गजल
दौरे-जहाँ में बन गया कुफ्तार आदमी।
सरे-बाजार में बिकने को हैं तैयार आदमी।।
धर्म-औ-ईमाँ को जो बेच के खा गये।
मौजूद है जहाँ में ऐसे कुफ्फार आदमी।।
कातिल दिन-दहाडे जुल्मो-सितम ढा रहे हैं।
वक्त के हाथों हैं बेबस-औ-लाचार आदमी।।
इसे दुनियां का आंठवा अजूबा ही समझना।
दर्जा-ए-जानवर में हो गया शुमार आदमी।।
कानून-औ-कायदो को करके दरकिनार।
बेखौफ कर रहा आदमी का शिकार आदमी।।
नमकपाश तो बेशुमार मिल जायेंगे मगर।
बडी मुश्किल से मिलते है गमख्वार आदमी।।
आजकल बेईमानो की तूती बोल रही है।
दर-बदर भटक रहा हैं ईमानदार आदमी।।
कुत्ते और बिल्लिया बंगलों में रह रहें हैं।
फुटपाथों पे जिंदगी रहा गुजार आदमी।।
गैरो पे इल्जाम लगाना अच्छी बात नहीं।
अपनी गल्ती मानने में बेजार आदमी।।
दौरे-जहाँ में सुकूँ से वही जी सकता।
करे सांप की मानिन्द फुंफकार आदमी।।
आबरु गिरवी रखने वाले से तो बेहतर।
मुफलिसी में जीने वाला खुद्दार आदमी।।
लोग अपनो पे एतबार करते नहीं इसलिए तो।
मुकर्रर हो जाते हैं गैर खास मुख्तार आदमी।।
मुद्दत से भटक रहें हैं खुशी की तलाश में।
मंजिल मिली न कहीं कोई हमवार आदमी।।
अब खूँ के रिश्ते भी दम तोडने लगे हैं।
दौरे-जहाँ में हो गया मक्कार आदमी।।
धन गया तो कुछ गया चंदन इज्जत गई तो बहुत कुछ।
गर हौसला गया तो सबकुछ खबरदार आदमी।।
कुफ्तार - वह जीव जो श्मसानों या कब्रो में से मृतक पुरूषो को निकाल कर खा जाता हैं।, कुफ्फार - नास्तिक, नमकपाश - व्यंग्य करने वाला, गमख्वार - संवेदनशील, मुकर्रर - नियुक्त, खुद्दार - स्वाभिमानी, मुख्तार -ऐजेन्ट/अभिकर्ता , हमवार -राजी, मक्कार - छली
नेमी चन्द पूनिया चंदन
Comment
कानून-औ-कायदो को करके दरकिनार।
बेखौफ कर रहा आदमी का शिकार आदमी।।
बहुत ही संजीदा ग़ज़ल पढ़ी है पुनिया साहिब , दाद कुबूल कीजिये |
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