Added by sanjiv verma 'salil' on April 19, 2011 at 8:30am — No Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on April 19, 2011 at 8:25am — No Comments
बरसते नभ से नीर को सहर्ष अपनाते हैं...
नैन बरसें तो रूठ जाते हैं..
प्रीत को तौलते हैं जो लफ़्ज़ों में..वो.…
Added by Lata R.Ojha on April 18, 2011 at 10:30pm — No Comments
Added by Raj on April 18, 2011 at 9:32pm — No Comments
Added by rajendra kumar on April 18, 2011 at 12:08pm — 1 Comment
Added by R N Tiwari on April 18, 2011 at 10:30am — No Comments
गजल
दौरे-जहाँ में बन गया कुफ्तार आदमी।
सरे-बाजार में बिकने को हैं तैयार आदमी।।
धर्म-औ-ईमाँ को जो बेच के खा गये।
मौजूद है जहाँ में ऐसे कुफ्फार आदमी।।
कातिल दिन-दहाडे जुल्मो-सितम ढा रहे हैं।
वक्त के हाथों हैं बेबस-औ-लाचार आदमी।।
इसे दुनियां का आंठवा अजूबा ही समझना।
दर्जा-ए-जानवर में हो गया शुमार आदमी।।
कानून-औ-कायदो को करके दरकिनार।
बेखौफ कर रहा आदमी का शिकार आदमी।।
नमकपाश तो बेशुमार मिल जायेंगे मगर।
बडी मुश्किल से…
Added by nemichandpuniyachandan on April 17, 2011 at 9:30am — 1 Comment
आराधना की वेदी पर अपनी हर एक सांस को न्यौछावर कर देने के लिए आतुर महिमायमयी महादेवी की जिंदगी विलक्षण रही। वह प्यार, करूणा, मैत्री और अविरल स्नेह की कवियत्री रही। मधुर मधुर जलने वाली ज्योति जैसी रही प्रतिपल युगयुग तक प्रियतम का पथ आलोकित करने के लिए आकुल रही। अपनी जिंदगी को दीपशिखा के समान प्रज्लवलित करके युग की देहरी पर ऐसे रख दिया कि मन के बाहर और भीतर उजियाला बिखर गया। महादेवी की रहस्यवादी अभिव्यक्ति को निरुपित करते हुए कवि शिवमंगल सिंह सुमन ने कहा था कि उन्होने वेदांत के अद्वैत की…
ContinueAdded by prabhat kumar roy on April 17, 2011 at 8:55am — 3 Comments
कुछ द्विपदियाँ :
संजीव 'सलिल'
वक्-संगति में भी तनिक, गरिमा सके न त्याग.
राजहंस पहचान लें, 'सलिल' आप ही आप..
*
चाहे कोयल-नीड़ में, निज अंडे दे काग.
शिशु न मधुर स्वर बोलता, गए कर्कश राग..
*
रहें गृहस्थों बीच पर, अपना सके न भोग.
रामदेव बाबा 'सलिल', नित करते हैं योग..
*
मैकदे में बैठकर, प्याले पे प्याले पी गये.
'सलिल' फिर भी होश में रह, हाय! हम तो जी गए..
*
खूब आरक्षण दिया है, खूब बाँटी…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on April 16, 2011 at 10:15pm — 3 Comments
Added by neeraj tripathi on April 16, 2011 at 4:46pm — 4 Comments
देशवासियों तन्द्रा तोड़ो।
आखें खोलो आलस छोड़ो।
उठो जगो बढ़ चढ़ो दुश्मनों
के रुण्डो मुण्डों को फोड़ो।
खुली चुनौती मिली मुम्बई
की कर लो स्वीकार ।
बचना पाये तुमसे कोई
घुसपैठी गद्दार
अगर हिफ़ाजत करे दुश्मनों
की कोई सरकार।
जड़ से उसे उखाड़ फेंकना
और करना ये हुँकार-
भारतमाता की जय।
आस्तीन में छिपे भुजंगों
के फण त्वरित मरोड़ो
जहर भरा है जितना भी
सबका सब आज निचोड़ो
छोड़ो…
ContinueAdded by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on April 16, 2011 at 2:01am — 1 Comment
Added by Sujit Kumar Lucky on April 16, 2011 at 12:00am — 1 Comment
ओस की कुछ बूँदें बिना बताए ले आई थी,
Added by Lata R.Ojha on April 15, 2011 at 11:00pm — 2 Comments
जलियावाला बाग में, बारूदी था जोर.
सारे जन मारे गए बचा न कोई और..
कातिल डायर ने कहा फायर फायर मार.
तड़ तड़ बरसें गोलियाँ भीषण करें प्रहार ..
मौत मिली थी…
Added by Er. Ambarish Srivastava on April 15, 2011 at 12:00am — 13 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on April 14, 2011 at 5:30pm — No Comments
Added by Lata R.Ojha on April 14, 2011 at 5:00pm — 2 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on April 14, 2011 at 4:30pm — 14 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on April 14, 2011 at 4:19pm — 1 Comment
बैठा है, किसी नई हलचल का इंतजार है,
खुदगर्ज दिल को आज फ़िर किसी से प्यार है
पुरानी उलफ़तों की दुहाई अब नही देता,
खुमारी है नई, पर खौफ़ तो बरकरार है
हर ज़ख्म को वक्त ने कर दिया है बख्तरबंद,
कुछ दर्द के निशान आज भी यादगार है
परख लें कंही नकली न हो पैमानें का नशा
पोशीदा बातों का कोई और भी…
Added by अमि तेष on April 14, 2011 at 2:00pm — 4 Comments
Added by rajkumar sahu on April 14, 2011 at 1:18am — No Comments
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