आज ९ सितम्बर २०१२, रविवार को इलाहाबाद के वर्धा विश्वविधालय क्षेत्रीय सभागार में एक काव्य गोष्ठी सह मुशायरा का आयोजन किया गया जिसमें अकबर इलाहाबादी को उनकी पुन्य तिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया | कार्यक्रम की शुरुआत अकबर इलाहाबादी साहब के चित्र पर माल्यार्पण से हुयी | तत्पश्चात इलाहाबाद के तंज़ ओ मजाह के सशक्त हस्ताक्षर फरमूद इलाहाबादी साहब ने तंज़ ओ मजाह के महान शायर अकबर इलाहाबादी साहब को याद करते हुए अकबर साहब की ग़ज़ल के चंद अशआर पढ़े तथा उसके पश्चात सभी कवियों…
ContinueAdded by वीनस केसरी on September 10, 2012 at 2:00am — 1 Comment
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on September 10, 2012 at 1:00am — 9 Comments
पेड़ों के झुरमुट में
छुप छुप भरमाता है
मेघों के अंचल में
अटक अटक जाता है
यायावर सा फिरता
मतवाला चाँद
उषा- रश्मियों से घिर
धुंधलाता जाता है
अरुणाभा में, नभ की
डूबता- उतराता है
चलाचली की बेला
कहता सूरज को विदा
पवन से पराग की
पीकर हाला चाँद
Added by Vinita Shukla on September 9, 2012 at 9:43pm — 3 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on September 9, 2012 at 5:27pm — No Comments
राज़ नवादवी: मेरी बेटियों की जोड़ी को एक पत्र
-------------------------------------------------- -----------
मेरी प्यारी बेटियों साशा और नाना,
मुझे आप दोनों की दुनियावी तकलीफों और दर्द के बारे में जानकार बहुत दुःख है. मुझे ऐसा लगता है कि घर से मेरा मुसलसल (लगातार) दूर रहना भी इनकी एक वजह है, मगर शायद फिलहाल मेरी ज़िंदगी कुछ ऐसी है कि इसमें जुदाई और फुर्कत (विरह) का साथ अभी और बाकी है.
मेरी दरख्वास्त है कि कभी अपना हौसला मत खोना क्यूंकि…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 9, 2012 at 2:03pm — No Comments
राज़ नवादवी: मेरी बेटियों की जोड़ी को एक पत्र
-------------------------------------------------- -----------
मेरी प्यारी बेटियों साशा और नाना,
मुझे आप दोनों की दुनियावी तकलीफों और दर्द के बारे में जानकार बहुत दुःख है. मुझे ऐसा लगता है कि घर से मेरा मुसलसल (लगातार) दूर रहना भी इनकी एक वजह है, मगर शायद फिलहाल मेरी ज़िंदगी कुछ ऐसी है कि इसमें जुदाई और फुर्कत (विरह) का साथ अभी और बाकी है.
मेरी दरख्वास्त है कि कभी अपना हौसला मत खोना क्यूंकि…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 9, 2012 at 2:03pm — 4 Comments
मेघ...संग ले चल मुझे भी
स्वच्छंदता के रथ पर बिठा के
उड़ा के दूर
उन्मुक्त, अनंत गगन में
अपनी प्रज्ञात ऊँचाइयों पर
सभी बंधनों से परे
निराकार, निर्विकार रूप में
व्यापक बना के अपने
नयनाभिराम नीलिमा से सुसज्जित
नीरवता की विपुल राशि
हिमावृत सदृश भवनों वाले
अप्रतिम बहुरंगी छटाओं से युक्त
मंत्रमुग्ध करते दृश्यों से शोभित
अथाह सौन्दर्य के मध्य विराजमान
अलभ्य संपदा से संपन्न
किसी स्वप्नलोक का भान कराते…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 9, 2012 at 9:27am — 4 Comments
दोस्तों, ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं ..
बचा है अब यही इक रास्ता क्या
मुझे भी भेज दोगे करबला क्या
तराजू ले के कल आया था बन्दर
तुम्हारा मस्अला हल हो गया क्या…
Added by वीनस केसरी on September 9, 2012 at 2:30am — 13 Comments
न होता परवाना तो जलके शरार क्या होता
न होती शम्मा तो फिर जाँनिसार क्या होता
तेरे हाथों मेरा रेज़एइश्क नागवार क्या होता
अगर उड़ता नहीं हवाओं में गुबार क्या होता
वफाशनास कब हुआ है हुस्न आप ही बोलो
अगर जो होता वो वैसा तो प्यार क्या होता
मुझे यकीन है वादों पे कि ये मेरी चाहत है
जोहोता न खुदपे तो तेरा ऐतेबार क्या होता
लिखी जाती कहानियां हमारी भी हाशिए पर
मैं तेरे चाहने वालोंमें होके शुमार क्या…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 8, 2012 at 3:54pm — No Comments
कोई तो बता दे जरा , हुयी क्या हमसे खता
जमाना बैरी हुआ , सब गैर हुआ ऐसी क्या की खता
बेटी बन जन्म लिया , कसूर बस इतना किया
चाहा था कि मैं भी भैया की तरह खूब पढूंगी
माँ-बाप का नाम रौशन करुँगी
देश का ऊँचा नाम करुँगी
अपने सब सपने साकार करुँगी
लेकिन जब समाज से हुआ सामना
न कोई सपना रहा न कोई अपना
ज़माने की ठोकर मिली और अपनों के ताने
क्यूँ तुने जन्म लिया ओ ! अभागी
मैं गरीब बाप तेरा कहाँ से दहेज़ जुटाऊंगा
दहेज…
Added by Parveen Malik on September 8, 2012 at 1:00pm — 2 Comments
लोकतंत्र
जहाँ हर नेता भ्रष्ट
हर अधिकारी घूस खाने को
स्वतंत्र है |
यही तो अपना
लोकतंत्र है ||
पहचान
लोकसभा और विधानसभा को
बना दिया जंग का मैदान |
देख कर इन नेताओं के कारनामे
लोग हो रहे हैरान ||
उजले कपड़ों के पीछे लिपटे
इंसानों की शक्लों में घूम रहे शैतान |
पचा गए यूरिया , खा गए चारा
बच के रहना मेरे भाई
कहीं खा ना जायें इंसान ||
कहें 'योगी ' कविराय
इन नेताओं से उठा…
Added by Yogi Saraswat on September 7, 2012 at 2:00pm — 8 Comments
प्यारे मित्रो ! आगामी 17 सितम्बर को तेरा पंथ युवक परिषद् ने द्वारा देश भर में रक्तदान का अभियान आयोजित किया है . एक लाख बोतल रक्त का लक्ष्य है ......उनके इस पुनीत कार्य के समर्थन में मैंने अहमदाबाद के संयोजक श्री सुनील वोहरा और अखिल भारतीय संयोजक श्री राजेश सुराणा के लिए कुछ दोहे लिखे हैं जो वे बैनर्स पर काम लेंगे.......आप भी पढ़ कर बताइये ..कैसे लगे ?
रक्तदान के…
Added by Albela Khatri on September 6, 2012 at 8:50pm — 4 Comments
इतने मिले जख्म कि जख्म ही दवा बने
न पाई ख़ुशी में ख़ुशी न रोये गम में हम
दिल और यह दिमाग सब शून्य हो गये
.................................................
है मुहब्बत इक फरेब औ प्यार इक धोखा
साये में है जिसके बस आंसूओं का सौदा
चोट पर चोट दिल पे हम खाते चले गये
................................................
वफा को जो न समझे तुम सनम बेवफा हो
रहें गैरों की बाहों में और सिला दो वफा का
मेरे सपनो की तस्वीर के टुकड़े हुए तुम्ही से …
Added by Rekha Joshi on September 6, 2012 at 5:40pm — 2 Comments
संदली नाजुक बदन या बोलती तस्वीर है
आयतें खामोशियाँ हैं शर्म ये तफ़सीर है
सर्द हैं जुल्फों के साए सोज साँसों में भरी
कातिलाना है अदा या ख्वाब की ताबीर है
ये गजाली चश्म तेरे श्याह गहरी झील से
औ तबस्सुम होंठ पे जैसे कोई शमशीर है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 6, 2012 at 4:05pm — 5 Comments
यह रचना उन (ढोंगी ) बाबाओं और गुरुओं के नाम जो अमरबेल से हर गली में हर रोज उग रहे है .....
Added by seema agrawal on September 6, 2012 at 10:21am — 11 Comments
सर्द सी सुबह और बेरंग सा आसमान. तेज़ बहती हवा और नशे में झूमते से दरख्तोशज़र. चौथी मंज़िल पे मेरा एक अकेला कमरा. बड़ा सा और खाली खाली. सलवटों से भरा बिस्तर, सिकुड़े सहमे से तकिए, किसी नाज़नीन के आँचल सा लहरा के लरज़ता हुआ लेटा कम्बल. सोफे पे रखा शिफर (शून्य) में ताकता खाली ट्रवेल बैग. पति-पत्नी-से अकुला के अगल-बगल मेज़ पे पड़े जिभ्भी (टंग क्लीनर) और टुथ ब्रश- किसी साहूकार के पेट सा फूला टूथपेस्ट... तो किसी गरीब की आंत सा सिकुड़ा मेरे शेविंग क्रीम का ट्यूब. दरवाज़े और दरीचों को बामुश्किल ढँक…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 6, 2012 at 8:56am — 3 Comments
रोशनी को, जिन्हें हम जलाते हैं
आज हम उनका दिन मनाते हैं.....।
जिनकी मेहनत से हमने सीखा है
जिनके बिन दुनिया एक धोखा है
ज्ञान का दीप जो जलाते हैं......
आज हम उनका दिन मनाते हैं............।
वो हवाओं को मोड देते हैं
और पत्थर को तोड देते हैं
पौधों को पेड जो बनाते हैं....
आज हम उनका दिन मनाते हैं............।
सुजान
Added by सूबे सिंह सुजान on September 5, 2012 at 11:35pm — 6 Comments
Added by deepti sharma on September 5, 2012 at 8:18pm — 9 Comments
---------------------------------------
लो चुपके से तुमने ये क्या कह दिया,
सूनी वीणा के फिर तार बजने लगे
कलियाँ खिल के हंसीं मन मचलने लगा,
होंठों पे आज फिर गीत सजने लगे.
--------------------------------------
सरसराती हुयी जब हवा ये चली,
घर का आँगन भी मेरा चहकने लगा.
तेरे आने की आहट से हलचल मची,
कोना कोना भी अब तो महकने लगा.
प्यार के बोल सुनने की खातिर प्रिये,
अपने बोलों को पन्छी भी तजने लगे.
कलियाँ खिल के हंसीं मन मचलने लगा, …
Added by dineshVerma on September 5, 2012 at 1:51pm — 4 Comments
"जबाब नहीं है ख़ामोशी "
जबाब नहीं है ख़ामोशी
सब जानते हैं
इसमें तो छुपा होता है
गलतियाँ स्वीकारने का हाँ
कसमसाहट भरी वो हाँ
जो हाँ कहने पर
जुबान शर्मशार हुई जाती है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 5, 2012 at 1:25pm — 4 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |