For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुरानी ग़ज़ल (ज़ैफ़)

11212 11212 11212 11212 

हैं यूँ ज़िंदगी ने सितम किए, मुझे क्या से क्या है बना दिया

मैं तो आसमाँ के सफ़र में था, मुझे ख़ाक में ही मिला दिया

ये ख़ुशी भी दर्द समेत थी, कि ग़मों के सहरा की रेत थी

जो ख़ुशी ने लाके दिया मुझे, मिरे ग़म ने उसको भी खा दिया

मिरे दिल में दर्द ही दर्द था, कि तमाम उम्र ये सर्द था

लहू सारा दिल ने उड़ेल कर यूँ नज़र के रस्ते गिरा दिया

जो दिल-ओ-जिगर से भी प्यारा था, जिसे अपना कहके पुकारा था

मैं मुड़ा तो मेरी ही पीठ पर छुरा भी उसी ने चला दिया

कभी टूटे दिल का मैं दाग़ था, कभी चटका एक चिराग़ था

कभी आहें मुझको जला गईं, कभी आँधियों ने बुझा दिया 

है हज़ार शुक्र कि साथ हैं, ये माँ-बाप रब ही के हाथ हैं

कि जहाँ का प्यार समेट कर है मुझी पे सारा लुटा दिया

जो मरा सड़क पे ग़रीब था, यूँ ख़राब उसका नसीब था

किसी शख़्स ने पड़ी लाश पर न कफ़न भी एक चढ़ा दिया

सभी चीज़ों पर वहाँ सख़्ती है, कोई बोले तो ज़बाँ कटती है

सो ग़ुलामियों से भी पेशतर यहाँ अपना सर ही उड़ा दिया

मुझे ज़िंदगी से मिला है क्या, किया मैंने कोई गिला है क्या

वो जो ज़ख़्म देती रही मुझे, सो क़ुबूल कर के भुला दिया

कभी माँगता नहीं बेसबब, मैं तो कुछ भी 'ज़ैफ़' जहाँ से अब

कि नदामतों के सिवा मुझे कभी इस जहाँ ने है क्या दिया

(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 155

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Zaif on January 6, 2023 at 7:34pm

आ. लश्मण जी। उन शे'रों में गुंजाइश नहीं दिखी तो ग़ज़ल से ख़ारिज कर दिया है।  बहुत शुक्रिया, आपका ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2022 at 5:54am

आ. भाई जैफ जी, अभिवादन।गजल का प्रयार अच्छा है। भाई समर जी की बात से सहमत हूँ। हार्दिक बधाई।

Comment by Zaif on December 30, 2022 at 6:28pm

बहुत शुक्रिया उस्ताद जी, सुधार की कोशिश करता हूँ। सादर

Comment by Samar kabeer on December 30, 2022 at 3:32pm

जनाब ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'जो ख़ुशी ने लाके दिया मुझे, मिरे ग़म ने उसको भी खा दिया'

इस मिसरे का वाक्य विन्यास ठीक नहीं है देखें ।

'लहू सारा दिल ने उड़ेल कर यूँ नज़र के रस्ते गिरा दिया'

उड़ेल--'उँडेल'

'है हज़ार शुक्र कि साथ हैं, ये माँ-बाप रब ही के हाथ हैं'

इस मिसरे में 'मॉं' शब्द को 1 पर लेना उचित नहीं,देखें ।

'किसी शख़्स ने पड़ी लाश पर न कफ़न भी एक चढ़ा दिया'

इस मिसरे का वाक्य विन्यस ठीक नहीं है, देखें ।

Comment by Zaif on December 29, 2022 at 2:53pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय, सादर।

Comment by Shyam Narain Verma on December 27, 2022 at 6:01pm
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

PHOOL SINGH posted a blog post

सम्राट अशोक महान

चन्द्रगुप्त का पौत्र, जो बिन्दुसार का पुत्र थाबौद्ध धर्म का बना अनुयायीजो धर्म-सहिष्णु सम्राट…See More
yesterday
मनोरमा जैन पाखी left a comment for मनोरमा जैन पाखी
"धन्यवाद आद. योगराज प्रभाकर सर जी"
Sunday
मनोरमा जैन पाखी updated their profile
Sunday
Manoj Misran is now a member of Open Books Online
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"बहतर है शुक्रिया आपका अमित जी सादर"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय Mahendra Kumar जी  1. मतला ग़ज़ल का पहला शे'र और सबसे अह्म हिस्सा होता है। उसे…"
Saturday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
""ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:" अंक-153 को सफल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का हार्दिक…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
" जी ठीक है हमको फ़ुर्सत ही नहीं कार-ए-जहाँ से जानाँ "आपके मिलने का होगा जिसे अरमाँ…"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय अमित जी एक और प्रयास देखिएगा सादर हमको फ़ुर्सत ही नहीं कार-ए-जहाँ से मिलती "आपके मिलने…"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय महेंद्र जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय अजय जी। सादर।"
Saturday
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत-बहुत शुक्रिया। संज्ञान ले लिया गया है। सादर।"
Saturday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service