For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,987)

तस्वीर: एक मोहक चित्र

2122 2122 2122 2122

क्या पता उस लोक में दिखती हैं कैसी अप्सराएँ

किस तरह चलतीं मचल कर किस तरह से भाव खाएँ

कौन सा जादू लिए फिरतीं सभी पर मार देतीं

किस तरह पुचकारती हैं किस तरह से प्यार देतीं 

क्या महावर और मेहँदी आँख में काजल अनोखा

केशिनी मृगचक्षुणी हैं सत्य, या उपमान धोखा 

किस तरह श्रृंगार रचती किस तरह गेशू सजाएँ

क्या पता कितनी सही है आमजन की कल्पनाएँ

आज देखी थी परी जो हाल कुछ उसका सुनाऊँ

देखता ही रह गया…

Continue

Added by आशीष यादव on January 19, 2023 at 6:32am — 1 Comment

बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ- गीत १३(लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

सदियों पावन धाम रहा जो खोते देख रहा हूँ

बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ !

*

केवल अपनी  पीड़ा  से  जो, दरक  नहीं  रहा है

पूर्ण हिमालय की पीड़ा को, उसने आज कहा है।।

पानी रिसना  बोल  रहे  सब, देख फूटतीं धमनी

खोद खोद कर देह सकारी, जब कर बैठे छलनी।।

नयी सभ्यता के प्रलय को होते देख रहा हूँ

बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ।।

*

सिर्फ़ सैर के लिए हिमालय, सबने मान लिया है

इसीलिए तो अघकचरा सा हर निर्माण किया है।।

जो संचालक देश - राज्य के,…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 18, 2023 at 6:30pm — 6 Comments

गीत.... असल कामयाबी जीवन की

असल कामयाबी जीवन की

सहज सरल सादा जीवन हो



बचना होगा वासना लिप्सा

अतिशय कामना नहीं मन हो

चल सकता काम अगर दो रोटी

तो एक गाय कुत्ते को दे दो !

पेट भरा होने पर भैया

उसे कभी अवकाश भी दो

असल कामयाबी जीवन की

सहज सरल सादा जीवन हो

होता सूर्य है उत्तरायण

सुनहला है अब वातावरण

निकली है अब धूप धुंध से

क्षमा भाव अपनाते सज्जन

सहने की सामर्थ्य बढ़ा लो

असल कामयाबी जीवन की

सहज…

Continue

Added by Chetan Prakash on January 17, 2023 at 10:00pm — 2 Comments

सदा - क्यों नहीं देते

221--1221--1221--122

1

आँखों में भरे अश्क गिरा क्यों नहीं देते

है दर्द अगर सबको बता क्यों नहीं देते

2

है जुर्म मुहब्बत तो सज़ा क्यों नहीं देते

गर रोग है तो इसकी दवा क्यों…

Continue

Added by Rachna Bhatia on January 16, 2023 at 1:30pm — 14 Comments

दासतां दिल की

कभी मैं दासतां दिल की, नहीं खुल के बताता हूँ

कई हैं छंद होंठो पर, ना उनको गुनगुनाता हूँ

अभी तो पाया था मैंने, सुकून अपने तरानों से

उसे तुम भी समझ जाओ, चलो मैं आजमाता हूँ

 

जो लिखता हूँ जो पढ़ता, हूँ वही बस याद रहता है

बस कागज कलम हीं है, जो मेरे पास रहता है

भरोसा बस मुझे मेरी, इन चलती उँगलियों पर है

ज़हन जो सोच लेता है, कलम वो छाप देता है

 

भले दो शब्द हीं लिक्खु, पर उसके मायने तो हो

सजाने को मेरे घर में , कोई एक आईना…

Continue

Added by AMAN SINHA on January 16, 2023 at 11:30am — No Comments

महक उठा है देखो आँगन (गीत-१२)-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

महक उठा है देखो आँगन, सुनकर ये संदेश।

साजन अपने घर लौटेंगे, छोड़ छाड़ परदेश।।

*

जाने कितने पुष्प पठाये सुनके वनखण्डी ने।

जिन से गूँथे गाँव सकारे सर्पिल पगडण्डी ने।।

पतझड़ में आया है गाने फागुन हँसकर गीत।

सूने मन के आँगन होगा अब ऋतुराज प्रवेश।।

*

पोंछ पसीना अँगड़ाई ले जगकर थकी क्रियाएँ।

सौंप रही मीठे सम्बोधन फिर से खुली भुजाएँ।।

करने को उद्यत मनुहारें, झील किनारे चाँद।

बनजारा सूरज ठहरा है, फिर सुलझाने केश।।

*

सब खुशियाँ हैं सेज सजाती, करती नव…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2023 at 5:05am — 4 Comments

ग़ज़ल - थामती नहीं हैं पलकें अश्कों का उबाल तक (ज़ैफ़)

 212 1212 1212 1212 

थामती नहीं हैं पलकें अश्कों का उबाल तक

भूल-सा गया है दिल भी, धड़कनों की ताल तक 

दो दिलों की दास्ताँ न कोई समझा है यहाँ 

अपना इश्क़ आ ही पहुँचा जुर्म के मलाल तक 

ऐ ख़ुदा, रखूँ मैं तुझसे रहमतों की आस क्या

मैं पहुँचता ही नहीं कभी तेरे ख़याल तक 

हाय! आ रहा है प्यार झूठे ग़ुस्से पर तेरे 

लाल शर्म से पड़े हैं यार, तेरे गाल तक 

आशना तुझे कहा है मैंने जाने किसलिए

पूछता…

Continue

Added by Zaif on January 12, 2023 at 7:30pm — 2 Comments

सर्द रातें और प्रेम - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

( सरसी छंद)

***

धीरे-धीरे जब आती है, घर आँगन में शीत।

नाना रूपों में रक्षा  को, ढल जाती है प्रीत।।

माँ के हाथों स्वेटर में ढल, दे बचपन में साथ।

युवा हुए तो ऊष्मा देता, बन अनजाना हाथ।।

*

पत्नी होकर सदा चूमता, स्नेह शीत में माथ।

होते वंचित सिर्फ शीत में, लोगो यहाँ अनाथ।।

बचपन, यौवन रहे बुढ़ापा, सर्द शीत की रात।

उष्मित करती तन्हाई में, सिर्फ प्रीत की बात।।

*

प्रेम रहित तनमन करता है, जीवन से परिवाद।

सर्द शीत की रातों की  तो, ला  मत कोई…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2023 at 6:22am — 1 Comment

अपनो को खो देने का ग़म - २६/११ की याद में

अपनों को खो देना का ग़म, रह रह कर हमें सताएगा

चाहे मरहम लगा लो जितना, ये घाव ना भरने पाएगा

कैसे हम भुला दे उनको, जो अपने संग हीं  बैठे थे

रिश्ता नहीं था उनसे फिर भी, अपनो से हीं लगते थे

 

कैसे हम अब याद करे ना, उन हँसते-मुस्काते चेहरों को

एक पल में हीं जो तोड़ निकल गए, अपने सांस के पहरों को

हम थे,  संग थे ख्वाब हमारे, बाकी सब दुनियादारी…

Continue

Added by AMAN SINHA on January 10, 2023 at 9:54am — No Comments

सौन्दर्य का पर्याय

उषा अवस्थी

"नग्नता" सौन्दर्य का पर्याय 

बनती जा रही है

फिल्म चलने का बड़ा आधार

बनती जा रही है

"तन मेरा मैं

जो भी चाहे सो करूँ"

की विषैली सोच का उन्माद 

गहती जा रही है

आधुनिकता शब्द का

नव अर्थ गढ़

संक्रमण का बीज धरती पर

सतत बिखरा रही है

मार्ग मध्यम छोड़कर 

है दिन-ब-दिन

अमर्यादित आचरण

विस्तार करती जा रही है

"नग्नता" सौन्दर्र का…

Continue

Added by Usha Awasthi on January 7, 2023 at 11:30am — 4 Comments

एक गीत

अजब मौसम हुआ है आज वो  सूरज नहीं है

है बर्फीली फज़ा जारी साज़ तो सूरज नहीं है !

मरें मुफ़लिस अभी ठंडी उन्हें घर क्या क़मी है

लगे हैं लाव लश्कर दर अमीरों  क्या ग़मी है

अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है !

दरीचों पर जमी है बर्फ ठिठुरन हड्डियों है

है बिस्तर गर्म नेताओं के गरमी गड्डियों है

बुलाकर अफसरों को घर अभी फाइल पढ़ी है

है मौसम ये पकोड़ो का अभी दारू उड़ी है

गरीबों को लगे अब ठंड चढ़ती फुरफुरी…

Continue

Added by Chetan Prakash on January 6, 2023 at 9:00pm — No Comments

ग़ज़ल (ज़ैफ़)

2122 1212 22/112

इश्क़ में दिल-जले नहीं होते

काश के तुम मिरे नहीं होते

बस ज़रूरत बिगाड़ देती है

लोग वर्ना बुरे नहीं होते

यूँ चमत्कार रोज़ होते हैं

बस हमारे लिए नहीं होते

दोष मत दो नसीब को अपने

दुनिया में ग़म किसे नहीं होते

एक बिजली जला गई थी यूँ

ये शजर अब हरे नहीं होते

तोड़ना दिल मुझे भी आता है

काश तुम फूल-से नहीं होते

'ज़ैफ़' उनका तो हो गया लेकिन

वो…

Continue

Added by Zaif on January 6, 2023 at 7:27pm — 7 Comments

तरही ग़ज़ल

ग़ज़ल 

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ 

उजाला  इसलिए  कमरे  में  पहले सा नहीं रहता 

हमारे  साथ  अब  वो चाँद   सा  चहरा नहीं रहता 

 

ग़िलाज़त  ही ग़िलाज़त  है सियासत तेरी बस्ती में 

यहाँ  आकर कोई भी  शख़्स पाकीज़ा नहीं रहता 

जूनूँ के दश्त में जिस दिन से दाख़िल हो गया हूँ मैं 

मेरी    दीवानगी    पे     दोस्तो   पहरा नहीं रहता 

उसी  को मंज़िल-ए-मक़सूद  मिलती  है ज़माने में 

जो  सर  पर  हाथ रख कर दोस्तो बैठा नहीं…

Continue

Added by Samar kabeer on January 6, 2023 at 3:41pm — 18 Comments

गीत-११ (लक्ष्मण धामी "मुसाफिर")

गीत-११

*

स्वार्थ के विधान अब और यूँ गढ़ो नहीं।

अर्थ के अनर्थ कर प्रपंच नित पढ़ो नहीं।।

*

आप यूँ अनीति  को  लोभवश  न मान दो।

छीन निर्बलों से मत सशक्त को जहान दो।।

मार्ग  हो  कठिन  भले  हर  परोपकार  का।

सिर्फ हित स्वयं के ही मत कभी वितान दो।।

*

अशक्त पर प्रहार कर क्रूर दर्प से बिहँस।

मानकर अनाथ हैं  दोष  निज मढ़ो नहीं।।

*

आह हर अशक्त  की वज्र जब रचायेगी।

कौन शक्ति पाप का घट भला बचायेगी।।

हर तमस के अन्त को दीप जन्मता सदा।

सूर्य की…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2023 at 2:23pm — 2 Comments

दोहा ग़ज़ल -चाय

दोहा ग़ज़ल- चाय

प्याली से हो चाय की ,जाड़े  का  सत्कार ।

फिर चुस्की से नेह का, बढ़े  प्रणय  संसार ।

नैन मिले  जब नैन से, स्वरित  हुआ  संदेश,

किया अधर अभिसार ने,जाड़े का  शृंगार  ।

रैन अलावों  में हुए , क्षीण  सभी  अनुबंध  ,

अन्धकार  की   कैद  में, हार  गए   इंकार ।

बढ़ी शीत होने लगा , मन में मिलन  प्रभात,

दम  तोड़ा  इंकार  ने, जीत  गए   स्वीकार ।

मौन चरम मुखरित हुए, चली  प्रेम की नाव ,

वाह्य  अगन …

Continue

Added by Sushil Sarna on January 4, 2023 at 3:45pm — No Comments

राष्ट्र (कविता)

भाल जिसका है हिमालय औ तिरंगा शान है

देश  प्यारा  वह  हमारा   नाम   हिन्दुस्तान है

हर सुबह जिसकी सुहानी सुरमई औ' शाम है

स्वर्ग सा यह देश अपना मोक्ष का यह धाम है

खेत  गिरि मैदान जंगल लहकतीं हरियालियाँ

भोर  की आहट मिले  तो स्वर्ग सी हो वादियाँ।

पूर्व  में आसाम  मेघालय  मिजोरम  ख़ास  है

साथ में बंगाल सिक्किम का अमर इतिहास है

गन्ध  फूलों  की  बिखरती  है  हवाओं  में वहाँ

गीत गाते खग  ख़ुशी  के …

Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 2, 2023 at 7:42am — No Comments

कौन विदाई देगा बोलो- (गीत-१०)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

गीत-१०

----------

सब स्वागत में खड़े हुए हैं, आने वाले साल के

कौन विदाई देगा  बोलो, जाने वाले साल को।।

*

कितनी कड़वी मीठी  यादें, बाँधे घूम रहा गठरी में

आँसू वाली आँख न कोई, देखी मतवाली नगरी में

आया था तो पलकपावड़े, बिछा दिये थे सब लोगो ने

आज न कोई पूछ रहा है, बोलो जाओगे किस डगरी।।

*

दुख पाया जिसने उसकी तो, बात समझ में आती है

सुख पाने वाले  भी  कहते,  रुको न जाते काल को।।

*

माना अभिलाषायें सबकी, पूर्ण न कर पाया हो लेकिन

कुछ…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2022 at 1:30pm — No Comments

आना नूतन साल-( गीत -९)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

( गीत -९)

**

हर्षित करने सब का जीवन, आना नूतन साल।

निर्धन हो कि धनी नर नारी, रखना उन्नत भाल।।

*

धर्म जाति से फूट मत पड़े, हो जनता समवेत।

नगर गाँव में अन्तर कम हो, यूँ व्यवहार समेत।।

हर आँगन में किलकारी हो, हरा भरा हर खेत।

स्वर्ण कणों में अबके बदले, ऊसर मिट्टी रेत।।

*

अतिशय हों भण्डार अन्न के, दूध दही भरपूर।

महामारियों, दुर्भिक्षो का, रूप न ले फिर काल।।

*

शासक कोई न हो विश्व में, इतना बढ़चढ़ क्रूर।

झोंके जायें और समर में, राष्ट्र न अब…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2022 at 3:53pm — 4 Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकांत कविता : सुनो ना (गणेश बागी)

अतुकांत कविता : सुनो ना

=====

सुनो ना,

कहनी है मुझे

दिल की बात..

जब घर से निकलता हूँ

और कोई पूछ लेता है,

कहाँ जा रहे हो

मैं बुरा नहीं मानता

जब चलता हूँ गाड़ी से

और बिल्ली काट देती है रास्ता

मैं रुकता नहीं

चलता रहता हूँ

मैं नही मानता अंधविश्वास

जब भी निकलता हूँ

किसी महत्वपूर्ण कार्य हेतु

माँ खिलाती है

दही और चीनी

माँ को है विश्वास

ऐसा करना

होता है शुभ …

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 27, 2022 at 5:30pm — 5 Comments

पुरानी ग़ज़ल (ज़ैफ़)

11212 11212 11212 11212 

हैं यूँ ज़िंदगी ने सितम किए, मुझे क्या से क्या है बना दिया

मैं तो आसमाँ के सफ़र में था, मुझे ख़ाक में ही मिला दिया

ये ख़ुशी भी दर्द समेत थी, कि ग़मों के सहरा की रेत थी

जो ख़ुशी ने लाके दिया मुझे, मिरे ग़म ने उसको भी खा दिया

मिरे दिल में दर्द ही दर्द था, कि तमाम उम्र ये सर्द था

लहू सारा दिल ने उड़ेल कर यूँ नज़र के रस्ते गिरा दिया

जो दिल-ओ-जिगर से भी प्यारा था, जिसे अपना कहके पुकारा…

Continue

Added by Zaif on December 26, 2022 at 9:17pm — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, सार छंद आधारित सुंदर और चित्रोक्त गीत हेतु हार्दिक बधाई। आयोजन में आपकी…"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,छन्नपकैया छंद वस्तुतः सार छंद का ही एक स्वरूप है और इसमे चित्रोक्त…"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरी सारछंद प्रस्तुति आपको सार्थक, उद्देश्यपरक लगी, हृदय से आपका…"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, आपको मेरी प्रस्तुति पसन्द आई, आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।"
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
15 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय "
15 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार। "
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, निज जीवन की घटना जोड़ अति सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, सार छंद में छन्न पकैया का प्रयोग बहुत पहले अति लोकप्रिय था और सार छंद की…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service