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क्यों प्राण प्रियतम आये ना ??

चाँदनी ढल जायेगी फिर
क्या मिलन बेला आयेगी
मिलने को व्याकुल नयन ये तो
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??

नयन बदरा छा गये
रिम-झिम फुहारों की घटा
मुझमें समाने और अब तक
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??

विरह की इस वेदना को
अनुपम प्रेम में ढाल
अमानत बनाने मुझे अपनी
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??

मुख गरिमा के चंचल तेवर
अलौकिक कर हर प्रेम भाव
मेरे मुख दर्पण के भाव देखने
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??

निहारिका सा प्रेम रूप
छलकत निकट पनघट
निहारने उस प्रेम को
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??

दीप्ति शर्मा

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Comment

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Comment by satish mapatpuri on September 7, 2012 at 3:10am

नयन बदरा छा गये
रिम-झिम फुहारों की घटा
मुझमें समाने और अब तक
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??

अभिनव ..... एक बेहतरीन रचना ...... वियोग और विरह की दशा को दिशा देती इस रचना के लिए बधाई दीप्ति जी

Comment by UMASHANKER MISHRA on September 6, 2012 at 7:40pm

दीप्ति जी

इस वियोग रस पूर्ण रचना ने मन को छू लिया

हार्दिक बधाई

Comment by Rekha Joshi on September 6, 2012 at 7:32pm

निहारिका सा प्रेम रूप
छलकत निकट पनघट
निहारने उस प्रेम को
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??,अति सुंदर अभिव्यक्ति दीप्ति जी ,बधाई 

Comment by Harvinder Singh Labana on September 6, 2012 at 6:12pm

Sundar Abhivyakti


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 6, 2012 at 4:32pm

कुछ बातों को बिम्ब और प्रतीकों में कही जाय तो और आनंद आ जाय, सुन्दर रचना , बधाई हो |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 6, 2012 at 11:27am
प्राण प्रियतम के आने की राह देखती,छलकते भावों को अभिव्यक्त करती सुंदर
रचना के लिए बधाई आदरणीय दीप्ति शर्मा जी, आदरणीय सौरभ जी के सलाह 
पर गौर कर इसे और उचाइयां प्रदान करने का प्रयास करे-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 6, 2012 at 10:56am

चाँदनी ढल जायेगी फिर
क्या मिलन बेला आयेगी
मिलने को व्याकुल नयन ये तो
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??

अत्यंत सुन्दर प्रयास दीप्ति........!!!!

Comment by Yogi Saraswat on September 6, 2012 at 10:21am

विरह की इस वेदना को
अनुपम प्रेम में ढाल
अमानत बनाने मुझे अपनी
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??

बहुत ही  खूबसूरत शब्दों  में  आपने व्यथा  की dasha    ko  vyakt  kiya  है ! बहुत badhiya , deepti जी !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 5, 2012 at 10:18pm

दीप्ति जी, विरह की अद्भुत दशा को उभारते इस गीत के लिये बधाई.

कोशिश कर इस रचना और सान्द्र करें. अत्यंत संभावनाओं से भरी है आपकी भाव-दशा. दूसरे, आपकी प्रस्तुतियों में साहस भी है.

शुभेच्छाएँ.

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