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यूंही अचानक ..ना जाने कब ..

किस मोड़ पे तुम्हारी यादों से टकरा गयी..
और ..बीतती हुई ज़िन्दगी  फिर से लौट के ..
यादों के झरोखों में समा गयी..
कितना कुछ बिसरा दिया था ..
मन  को थोडा आराम दिया था ,
जीना शुरू ही किया था की..
आज फिर से भंवर में समा गयी..
क्या कहूं इसको?..ज़िन्दगी जीना या खोना..
ये तुम्हारे एहसास की ख़ुशी है या नया रोना..
कभी लगा था की मंजिल पास ही तो है...
जाने कब चिता की अग्नि में समा गयी..
जन्मी माटी से थी फिर देह माटी बन गयी..
पंचतत्व का अंश थी पंचतत्व में समा गयी


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Comment by Lata R.Ojha on April 14, 2011 at 9:35pm

Dhanyavaad Ganesh ji :) 

Avashya prayatn karoongi ki sabhi ki rachnaon ka aanand utha sakoon aur apne vichaar saanjhaa kar sakoon :):)


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2011 at 5:45pm
जन्मी माटी से थी फिर देह माटी बन गयी..
पंचतत्व का अंश थी पंचतत्व में समा गयी

वाह वाह , लता जी , क्या बात कही है, अंतिम सत्य का दर्शन करा दिया आपने , बहुत बहुत बधाई इस सुंदर काव्य कृत पर |
उम्मीद है आगे भी आपकी और भी रचना तथा अन्य साथियों की रचनाओं पर आपका महत्वपूर्ण विचार टिप्पणियों के माध्यम से मिलता रहेगा |

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