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दोष मेरा क्या ??

 

ओस की कुछ बूँदें बिना बताए ले आई थी,

लोग अश्क समझ बैठे तो दोष मेरा क्या?
कुछ किरचें और चुभन कांच की घुल गयी ओस में..
कोई खूबसूरती कहे मेरी तो दोष मेरा क्या ?
ज़िन्दगी की लपटों में तपती रही जो में..
समझें इसे तजुर्बा तो दोष मेरा क्या?
जो बेबसी पे मुस्कराई दो घडी को मैं ,
मुस्कान पे सब हों फ़िदा तो दोष मेरा क्या?
सबकी तरह नहीं,सबसे अलग सही..
ना हार मानूं ज़िन्दगी से तो दोष मेरा क्या ??


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Comment

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Comment by Lata R.Ojha on April 17, 2011 at 1:01am

Shukria Ganesh bhai:)

Aapko bhalaa kaise naaraz kar sakti hoon,ek aap hi to hain jo rachnaon ko padhte hain :))

Aapki baat maan ke profile pe apna chhaaya chitr lagaa rahi :)

:)))))))))) 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2011 at 9:43am

मुस्कान पे सब हों फ़िदा तो दोष मेरा क्या?

 

नहीं नहीं नहीं , लता जी आपका दोष कुछ भी नहीं है यह तो मुस्कान का दोष है :-) हा हा हा हा हा

 

सुंदर भाव के साथ लिखी खुबसूरत कविता, बहुत बढ़िया, साथ में कविता को चित्रों के साथ सजा कर प्रस्तुत करना, बहुत खूब , पर एक छोटी सी शिकायत कृपया अपने प्रोफाइल को भी अपनी छाया चित्र से सजा दे |

बहरहाल इस कविता पर बहुत बहुत आभार |

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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