ग़ज़ल
by
अज़ीज़ बेलगामी
हम समझते रहे हयात गयी
क्या खबर थी बस एक रात गयी
खान्खाहूँ से मैं निकल आया
अब वो महदूद काएनात गयी
क्या शिकायत मुक़द्दमा कैसा
जान ही जाए वारदात गयी
जम के बरसें गे जंग के बादल
के फिजाए मुज़ाकिरात गयी
बेसदा क्योँ न हों ये नक्कारे
मेरी आवाज़ शश जिहात गयी
खौफे पुरशिश की जो अमीन नहीं
यूं समझ लीजे वो हयात गयी
फिर उजालौं के दिन फिरे हैं अज़ीज़
लो अंधेरो तुम्हारी रात गयी
उर्दू शब्दौं का मतलब :
खान्खाहूँ = वो गुफाएं जहाँ घर बार छोड़ कर इश्वर की याद में जीवन बिताया जाता है
महदूद = Limited
जाए वारदात = वारदात की जगह, वो जगह जहाँ हादसा हुवा हो;
फिजाए मुज़ाकिरात = मुजाकिरात का या बात चीत का माहौल; Dialogue का माहौल
शश जिहात = Six Derections ( दायें - बाएं - आगे - पीछे - ऊपर - निचे )
खौफे पुरशिश = मौत के बाद अपने पालनहार के रु बरु हाज़िर होकर जीवन का हिसाब देने का डर;
अमीन = अमानतदार Custodian
Comment
Maazarath..... Anupama ji...
Lata ji aap ka bahut bahut shukriya... Khush raheN...
आप ने एक एक शेर को ले कर जिस तरह इजहारे खयाल किया है उसे पड़ कर बहुत ख़ुशी हवी. आप शेर की गह्रायियौं से खूब वाकिफ हैं. आप का अब हमेशा साथ रहेगा. इस नवाजिश के लिए आप का शुक्रिया अदा करता हूँ. आईंदा भी आप अपनी हिम्मत अफ्जायियौं से नवाजते रहें... एक बार और शुक्रिया: अज़ीज़ बेलगामी
वाह!बहुत खूब अज़ीज़ जी ..
हम समझते रहे हयात गयी
क्या खबर थी बस एक रात गयी
//इस मतले की सादगी, इसकी कैफियत और आपका परवाज़-ए-तखय्युल काबिल-ए-दीद भी है और काबिल-ए-दाद भी ! एक रात चली जाने से एक हयात के गुज़र जाने का ख्याल हरेक के बस की बात नहीं - बहुत आला ! //
खान्खाहूँ से मैं निकल आया
अब वो महदूद काएनात गयी
//क्या कहने हैं अजीज़ साहिब, वाह !//
क्या शिकायत मुक़द्दमा कैसा
जान ही जाए वारदात गयी
//बहुत खूब !//
जम के बरसें गे जंग के बादल
के फिजाए मुज़ाकिरात गयी
//हाय हाय हाय, क्या दर्द है इस शेअर में !//
बेसदा क्योँ न हों ये नक्कारे
मेरी आवाज़ शश जिहात गयी
//बहुत खूब !//
खौफे पुरशिश की जो अमीन नहीं
यूं समझ लीजे वो हयात गयी
//कमाल का सबक है इस शेअर में - वाह वाह वाह !//
फिर उजालौं के दिन फिरे हैं अज़ीज़
लो अंधेरो तुम्हारी रात गयी
//क्या कमाल का ख्याल है अजीज़ साहिब, बेहतरीन !//
Shukriya Anjana ji
फिर उजालौं के दिन फिरे हैं अज़ीज़
लो अंधेरो तुम्हारी रात गयी
Bahut Khoob!!!
श्री अरुण कुमार
पांडे अभिनव जी
नमश्कार
आप ने जिस तरह मेरी आव भगत की उस से मेरी बहुत हिम्मत अफ़्ज़ायेइ हुई है और मैं इश्वर से प्रार्थना करता हूँ के वह आप को हर तरह से प्रसन्ना रख्खे ... मेरी गज़लें अब OBO पर पाबन्दी से आती रहेंगी और आप जैसे प्यारे दोस्तौं की ख़ुशी का सामान फराहम करती रहेंगी .. आपका दोस्त : अज़ीज़ बेलगामी
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