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चल दिल चलें अपने जहाँ.......

दर्द भरा है ये समां, होने लगा धुआं धुआं.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.



दो पल मुझे हंसा गया, सदियों मगर रुला गया.

सीने में आग जल गयी, इतना मुझे सता गया,

रोने लगा रुवां रुवां, चल दिल चलें अपने…

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Added by इमरान खान on May 6, 2012 at 11:41am — 7 Comments

मुझे उम्र भर एक रियाज बक्श दी

किसी  अदीब  ने  मुझे  अलफ़ाज़  बक्श  दी

खामोशियों  को  आवाज़  बक्श  दी
 
 
मेरे  दहलीज़  पर  भी  थोड़ी  रौनक  हो…
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Added by Nilansh on May 6, 2012 at 9:30am — 6 Comments

उफ़! .. बड़ी गर्मी है!

उफ़!.... बड़ी गर्मी है!

घर के दरवाजे-खिड़कियाँ बंद हैं

एयर कंडीसन ऑन है

बहुत अच्छा लग रहा है!

तभी,

बिजली चली गयी!

थोड़ी देर बाद ही

तन से, निकलने लगे पसीने!

ओह कैसी चिपचिपाहट,

कपड़े हो गए गीले!

खिड़की खोलकर झाँका

एक गर्म हवा का झोंका

मानो चेहरे की कोमलता को

निचोड़ गया

तन को झकझोड़ गया!

उफ़!... बड़ी गर्मी है!

मैं पांचवी मंजिल से झांक रहा था

देखा,

कुछ मजदूर इस गर्मी में भी

मन लगाकर,

हंसमुख चेहरे दिखाकर

काम कर रहे…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2012 at 6:27am — 19 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
एक नयी दुनिया

एक  नयी  दुनिया 

एक  नयी  दुनिया देखी  है अन्तः  मन  की  आँखों  से

 

जिसमे  कोई  रंग  नहीं  हैं , पर  सारे  रंगों  से  सुन्दर…

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Added by Dr.Prachi Singh on May 5, 2012 at 9:42pm — 6 Comments

गजल

कुछ नया इसमें नहीं , दास्तां पुरानी दे गया 

यार मेरा आँख को नमकीन पानी दे गया |


मैं इसे सबको सुनाऊं , लोग सुनते झूम के …
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Added by dilbag virk on May 5, 2012 at 8:18pm — 6 Comments

कविता -01- माछेर झोल भात और कुटनी !

कविता -01- माछेर झोल !

 

जब ओडिशा में

चलें ठंडी हवाएं

तट…

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Added by Abhinav Arun on May 5, 2012 at 7:11pm — 17 Comments

"न जाने क्यूँ किसी को खल रहा हूँ"

न  जाने  क्यूँ  किसी  को  खल  रहा  हूँ ,

मै  अपनी  रह  गुज़र  पर  चल  रहा  हूँ ....



दीया  हूँ  हौसलों का इसलिए मै ,

मुकाबिल  आँधियों  के  जल  रहा  हूँ ....



मै  तेरे  नाम  की  शोहरत  हूँ  शाएद ,

इसी  बयेस  सभी  को  खल  रहा  हूँ .....



मुझे  तू  याद  रखे  या  भुला  दे ,

मै  तेरी  याद  में  हर  पल  रहा  हूँ ....…



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Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 5, 2012 at 12:30pm — 17 Comments

कविता : अम्ल, पानी और मैं

दफ़्तर के काम में डूबा हुआ था मैं
अचानक किसी शब्द से चिपकी चली आई तुम्हारी याद
जैसे ढेर सारे ठंढे सांद्र अम्ल में गिर जाय एक बूँद पानी
और उत्पन्न हुई ढेर सारी ऊष्मा
पानी की तैरती बूँद को झट से उबाल दे
अम्ल छलक पड़े बाहर
कुछ मेरे कपड़ों पर
कुछ मेरे चेहरे पर
यूँ अचानक मत आया करो
मेरे भीतर का अम्ल मुझे जला देता है
मैं खुद आउँगा कतरा कतरा तुम्हारे पास
जैसे ढेर सारे पानी में खो…
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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 5, 2012 at 12:00am — 10 Comments

॥ पानी ॥

(प्रस्तुत रचना रोला छन्द में आबद्ध है।रोला के प्रत्येक चरण में11-13 पर यति(विराम) के साथ 24-24 मात्रायें होती हैं।चरणान्त में लघु गुरु की विशेष बाध्यता नहीं है।)



रहिमन आये याद,हमें तुम्हारा पानी।

घटा जलस्तर किन्तु,बढ़ा आंखों में पानी॥



मोती चूना और,मनुज सभी गये सूखे।

प्यासी सारी भूमि ,त्राहि-त्राहि जन चीखे॥



पिघल रहा हिमवान,जलधि तल ऊपर आया।

क्षरण परत ओजोन,काल की काली छाया॥



ऑक्सीजन में कमी,वायु में कार्बन भारी।

मलवे से है पटी,प्रदूषित… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on May 4, 2012 at 8:47pm — 32 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
गोपनीयता

खूबसूरत सपनों नें

कितनी रातों को मुझे जगाया,

कंटीले रास्तों पर

बेतहाशा दौड़ाया,

बार-बार गिराया..

फिर भागने के लिए

सम्हल सम्हल उठना सिखाया,

और मैं भागती गयी...

घायल पैरों के

फूटे छालों से

रिसते लहू की

परवाह किये बिना

बस भागती गयी...

पर

हमेशा

सिर्फ दो कदम के फासले पर

मुस्कुराते रहे सपने ..

मुझे भगाते रहे सपने..

हाथ आते ही

फिर रूप बदल

सिर्फ दो कदम से

मुझे ललचाते रहे सपने..

एक न बुझने…

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Added by Dr.Prachi Singh on May 4, 2012 at 4:00pm — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
रंगों का राजा

खोल दिए पट श्यामल अभ्रपारों ने 

मुक्त का दिए वारि बंधन 

नहा गए उन्नत शिखर 

धुल गई बदन की मलिनता …

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Added by rajesh kumari on May 4, 2012 at 10:30am — 20 Comments

-नसीब-

                  -नसीब-

कहते हैं,नसीब से जो होता है,वो बहुत अच्छा होता है,

नसीब से ही मिलना और नसीब से ही कोई जुदा होता है,

बिछड जाते है अपने दिल के टुकड़े भी कभी-कभी.. 

देता है खुदा वही जो हमारे लिये अच्छा होता हैं ll

 

नसीब के भरोसे न कभी हाथ पे हाथ धर बैठना यारो,

न होना परेशां जो न मिल पाये मेहनत का फल यारो,

इंसान की मेहनत के आगे दुनिया का सर भी झुका होता…

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Added by praveen on May 4, 2012 at 10:00am — 9 Comments

छन्न पकैया .......

छन्न पकैया .......

छन्न पकैया - छन्न पकैया, सूरज दावानल है.
सूख रहीं हैं नदियाँ सारी, सड़के रहीं पिघल हैं.
**
छन्न पकैया - छन्न पकैया,जलता आलम सारा.
थर्मा-मीटर की नलिका में, ताव मारता पारा.
**
छन्न पकैया - छन्न पकैया, बीसुर रही हरियाली.
मुरझाते फूलों के मुख से , हुई  नदारत लाली.
**
छन्न पकैया - छन्न पकैया,लस्सी,कुल्फी,मठ्ठा,
तीनो…
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Added by AVINASH S BAGDE on May 4, 2012 at 10:00am — 17 Comments

"बात इतनी बढ़ी के"

बात इतनी बढ़ी के कहर हो गयी;

हमको बचपन में क़ैदे उमर हो गयी;

*

बात कानों में घुलती शहद की तरह,

रात ही रात में क्यूँ ज़हर हो…

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Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 4, 2012 at 9:30am — 21 Comments

काँटों का जीवन: शोषित और उपेक्षित

काँटे, काँटे  क्यों  बनते  हैं,

बन  सकते हैं  जब वो फूल,

एक डाल पर एक रस पीकर,

कैसे  बन   जाते  हैं  शूल?…

Continue

Added by Neeraj Dwivedi on May 4, 2012 at 8:30am — 7 Comments

नई कविता : कूप मंडूक

पुरखों के कुँए को ही दुनिया समझना

कूप मंडूकता है



कुँए को अपना घर समझना

पाँवों में पड़ी बेड़ियाँ हैं



कुँए की दीवारों को अभेद्य समझना

खुद को खुद की नज़रों में

दुनिया का विजेता साबित करने की कोशिश है



खुद को विश्व विजयी समझना

चुनौतियों से हारकर आलस्य का जहर पीना है



खुद को कूप मंडूक समझना

बाहर की रोशनी का अहसास है



कुँए की दीवारों के बाहर दुनिया की कल्पना

कुँए से बाहर जाने वाली सुरंग है



दुनिया के बाहर… Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 3, 2012 at 5:55pm — 9 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
तू खुद अनंत हो जाएगा !

जब भी करने लगती हूँ मैं खुद से दिल की बात

दिल दिखलाता है सारे सच , भूल के सब जज़्बात …



मैने पुछा अन्तः मन से ,

अपने हर एक रूप में, प्यार बहुत ही सुन्दर है

वो बोला हाँ सुन्दर है …



मैने पुछा मुझे बताओ ,

कोई ख़ास जब आता है , क्यूँ वो ही मन को भाता है

दिल बोला पिछले जन्मों का शायद कोई नाता है …



मैने कहा ऐसा लगता है

जैसे उसको मेरे सांचे मे ढाल कर

और मुझको उसके सांचे मे ढाल कर बनाया है ,

ऐसा लगता है वो जैसे हमसाया है

जो… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on May 3, 2012 at 5:37pm — 10 Comments

शोषित है तू...

मुफलिसी में दिन बिताने वाले 

पी के आंसू, घुड़कियाँ खाने वाले,

खोल आँखे, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|
न किसी धर्म से है तू
न तेरी कोई भाषा,
तुझसे छलकती है…
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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 3, 2012 at 12:00pm — 18 Comments

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