देशवासियों तन्द्रा तोड़ो।
आखें खोलो आलस छोड़ो।
उठो जगो बढ़ चढ़ो दुश्मनों
के रुण्डो मुण्डों को फोड़ो।
खुली चुनौती मिली मुम्बई
की कर लो स्वीकार ।
बचना पाये तुमसे कोई
घुसपैठी गद्दार
अगर हिफ़ाजत करे दुश्मनों
की कोई सरकार।
जड़ से उसे उखाड़ फेंकना
और करना ये हुँकार-
भारतमाता की जय।
आस्तीन में छिपे भुजंगों
के फण त्वरित मरोड़ो
जहर भरा है जितना भी
सबका सब आज निचोड़ो
छोड़ो छोड़ो देशवासियों
कायरता सब छोड़ो।
पर मत छोड़ो देशद्रोहियों
को मत यूँ ही छोड़ो।
वर्ना साल गुलामी के
फिर फिर आयेंगे करोड़ों
पृथ्वीराज के वंशज तुम
पर क्षमा इन्हें मत करना ।
भारतमाता को वरना फिर
नरक पड़ेगा भरना॥
वीर शिवाजी से सीखो
दुश्मन की छाती चढ़ना।
चेतकसे राणा प्रतापसे
सीखो रणमें अड़ना॥
विश्वपटलपर स्वच्छ छवि की
छोड़ो चिंता छोड़ो।
तोप टैंक ले चढ़ो शत्रु पर
भ्रम सब इसके तोड़ो
दौड़ो दौड़ो धरा गगन में
जलजंगल दौड़ो।
लेकर विजयी विश्व तिरंगा
त्रिभुवन का रुख मोड़ो॥
Comment
आस्तीन में छिपे भुजंगों
के फण त्वरित मरोड़ो
जहर भरा है जितना भी
सबका सब आज निचोड़ो
आदरणीय संदीप त्यागी जी , सर्वप्रथम OBO के मंच पर आपके प्रथम प्रस्तुति का ह्रदय से स्वागत करते है साथ ही कामना करते है कि आगे भी आप की रचनाएँ और अन्य साथियों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचार प्राप्त होते रहेंगे | जोश से लबरेज करने वाली एक बेहतरीन रचना आप ने प्रस्तुत किया है , शानदार अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करे श्रीमान |
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