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साँचा विद्वान (दोहावली )

प्रेम कसूरी उर बसै, वन उपवन मत भाग ,

मृग दृग अन्तः ओर कर, महक उठेंगे भाग ll1ll

**************************************************

आत्मान्वेषण है सहज, यही मुक्ति का द्वार,

बाहर खोजे जग मुआ, भीतर सच संसार ll2ll

**************************************************

पूरक रेचक साध कर, जो कुम्भक ठहराय ,

द्विजता तज अद्वैत की, सीढ़ी वो चढ़ जाय ll3ll

*************************************************

वर्तमान ही सत्य है, शाश्वत इसके पाँव ,

नित्यवान के शीश पर, वक्त…

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Added by Dr.Prachi Singh on September 2, 2012 at 7:00pm — 14 Comments

चार मुक्तक

तुम छोड़ क्या गए हो रूठा है जमाना 

कहते है लोग मुझसे झूठा है ये फ़साना 

मैं पूछता हु उनसे पूजते हो क्यों तुम 

राधिका का था प्रेमी कृष्ण था दीवाना !!



तुम पर हमने कितना ऐतवार किया 

खुद को भूला, इतना बेज़ार किया

शक तुम्हारा कब छोड़ेगा तुम्हारा साथ

हद की हद हो गई इतना इंतज़ार किया



आइना बदलने से , सूरत नहीं बदलती 

जो पत्थर के बने, मूरत नहीं बदलती 

ईमान, खूलूश से जो जीने का हुनर रखते है

हालात…
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Added by yogesh shivhare on September 2, 2012 at 3:30pm — 2 Comments

एक ख्वाहिश जलने की

कभी चिराग बनकर जला

कभी आग बनकर जला

जली हो चाहे किसी की भी खुशियाँ 

लेकिन मैं ही दाग बनकर जला...01

.

सुलग-२ जल रहा जिस्म ये मेरा..

तपते आशियाने ही रहा अब मेरा डेरा..

कभी किसी ने तरस खाकर छोड़ा,

तो कभी किसी के लिए हिसाब बनकर जला....02

.

धोका देकर मुझे…

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Added by Pradeep Kumar Kesarwani on September 2, 2012 at 3:30pm — 2 Comments

मुक्तक

हवा के रुख को जो मोड़े वही बादल घनेरा था 

जगह बारिश की जो बदले वही झोंका हवा का था 

बदल मैं क्यूँ नहीं पाया मोहब्ब्बत इश्क की राहें 

तुम्हे मुझसे रही उल्फत, मगर मुझे इश्क तुमसे था 

-----------------------------------------------------------

अगर मुझको मोहब्बत थी, तुम्हे फिर इश्क हमसे था

अधर में रह गया क्यूँ फिर मोहब्बत का मेरा किस्सा 

लिखावट उस विधाता की , बदल…

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Added by Ashish Srivastava on September 2, 2012 at 1:00pm — No Comments

सिर्फ उनकी यादें...

मेरे इस दिल का हर साज उनका है,
इस दिल में दबा हर राज उनका है,
चाहे दिन हो या रात उनका है,
सबसे जुदा, अलग अंदाज उनका है,
मैं आज जो भी और जैसा भी हूँ,
मेरी सफलता के पीछे हाथ उनका है,
भले ही आज नाखुश हूँ अपनेआप से पर,
याद कर खुश होता हूँ वो हर याद उनका है,
वो जहाँ भी रहे सदा खुश रहे दुआ है मेरी
मेरा दिल आज भी सिर्फ तलबगार उनका है,
मेरे इस दिल का हर साज उनका है ऐ 'अनिश',
इस दिल में दबा आज भी हर राज उनका है....!

Added by Neelkamal Vaishnaw on September 2, 2012 at 10:30am — 3 Comments

आसमाँ

जैसे
ठहरा हुआ समंदर कोई
गहरे नीले रंग से रंगा...ऐसा आसमाँ
दूर दूर तक फैला  हुआ...
जिसके किसी छोर पर
तुम हो...
किसी छोर पर मैं हूँ
और
हम दोनों के बीच
ये तैरता हुआ सफ़ेद मोती....
सब कुछ वैसा ही है/ कुछ नहीं बदला
बस बदल गयीं हैं,
इस समंदर से अपनी शिकायतें |
पहले ये बहुत छोटा लगता था हमें,
और अब ये समन्दर ख़त्म ही नहीं होता
....मीलों तक......

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on September 1, 2012 at 10:05pm — 4 Comments

वर्षा जल भूजल करो

 

रेल सड़क सब जाम है, उफान में नदियाँ,
वर्षा जल न भूजल कर, बिता रहे सदियाँ // 
 
नदिया सब जोड़ी नहीं, बाढ़ खा रही खेत, 
बाढ़ खा रही खेत सब, किसान हुए अचेत //
 
नदी नाले अवरुद्ध हुए, बस गए वहां अमीर,
कच्ची बस्ती बेघर हुए, विस्थापिक फकीर //
 
बाढ़ नियंत्रण कक्ष बना, नेताओ का दौरा,
नेताओ का दौरा हुआ, राहत…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2012 at 5:35pm — 6 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३५

मुद्दत हो गई है कुछ भी लिखे, इक अधूरापन समा गया हो जैसे मेरे अन्दर, और गोया ये अधूरापन अपने अधूरेपन के अधूरेपन में ही मुतमईन हो. भोपाल से सफर पे आमादा हुए तीन हफ्ते गुज़र गए हैं और इन तीन हफ़्तों में कई मंज़िलात से गुज़रा- इंदौर-बैंगलोर-चेन्नई-बैंगलोर-मैसूर-बैंगलोर-चेन्नई- और फिर वापस बैंगलोर. आगे आने वाले दिनों में और भी कई जगहों का कयाम करना है- अहमदाबाद, पुणे, नॉएडा, जयपुर.... कभी हवा में थम से गए हवाई जहाज़, कभी लोहे की पटरियों पे दौड़ती रेल, कभी फर्राटे से भागती कार, तो कभी वोल्वो बस की…

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Added by राज़ नवादवी on September 1, 2012 at 5:30pm — 6 Comments

बीत गए वो दिन ,

आज पुरानी वो यादें  ,
मन को लुभा रही हैं ,
बीत गए वो दिन ,
उनकी याद आ रही हैं ,
कितना अच्छा था बचपन ,
कितने अच्छे थे वो दिन ,
रातों की तो बातें छोड़ो  ,
दिन भी होते थे रंगीन ,
उन्ही बातों से मुझे ,
जिन्दगी बहला रही हैं ,
बीत गए वो दिन ,
उनकी याद आ रही हैं ,
.
पाव मेरे छोटे छोटे…
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Added by Rash Bihari Ravi on September 1, 2012 at 3:00pm — 5 Comments

"निवाले"

"निवाले"



रामू के

विदीर्ण वस्त्रों में छुपी 

कसमसाहट भरी मुस्कान

एहसास कराती है

खुश रहना कितना जरुरी है



दिन-रात

कचरा बीन बीन के 

उससे दो चार निवाले निकाल लेना

कुछ फटी चिथी पन्नियों से 

खुद के लिए और छोटी बहन के लिए भी

एहसास कराता है

कर्मयोगी होने का



रात उसके बगल में सोती है

कभी दायें करवट

कभी बाएं करवट

खुले आसमान के नीचे

उसका जबरन आँखों को मूंदे

भूख को मात देना

परिभाषित करता है आज़ादी…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 1, 2012 at 2:11pm — 9 Comments

दो मुक्तक

(1) आजमाईश

न ख्वावों पे कर भरोसा कमबख्त टूट भी सकते है
और न यकीं दोस्तों पे कमबख्त लूट भी सकते हैं
हम यूँ ही नहीं कहते आजमाईश की है यारो
रिश्ते आज जो अपने से लगे ,कल छूट भी सकते हैं


(2) बेवजह

ताउम्र हम तेरी यादों में तड़पे
नज़रों से अपने तो आंसू भी बरसे
मगर तुमको हरगिज़ न आया तरस
पागल थे हम बेवजह ही जो तरसे


दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 1, 2012 at 1:00pm — 3 Comments

इन्सान की जिंदगी

 

इन्सान की जिंदगी भी

क्या जिंदगी है

पल में गम,

और क्षण में ख़ुशी है

कभी संघर्ष का दौर तो

कभी मस्ती भरी है

 

कभी अपने पराये तो

पराये अपने है

जिसको ख़ुशी दी

उसी ने दिल दुखायें है

फिर भी लोगो ने देखो

बंधन हर निभाए है

कभी सपने सजोंये और

कभी ख़ुशी के दीप जलाये है

 

विरह वेदना से छुड़ा

अनुभूति वक़्त दे जाती है

हर्ष उल्लास के गीत सुना

दुःख से मुक्त कराती…

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Added by PHOOL SINGH on September 1, 2012 at 12:18pm — 13 Comments

गीत (टूटा सा ख्वाव हूँ)

टूटा सा ख्वाव हूँ (गीत)



पूछो न कोई मुझसे क्यों पीता शराब हूँ-2

अब किसको क्या पता मैं इक टूटा सा ख्वाव हूँ-2

--पूछो न कोई मुझसे क्यों पी----------



(1) 'दीपक' था नाम जलना था,जलते रहे ऐ-दिल-2

बुझने से पहले बेवफा इक बार आके मिल-2

देती है ताहने दुनियाँ क्या सचमुच ख़राब हूँ

अब किसको क्या पता मैं इक टूटा सा ख्वाव हूँ-२

--पूछो न कोई मुझसे क्यों पी----------



(2) दो घूँट पी लिए अगर यहाँ किसका क्या गया -2

अपनें,बेगाने सबके ही दिल…

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Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 1, 2012 at 11:00am — 8 Comments

भारतीय सेना को समर्पित एक घनाक्षरी.........

भारती के झंडे तले, आए दिवा रात ढले,
देश के जवान चले, माँ की रखवाली में |

बाजुओं में शस्त्र धरें, मौत से कभी न डरें,
साथ-साथ ले के चलें, शीश मानो थाली में |

नाहरों की टोली बने, खून से ही होली मने,
शादियों में तोप चले, गोलियाँ दिवाली में |

भाग जाना दूर बैरी, वर्ना नहीं खैर तेरी,
काट-काट फेंक देंगे, एक-आध ताली में ||

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 1, 2012 at 9:17am — 10 Comments

हाँ वही मेरी प्रिया है

जिसमे राष्ट्रिय मान  भी  हो!

दूजों के प्रति सम्मान  भी हो!

अभिमान नही किंचित मन में,

पर दृढ़मय स्वाभिमान भी हो!

 

वाणी  से  केवल सत्य कहे!

जो सत्य हेतु  हर कष्ट सहे!

निर्बल का जो बल बन जाए!

परदुख से जिसके  नैन  बहें!

उस अदृश्य को ही मैंने, मन समर्पित कर दिया है!

हाँ  वही  मेरी  प्रिया  है, हाँ  वही  मेरी प्रिया है!

 

जो  अत्याचार  विरोधी  हो!

अन्याय-राह   अवरोधी  हो!

पथभ्रष्ट जनों की खातिर…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on September 1, 2012 at 7:00am — 10 Comments

नए कवि की तरह

खूँटी पे लटकी

खाली पोटली

मुँह ताक रही है

कोई आएगा

जो झाड़ देगा

इसमें जमी धूल

बिलकुल वैसे ही

जैसे मुक्तिबोध

की कोई कविता

टंगी हो 

समीक्षक के

इंतज़ार में

लेकिन उसे नहीं पता

अब कोई नहीं छेड़ेगा

उस खाली पोटली को

क्यूंकि वो एंटीक है

उसे म्यूजियम में रखा जायेगा

प्रदर्शनी की सोभा सा

क्यूँ कोई जीर्ण-उद्धार करेगा

फिर उदाहरण के लिए

क्या दिखाएगा

कुछ भी नहीं

अब तुम दुष्यंत की…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 3:30pm — 12 Comments

मेरी सोच

मेरी सोच

तत्पर सी
जिज्ञासा शून्य
सब कुछ जानती हो जैसे
क्या होगा क्या नहीं ???
शब्दों में बिलबिलाती
भावों में छट-पटाती सी
स्वरों में मचलती सी
तोड़ने को चक्रव्यूह
बिलकुल अभिमन्यु की तरह

भेद जाती है चक्रव्यूह
पहुँच जाती है भीतर
पर लौटते वक़्त
तोड़ देती है दम
कौरवी छल से हुए आक्रमण
और दमन चक्र से
बच नहीं पाती है
"मेरी सोच"

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 2:42pm — 2 Comments

कविता का स्वरूप

जहाँ जोर ना चले तलवार का

जहाँ मोल ना हो व्यव्हार का

तब सन्देश का माध्यम बन

समस्या करती छू मन्तर

कभी प्रेम प्रसंग का ताना बुन

शब्द लाती मैं चुन चुन

व्याकुल हो जब कोई मन

अंकुश लगाती शंकित मन

सूचक दे छवि विषाद का

आन्तरिक सुख को करूं अपर्ण

वीर रस का जब

ब्खान हूँ करती

मुर्दों में भी जीवन भरती

शब्दों के मैं मोती बना

भावना ऐसी व्यक्त करती

नीरस जीवन में जब

रंग रस मैं भरती

संकोची हृदय की जब व्यथा सुनती

उन्मुक्त…

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Added by PHOOL SINGH on August 31, 2012 at 2:00pm — 5 Comments

देश की दारुण दशा हमसे सहन होती नहीं

देश की दारुण दशा हमसे सहन होती नहीं

सोन चिड़िया की कथा भी स्मरण होती नहीं



हो रहे पत्थर मनुज सब आँख का पानी सुखा

जल रहे हैं आग में लेकिन जलन होती नहीं



मर चुका ईमान सबका बेदिली है आदमी

फिर रहीं बेजान लाशें जो दफ़न होती नहीं…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 1:00pm — 10 Comments

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