-भरकम जानकारी भला कहां से आएगी। शुक्र है, इस विकीलिक्स का, जिसने कुछ दिनों का ठेका जो ले लिया है। मैं तो जूलियन असांज से यही पूछना चाह रहा हूं कि ऐसी विकीलिक्स और है कहां ?
राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा.- 098934-94714
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