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सावनी दोहे

सावनी दोहे

गुन -गुन गाएं धड़कनें, सावन में मल्हार ।

पलक झरोखों में दिखे, प्यासा -प्यासा प्यार ।।



अनुरोधों के ज्वार हैं, अधरों पर स्वीकार ।

प्रतिबन्धों की हो गई, मूक रैन में हार ।।



सावन में अक्सर बढे़, पिया मिलन की प्यास ।

हर गर्जन पर मेघ की, यादें करती रास । ।



बूंदों की अठखेलियां, नटखट से इंकार ।

बेसुध तन पर प्यार की, पड़ती रही फुहार…

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Added by Sushil Sarna on August 18, 2020 at 8:14pm — 10 Comments

वक़्त लगता है

221 2121 1221 212

सुन इश्क जादू-टोने में कुछ वक़्त लगता है/1

ये प्यार-व्यार होने में कुछ वक़्त लगता है

मैं चाहती हूँ रोना बड़ी जोर से मगर/2

दिल खोल कर के रोने में कुछ वक़्त लगता है

ये सर्द रातें दर्द बयां करती है मेरा*

अंधेरे कमरें में मैंने पैकर का घर देखा/3

तन्हा अकेले सोने में कुछ वक़्त लगता है

पड़ जाएं हम किसी के यूं ही इश्क़ में कैसे/4

हमको किसी का होने में कुछ वक़्त लगता है

हम तो ज़मीं पे सोते हैं तारों की छांव में/5

समझो…

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Added by Dimple Sharma on August 18, 2020 at 3:04pm — 7 Comments

दो चार रंग छाँव के हमने बचा लिए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

टूटे जो डाल से वही पत्ते उठा लिए

दीवार घर की सूनी थी उस पर सजा लिए।१।

**

वैसे खिले थे फूल भी किस्मत से तो बहुत

हमने ही अपनी राह में काँटे बिछा लिए।२।

**

नश्तर थे सब के हाथ में आये कुरेदने

आया था कौन घाव की बोलो दवा लिए।३।

**

कहने को धूप राह में तीखी तो थी मगर

दो चार रंग छाँव के हमने बचा लिए।४।

**

जैसे फिरे थे आपकी गलियों में हम कभी

फिरता रहा है कौन यूँ अपना पता लिए।५।

**

ये कर्ज किससे यूँ भला यारो… Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2020 at 11:05am — 14 Comments

विधि का विधान निभाने चली

विधि का विधान,निभाने चली।
आज मेरी लाड़ो,पिया घर चली।।

बाबुल के आंगन को, सूना कर चली।
वो ममता के आंचल को, छोड़ के चली।।
विधि का विधान _

वो भाई बहिन के,अनकहे प्यार का।
दिल में समंदर, बसा के चली।।
विधि का विधान_

वो बचपन की सखियां,वो गुड्डे और गुडियां।
मायके की देहरी ,सब छोड़ के चली।।
विधि का विधान_

वो बचपन की रातें,मीठी मीठी यादें।
यादों को जीवन का ,सहारा कर चली ।।
विधि का विधान_

नीता तायल

"मौलिक और अप्रकाशित"

Added by Neeta Tayal on August 17, 2020 at 5:38pm — 2 Comments

स्वतंत्रता दिवस पर कुछ दोहे :

15.8.20

स्वतंत्रता दिवस पर कुछ दोहे :



जाने कितने चढ़ गए, फाँसी माँ के लाल ।

मिट कर उन्नत कर गए, भारत माँ का भाल ।।



धधक रहा है आज भी ,जलियाँवाला बाग ।

जहां गूँजते आज भी, आजादी के राग ।।



चुपके -चुपके आज भी, हम पर होते वार ।.

नव भारत हर हाल में, रहता अब तैयार ।।



दुश्मन की हर चाल को, हम करते नाकाम ।

बदले भारत को सभी, करते आज सलाम ।।



आजादी की दे गए , मिट कर जो सौगात ।

रात गुलामी की गई, रोशन हुआ प्रभात… Continue

Added by Sushil Sarna on August 15, 2020 at 6:09pm — 10 Comments

आज़ादी के पुनीत पर्व पर वीर रस की कविता

आज पुनः जब मना रहे हम, वर्षगाँठ आज़ादी की

आओ थोड़ी चर्चा करलें, जनगण मन आबादी की

जिन पर कविता गीत लिखूँ तो, झर-झर आँसू आते हैं

रोम-रोम में सिहरन होती, भाव सभी मर जाते हैं।।1

ऐसे भी हैं यहाँ कई जो, घर को सर पर ढोते हैं

घोर अँधेरा फुटपाथों पर, बिना बिछौना सोते हैं

गर्मी में तन झुलसे उनका, सर्दी हाड़ कँपाती है

तब जश्ने आज़ादी अपनी, उनको ख़ूब चिढ़ाती है।।2

भूखा प्यासा उलझा बचपन, भटक रहा अँधियारों में

फूटी क़िस्मत खोज रहा वह, कूड़े के गलियारों…

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Added by नाथ सोनांचली on August 15, 2020 at 12:07pm — 8 Comments

ग़ज़ल-जैसा जग है वैसा ही हो जाऊँ तो

बह्र-ए-मीर
पतझर में भी गीत बसंती गाऊँ तो
जैसा जग है वैसा ही हो जाऊँ तो

अंदर का अँधियारा क्या छट जायेगा
कोशिश करके बाहर दीप जलाऊँ तो

शायद लौट चले आएं रूठे पलछिन
फूलों से जो उनकी राह सजाऊँ तो

कार्य हमारे भी सारे सध जायेंगे
सुविधा शुल्क लिये ये हाथ बढ़ाऊँ तो

जग सारा देखेगा 'ब्रज' के पांव फटे
जो चादर के बाहर पग फैलाऊँ तो


(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 14, 2020 at 10:00pm — 14 Comments

जरा याद उन्हें भी कर लो

"जरा याद उन्हें भी कर लो"

भारत मेरा देश है और

हिन्दी मातृभाषा है।

मैं भारत का प्रेमी हूं,

और प्रेम ही मेरी परिभाषा है।।

सत्य, अहिंसा और प्रेम के,

पथ का जिसने ज्ञान दिया।

करो या मरो का नारा भी,

उस वीर महान ने दिया।।

आज़ादी की खातिर "बोस" जी ,

जमकर करी लड़ाई थी।

खून के बदले आज़ादी की ,

आवाज भी "बोस" ने उठाई थी।।

क्रान्तिकारी "भगत सिंह" ने,

क्रान्ति खूब मचाई थी।

"इन्कलाब जिन्दाबाद" की ,

धूम खूब मचाई थी।।

"सारे…

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Added by Neeta Tayal on August 14, 2020 at 5:27pm — 3 Comments

यूँ ख़यालों में सनम आने लगे हैं...(ग़ज़ल मधु पासी 'महक')

बह्रे-रमल मुसद्दस सालिम

2122 / 2122 / 2122

यूँ ख़यालों में सनम आने लगे हैं

दिल को मेरे अब वो महकाने लगे हैं [1]

देखते हैं मेरी जानिब इस तरह से

राज़-ए-दिल जैसे वो बतलाने लगे हैं [2]

इश्क़ से अंजान हैं जो लोग अब तक

है मुहब्बत क्या ये समझाने लगे हैं [3]

वो सियासत-दाँ वतन जिनको था सौंपा

देश की मीरास बिकवाने लगे हैं [4]

वो रहा करते हैं आँखों में कुछ ऐसे

जागते में ख़्वाब दिखलाने लगे हैं…

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Added by Madhu Passi 'महक' on August 13, 2020 at 9:47pm — 12 Comments

मशीनी पुतले

ये जो चलते फिरते मशीनी
पुतले हो गए हैं हम ।
अंधेरे जलसों के धुएँ
में खो गए हैं हम ।
किसी के अश्क़ को पानी
सा देखने लगे हैं,
किसी की सिसकियों को
अभिनय कहने लगे है।
ये जो चलते फिरते मशीनी
पुतले हो गए हैं हम ,
संवेदनाओं से मीलों
दूर ,हो गए हैं हम ।
.
मौलिक व अप्रकाशित"

Added by S.S Dipu on August 13, 2020 at 8:00pm — 4 Comments

रानी ताराबाई

भारत वर्ष के इतिहास में नारियों की उपलब्धियों की जितनी बातें की जाये उतनी ही कम है| भारत के एक वीर नारी के बारे में पढ़ो तो दूसरी के बारे में अपने आप ही उत्सुकता जाग जाती है| उन महान योद्धाओं के व्यक्तित्व, साम्राज्य, युद्ध रणनीति और उनके कौशल को अधिक से अधिक जानने का मन करता है| वर्तमान में औरंगज़ेब लगभग समूचे उत्तर भारत को जीतने के पश्चात दक्षिण में अपने पैर जमा चुका था| अब उसकी इच्छा थी कि वह पश्चिमी भारत को भी जीतकर…

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Added by PHOOL SINGH on August 13, 2020 at 7:30pm — 4 Comments

कुछ दोहे : प्रश्न - उत्तर:.....

प्रश्नों का प्रासाद है, जीवन की हर श्वास ।

मरीचिका में जी रहा, कालजयी विश्वास । ।

प्रश्नों से मत पूछिए, उनके दिल का हाल ।

उत्तर के नखरे बड़े, करते बहुत सवाल ।।

बिन उत्तर हर प्रश्न ज्यूँ, बिना पाल की नाव ।

इक दूजे को दम्भ का, दोनों देते घाव ।।

प्रश्न अगर हैं तीक्ष्ण तो , उत्तर भी उस्ताद ।

बिन उत्तर के प्रश्न का, बढ़ जाता अवसाद ।।

उत्तर से बढ़कर नहीं, प्रश्नों का अस्तित्व।

इक दूजे में है निहित, दोनों का…

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Added by Sushil Sarna on August 13, 2020 at 5:30pm — 6 Comments

जिसको हम ग़ैर समझते थे...(ग़ज़ल : सालिक गणवीर)

2122 1122 1122 22

जिसको हम ग़ैर समझते थे हमारा निकला

उससे रिश्ता तो कई साल पुराना निकला (1)

हम भी हरचंद गुनहगार नहीं थे लेकिन

बे-क़ुसूरों में फ़क़त नाम तुम्हारा निकला (2)

हम जिसे क़ैद समझते थे बदन में अपने

वक़्त आया तो वो आज़ाद परिंदा निकला (3)

जान पर खेल के जाँ मेरी बचाई उसने

मैं जिसे समझा था क़ातिल वो मसीहा निकला (4)

दोस्तो जान छिड़कता था जो कल तक मुझ पर

आज वो शख़्स मेरे ख़ून का प्यासा निकला…

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Added by सालिक गणवीर on August 13, 2020 at 4:00pm — 10 Comments

तुम्हीं आये हरदम टहलते हुए.- ग़ज़ल

मापनी 

१२२ १२२ १२२ १२ 

 

कई ख़्वाब देखे मचलते हुए.

तुम्हीं आये हरदम टहलते हुए.

 

तबस्सुम के पीछे छिपे कितने ग़म,

कभी मोम देखो पिघलते हुए.

 

जहाँ भी हमें सत्य…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on August 12, 2020 at 7:17pm — 8 Comments

नाज़ नख़रों का अंदाज़....

212 212 212 212

नाज़   नख़रों   का  अंदाज़  अच्छा  लगा

इस  मुहब्बत  का  आग़ाज़  अच्छा  लगा-1

सोचा  था  हम  न  देखेंगे  मुड़  के  कभी

पर   बुलाने   का   अंदाज़   अच्छा  लगा-2

बेदख़ल दिल  से हमको  न करना  कभी

धड़कनों  का   तेरा  साज़  अच्छा  लगा-3

मेरी ख़ालिस  मुहब्बत को ठुकरा…

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Added by Sarfaraz kushalgarhi on August 12, 2020 at 4:30pm — 15 Comments

आँगन वो चौड़ा खेत के छूटे रहट वहीं - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२१/१२२१/२१२



पूछो न आप गाँव को क्या क्या हैं डर दिये

खेती को मार  खेत  जो  सेजों से भर दिये।१।

**

पाटे गये वो ताल भी पुरखों की देन जो

रख के विकास नाम ये अन्धे नगर दिये।२।

**

आँगन  वो  चौड़ा  खेत  के  छूटे  रहट  वहीं

दड़बों से आगे कुछ नहीं जितने भी घर दिये।३।

**

वो भी धरौंदे तोड़  के  हम  से ही  थे गहे

कहकर सहारा आप ने तिनके अगर दिये।४।

**

कोई चमन  के  फूल  को  पत्थर बना रहा

कोई था जिसने शूल भी फूलों से कर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2020 at 6:30am — 5 Comments

मोहब्बत क्या है .......

मोहब्बत क्या है .......



तुम समझे ही नहीं

मोहब्बत क्या है

मेरी तरह

कुछ लम्हे

तन्हा जी कर देखो

दीवारों पर अहसासों के अक्स

रक्स करते नज़र आएंगे

दर्द के सैलाब

आखों में उतर आएंगे

लबों के साहिल पर

अलफ़ाज़ कसमसायेंगे

अंधेरों के कहकहे

रूह तक पसर जाएंगे

तब तुम जानोगे

मोहब्बत क्या है

उलझी लटों को सुलझाना

मोहब्बत नहीं है

ज़िस्मानी गलियों से गुजर जाना

मोहब्बत नहीं है

हिर्सो-हवस के पैराहन

पहने रहना

मोहब्बत नहीं…

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Added by Sushil Sarna on August 11, 2020 at 4:56pm — 2 Comments

३ क्षणिकाएँ : याद

३ क्षणिकाएँ : याद

आँच
सन्नाटे की
तड़पा गई
यादों का शहर

.......................

एक टुकड़ा
चमकता रहा
ख़्वाब का
मेरी खामोशियों में
तुम्हारी याद का

..........................

पिघलती रही
यादों की बारिश
बंद आँखों की
झिर्रियों से
दर्द बनकर
उल्फ़त का

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on August 11, 2020 at 4:50pm — 6 Comments

रस्ते की बात है न ये रहबर की बात है...(ग़ज़ल-सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212

रस्ते की बात है न ये रहबर की बात है

पा लेना मंज़िलों को मुक़द्दर की बात है

ये बोरिया की है मिरे बिस्तर की बात है

फूलों की सेज मिलना मुक़द्दर की बात है

उस वाक़िआ का ज़िक्र मुनासिब नहीं यहाँ

चल घर पे चलके बात करें घर की बात है

कब कौन किसके शाने पे चढ़ जाए क्या पता

ऊपर पहुँचना भी तो सुअवसर की बात है

सब की क़लम से एक ही क़िस्सा निकलता था

आज़ादी छिन गई थी पिछत्तर की बात…

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Added by सालिक गणवीर on August 10, 2020 at 11:30pm — 12 Comments

मगर हड़का रहा है (गजल)

उसकी ना है इतनी सी औकात मगर हड़का रहा है

झूठे में ही खा जाएगा लात मगर हड़का रहा है

औरों की बातों में आकर गाल बजाने वाला बच्चा

जिसके टूटे ना हैं दुधिया दाँत मगर हड़का रहा है

जिसके आधे खर्चे अपनी जेब कटाकर दे रहे हैं

अबकी ढँग से खा जायेगा मात मगर हड़का रहा है

आदर्शों मानवमूल्यों को छोड़ दिया तो राम जाने

कितने बदतर होंगे फिर हालात मगर हड़का रहा है

उल्फत की शमआ पर पर्दा डाल रहा है बदगुमानी

कटना मुश्किल है नफरत की रात…

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Added by आशीष यादव on August 10, 2020 at 6:36pm — No Comments

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