For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

GAZAL ग़ज़ल by अज़ीज़ बेलगामी

 

ग़ज़ल
by
अज़ीज़ बेलगामी

 

हम समझते रहे हयात गयी
क्या खबर थी बस एक रात गयी


खान्खाहूँ से मैं निकल आया
अब वो महदूद काएनात गयी


क्या शिकायत मुक़द्दमा कैसा
जान ही जाए वारदात गयी


जम के बरसें गे जंग के बादल
के फिजाए मुज़ाकिरात गयी


बेसदा क्योँ न हों ये नक्कारे
मेरी आवाज़ शश जिहात गयी


खौफे पुरशिश की जो अमीन नहीं
यूं समझ लीजे वो हयात गयी


फिर उजालौं के दिन फिरे हैं अज़ीज़
लो अंधेरो तुम्हारी रात गयी

उर्दू शब्दौं का मतलब :

खान्खाहूँ = वो गुफाएं जहाँ  घर बार छोड़ कर इश्वर की याद में जीवन बिताया जाता है
महदूद = Limited
जाए वारदात = वारदात की जगह, वो जगह जहाँ हादसा हुवा हो;
फिजाए मुज़ाकिरात = मुजाकिरात का या बात चीत का माहौल; Dialogue का माहौल
शश जिहात = Six Derections ( दायें - बाएं  - आगे - पीछे - ऊपर - निचे )
खौफे पुरशिश = मौत के बाद अपने पालनहार के रु बरु हाज़िर होकर जीवन का हिसाब देने का डर;
अमीन = अमानतदार Custodian








Views: 1070

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by nemichandpuniyachandan on April 19, 2011 at 6:50am
naphees ghazal,sukariya azeez belagaamee sahib
Comment by Azeez Belgaumi on December 21, 2010 at 2:31pm

Maazarath..... Anupama ji...

Comment by Azeez Belgaumi on December 21, 2010 at 2:06pm

Lata ji aap ka bahut bahut shukriya... Khush raheN...

Comment by Azeez Belgaumi on December 21, 2010 at 2:05pm

श्री योगराज प्रभाकर जी  : आदाब

आप ने एक एक शेर को ले कर जिस तरह इजहारे खयाल किया है उसे पड़ कर बहुत ख़ुशी हवी. आप शेर की गह्रायियौं से खूब वाकिफ हैं. आप का अब हमेशा साथ रहेगा. इस नवाजिश के लिए आप का शुक्रिया अदा करता हूँ. आईंदा भी आप अपनी हिम्मत अफ्जायियौं से नवाजते रहें... एक बार और शुक्रिया: अज़ीज़ बेलगामी

Comment by Lata R.Ojha on December 21, 2010 at 1:43pm

वाह!बहुत खूब अज़ीज़ जी ..


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 21, 2010 at 10:43am

हम समझते रहे हयात गयी
क्या खबर थी बस एक रात गयी

 

//इस मतले की सादगी, इसकी कैफियत और आपका परवाज़-ए-तखय्युल काबिल-ए-दीद भी है और काबिल-ए-दाद भी ! एक रात चली जाने से एक हयात के गुज़र जाने का ख्याल हरेक के बस की बात नहीं - बहुत आला ! //


खान्खाहूँ से मैं निकल आया
अब वो महदूद काएनात गयी

 

//क्या कहने हैं अजीज़ साहिब, वाह !//


क्या शिकायत मुक़द्दमा कैसा
जान ही जाए वारदात गयी


//बहुत खूब !//


 

जम के बरसें गे जंग के बादल
के फिजाए मुज़ाकिरात गयी


//हाय हाय हाय, क्या दर्द है इस शेअर में !//


बेसदा क्योँ न हों ये नक्कारे
मेरी आवाज़ शश जिहात गयी


//बहुत खूब !//


खौफे पुरशिश की जो अमीन नहीं
यूं समझ लीजे वो हयात गयी


//
कमाल का सबक है इस शेअर में - वाह वाह वाह !//

फिर उजालौं के दिन फिरे हैं अज़ीज़
लो अंधेरो तुम्हारी रात गयी


//क्या कमाल का ख्याल है अजीज़ साहिब, बेहतरीन !//

Comment by Azeez Belgaumi on December 20, 2010 at 7:25pm
आदर्णीय श्री शेष धर तिवारी जी...आदाब ... सच मूच चमत्कार होता दिखाई दे रहा है ... मैं समझता हूँ कि इस का सारा क्रेडिट आप को जाना चाहिए.. कभी कभी खुद को पहचानना मुश्किल हो जाता है.. किसी ने क्या खूब कहा है के "तू जौहरी है तो ज़ेबा नहीं तुझे ये गुरेज़.... मुझे परख, मेरी शोहरत का इंतेज़ार न कर"... सब से पहले मैं आपका और आपके हवाले से तमाम OBO के दोस्तौं का आभारी हूँ के एक दो गज़लौं  ही को पड़ कर मुझे किसी काबिल समझा .... धन्यवाद्... तिवारी जी...: अज़ीज़ बेलगामी
Comment by Azeez Belgaumi on December 20, 2010 at 6:08pm

Shukriya Anjana ji

Comment by Anjana Dayal de Prewitt on December 20, 2010 at 6:05pm

फिर उजालौं के दिन फिरे हैं अज़ीज़
लो अंधेरो तुम्हारी रात गयी

 

Bahut Khoob!!!

Comment by Azeez Belgaumi on December 20, 2010 at 3:45pm

श्री अरुण कुमार
पांडे अभिनव जी
नमश्कार
आप ने जिस तरह मेरी आव भगत की उस से मेरी बहुत हिम्मत अफ़्ज़ायेइ हुई
है और मैं इश्वर से प्रार्थना करता हूँ के वह आप को हर तरह से प्रसन्ना रख्खे ... मेरी गज़लें अब OBO पर पाबन्दी से आती रहेंगी और आप जैसे प्यारे दोस्तौं की ख़ुशी का सामान फराहम करती रहेंगी .. आपका दोस्त : अज़ीज़ बेलगामी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service