सागर में गिर कर हर सरिता बस सागर ही हो जाती है
लहरें बन व्याकुल हो हो फिर तटबंधों से टकराती है
अस्तित्व स्वयं का तज बोलो
किसने अब तक पाया है सुख …
Added by seema agrawal on October 30, 2012 at 2:09pm — 18 Comments
"क्या यार?.........हमलोग एक घंटे से इस कैफे में बैठे हैं और वीकेंड का एक बढ़िया प्लान नहीं बना पा रहे........व्हाट इज दिस?" रितिका ने झल्लाते हुए कहा| साथ बैठा उसका क्लासमेट मोहित उसे उखड़ता देख के उसकी हँसी उड़ाते बोला - "मैडम जी.....मैं तो कब से प्लानों की लाइन लगा रहा हूँ, आपको जँचे तब तो"| रितिका थोड़ा और गुस्से में आ के बोली - "मोहित, जस्ट कीप योर माउथ शटअप.......तुम्हारे आइडियाज हमेशा बोरिंग होते हैं....तुम अपनी तो रहने दो बस"| मोहित को बात बुरी लग गई - "क्यों? तुम्हारे उस विभोर के…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 30, 2012 at 12:01pm — 10 Comments
"माहिया" में पति पत्नी की चुहल बाजी मात्रा १२,१०,१२ कही कहीं गायन की सुविधा के लिए एक दो मात्रा कम या ज्यादा हो सकती हैं
(पत्नी )
Added by rajesh kumari on October 30, 2012 at 12:00pm — 37 Comments
पांचवा दिन| घर बिखरा हुआ है, हर सामान अपने गलत जगह पर होने का अहसास करवा रहा है, फ्रिज के ऊपर पानी की खाली बोतलें पडी हैं, पता नहीं अंदर एकाध बची भी हैं या नही; बिस्तर पर चादर ऐसी पडी है की समझ नहीं आ रहा बिछी है या किसी ने यूं ही बिस्तर पर फेक दी है; कोई और देखे तो यही समझे की बिस्तर पर फेंक दी है, कोई भला इतनी गंदी चादर कैसे बिछा सकता है | शायद मानसी के जाने के दो या तीन दिन पहले से बिछी हुई है | बाहर बरामदे की डोरी पर मेरे कुछ कपड़ें फैले है | तार में कपड़ों के बीच कुछ जगह खाली है, कपडे…
ContinueAdded by वीनस केसरी on October 30, 2012 at 3:23am — 16 Comments
सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !
सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !
Added by shikha kaushik on October 29, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
सभी अग्रजों एवं गुरुजनों को प्रणाम करते हुए यहां पहली बार गजल पोस्ट कर रहा हूं. उम्मीद है आप सबको पसन्द आयेगी.....
उठा दिल में धुआं सा है
पुराना प्यार जागा है,
कहो तो हम…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on October 29, 2012 at 8:30pm — 10 Comments
तानेज़नी पुरजोर है सियासत की गलियों में यहाँ ,
Added by shalini kaushik on October 28, 2012 at 2:56pm — 1 Comment
कस्बाई सुकून उनकी किस्मत में है कहाँ !
जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए .
कैसे बुज़ुर्ग दें उन औलादों को दुआ !
जो छोड़कर तन्हां बेगाने हो गए .
दोस्ती में पड़ गयी गहरी बहुत दरार ,
हम तो रहे वही ; वो जाने-माने हो गए .
देखते ही होती थी सब में दुआ सलाम ,
लियाकत गए सब भूल ;ये फसाने हो गए .
लिहाज के पर्दे फटे ; सब हो रहा नंगा…
Added by shikha kaushik on October 27, 2012 at 10:30pm — 3 Comments
Added by PHOOL SINGH on October 26, 2012 at 3:12pm — 2 Comments
रमिता रंगनाथन, मिसेज़ शास्त्री की खातिर में यूँ जुटी थीं- मानों कोई भक्त, भगवान की सेवा में हो। क्यों न हो- एक तो बॉस की बीबी, दूसरे फॉरेन रिटर्न। अहोभाग्य- जो खुद उनसे मिलने, उनके घर तक आयीं! पहले वडा और कॉफ़ी का दौर चला फिर थोड़ी देर के बाद चाय पीना तय हुआ। इस बीच 'मैडम जी', सिंगापुर के स्तुतिगान में लगीं थीं- "यू नो- उधर क्या बिल्डिंग्स हैं! इत्ती बड़ी बड़ी...'एंड' तक देख लो तो सर घूम जाता है...और क्या ग्लैमर!! आई शुड से- 'इट्स ए हेवेन फॉर शॉपर्स'..." रमिता ने महाराजिन को, चाय रखकर जाने का…
ContinueAdded by Vinita Shukla on October 26, 2012 at 3:00pm — 6 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 26, 2012 at 3:00pm — 13 Comments
घरों में सीलिंग फैन्स की घड़घड़ाहट बंद सी होने लगी है और दिन सुबुकपा और रातें संगीन. मौसम ने करवट की इक गर्दिश पूरी की हो जैसे- धूप की शिद्दत खत्म होने लगी है और सुकून और मुलायमियत के झीने से सरपोश के उस तरफ साकित ओ मुतमईन, आयंदा और तबस्सुमफिशाँ कुद्रत के नए रूप का एहसास होने लगा है. घर की हर शै जैसे तपिश भरी दोपहरियों से सज़ायाफ्ता ज़िंदगी की नींद से बेदार होने लगी है और जल रहे लोबान के धुंए की तरह दूदेसुकूत फजाओं में फ़ैल रहा है. ये आमदेसरमा (जाड़े के मौसम के आगमन) के बेहद इब्तेदाई रोज़…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 26, 2012 at 12:30pm — 11 Comments
देह नही सुधि गेह नहीं सुधि ,, छूटि गयो ब्रज धाम जभी से
चैन नही दिन रैन सखे अब ,, शूल लग्यो हिय जोर तभी से
याद सतावत गोपहि ग्वालन ,, माखन खायहु नाहि कभी से
Added by Chidanand Shukla on October 26, 2012 at 10:30am — 3 Comments
पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा
चरण कमल रखे तभी वहीँ पास में बैठा प्रभात का पालतू कुत्ता बुलेट उन पर जोर जोर से भौकने लगा .गुरुदेव के उज्जवल मस्तक पर क्षण भर को कुछ लकीरें उभरी और फिर होंठों पर मुस्कान .गुरुदेव ने स्नेह से बुलेट के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ''शांत हो जाओ मैं समझ गया हूँ .ईश्वर तुम्हे मुक्ति प्रदान करें !'' गुरुदेव के इतना कहते ही बुलेट शांत हो गया और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया .वहां उपस्थित प्रभात सहित उसके परिवारीजन यह देखकर चकित रह गए…
ContinueAdded by shikha kaushik on October 25, 2012 at 11:00pm — 8 Comments
खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,
Added by shalini kaushik on October 25, 2012 at 8:30pm — 3 Comments
महिमा रोज की ही तरह आज भी सुबह पाँच बजे अधपूरी नींद से उठ गई ! फिर घर की दैनिक सफाई के बाद बेड टी बनाकर अजय को जगाया, और सोनू को जगाकर स्कूल के लिए तैयार करने लगी ! सोनू स्कूल चला गया ! महिमा ने अजय के ऑफिस के कपड़े इस्त्री किए, फिर उसे जगाया, उसका नाश्ता बनाया ! अजय उठा और महिमा को इधर-उधर की दो चार हिदायते देते हुवे तैयार हुवा, और आखिर नौ बजे ऑफिस चला गया ! उसके जाने के बाद महिमा ने नहाकर थोड़ी पूजा की, फिर लंच तैयार किया और लंच लेकर सोनू के स्कूल गई, समय था बारह ! घर आकर खाना खाई और फिर…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on October 25, 2012 at 3:30pm — 24 Comments
लघुकथा : सुहागन …
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2012 at 10:30am — 40 Comments
किस तरह हो यकीं आदमी का |
कोई होता नहीं है किसी का ||
आस्तीनों में खंजर छुपा कर |
दे रहे हो सबक़ दोस्ती का ||
पत्थरों के मकानों में रह कर |
दिल भी पत्थर हुआ आदमी का ||
मान लें बाग़बाँ कैसे उसको |
जिसने सौदा किया हर कली का ||
दर्द का बाँट लेना इबादत |
फ़लसफ़ा है यही ज़िन्दगी का ||
इसको आज़ादी माने तो कैसे |
आदमी है ग़ुलाम आदमी का ||
फैलें इंसानियत के उजाले |
सिलसिला ख़त्म हो…
Added by लतीफ़ ख़ान on October 24, 2012 at 11:00pm — 8 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 24, 2012 at 5:00pm — 12 Comments
तीन दोहें....
बाहर रावण फूँक कर ,मानव तू इतराय |
नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय ||
सच्चाई की जीत हो ,झूठ का हो विनाश |
कष्ट ये तिमिर का मिटे ,मन में होय प्रकाश ||
सत स्वरूपी राम है ,दर्प रूप लंकेश |
दशहरा पर्व से मिले ,यही बड़ा सन्देश ||
दो रोलें...
दैत्यों का हो अंत ,मिटे जग का अँधेरा
संकट जो हट जाय,वहीँ बस होय सवेरा
अपना ही मिटवाय ,छुपाकर अन्दर धोखा
लंका को ज्यों ढाय,बता कर भेद…
Added by rajesh kumari on October 24, 2012 at 2:30pm — 18 Comments
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