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गलतफहमियों के लिए

किसी को कानों से सुनना,
और उस पर अमल कर जाना,
क्या ज़रूरी है !!
क्योंकि पूरे चाँद में भी,
रात की सच्चाई,
ज़रा अधूरी है...
मुझे महाभारत का,
वह कथन याद आया,
कि "अश्वत्थामा मारा गया "
ग़लतफ़हमी का शिकार,
वह कथन
द्रोण को खा गया
और हकीकत जानने से पहले ही,
एक महारथी,
काल को भा गया ,
कभी कभी भरोसा करना,
हमारी आवश्यकता नहीं,
मजबूरी है;
और गलतफहमियों के लिए भी,
थोड़ी पहचान ज़रूरी है

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Comment by neeraj tripathi on April 18, 2011 at 10:09am
dhanyavaad saurabhji...itna to main soch hi nahi sakta :)

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 18, 2011 at 10:06am

सत्य अपने पूर्ण या नग्न रूप में हो तो वह ब्रह्म है. जिसके आगे या परे कुछ नहीं. उस ब्रह्म पर शक्ति की माया इसे निरंतरता देती है जो इस जगती और प्रकृति का प्राकट्य है. यही प्रकट्य भ्रम का मूल है जो जीवन की निरंतरता के लिये अनिवार्य है. वर्ना ब्रह्म या पूर्ण के आगे कुछ भी नहीं. ..जीवन ही नहीं.

आपकी रचना इसी निरंतरता के एक विन्दु को रेखांकित करती हुयी प्रतीत होती है. धन्यवाद.

Comment by neeraj tripathi on April 18, 2011 at 9:54am
dhanyavaad Ganeshji

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 18, 2011 at 8:42am

और गलतफहमियों के लिए भी,
थोड़ी पहचान ज़रूरी है......

 

वाह वाह वाह, दमदार बात कही है आपने, खुबसूरत अभिव्यक्ति पर धन्यवाद आपको |

कृपया ध्यान दे...

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