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विजय दशमी (तीन दोहे दो रोले )

तीन दोहें....
बाहर रावण फूँक कर ,मानव तू इतराय |
नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय ||

सच्चाई की जीत हो ,झूठ का हो विनाश |
कष्ट ये तिमिर का मिटे ,मन में होय प्रकाश ||

सत स्वरूपी राम है ,दर्प रूप लंकेश |
दशहरा पर्व से मिले ,यही बड़ा सन्देश ||

दो रोलें...
दैत्यों का हो अंत ,मिटे जग का अँधेरा
संकट जो हट जाय,वहीँ बस होय सवेरा
अपना ही मिटवाय ,छुपाकर अन्दर धोखा
लंका को ज्यों ढाय,बता कर भेद अनोखा

इंसा को दे मार ,अहम् का सर्प विषैला 

मत कर ना विश्वास,बड़ा यह दंश कसैला 
सद्जन उन्नत काम ,यहाँ अक्सर कर जाते 
सच का लेकर साथ ,महा सागर तर जाते      


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Comment by नादिर ख़ान on November 1, 2012 at 3:35pm

सुंदर विचारों के साथ लिखी गई असाधारण रचनाएं ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2012 at 10:44am

हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आपको छंद पसंद आया |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2012 at 10:21am

इंसा को दे मार ,अहम् का सर्प विषैला
मत कर ना विश्वास,बड़ा यह दंश कसैला
सद्जन उन्नत काम ,यहाँ अक्सर कर जाते
सच का लेकर साथ ,महा सागर तर जाते 

वाह ! इन सनातनी पंक्तियों के साथ आपका स्वागत है आदरणीया. गंभीर विचारों को शब्द मिले हैं. बधाई स्वीकार करें.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2012 at 9:59am

आदरणीय लक्ष्मण जी दिल से आभारी हूँ आपके उत्साह वर्धन करती टिपण्णी हेतु 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2012 at 9:58am

रविकर भाई जी आपके दोहों के सामने मेरी क्या बिसात फिर भी बहुत ख़ुशी हुई आपकी प्रतिक्रिया से हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2012 at 9:56am

प्रिय प्राची जी बहुत ही उत्साह वर्धन करती हुई प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अभी दूसरा रोला एड कर रही हूँ प्लीज उसे भी देखें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2012 at 9:55am

प्रिय सीमा जी हार्दिक आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2012 at 9:54am

आदरणीय गणेश जी हार्दिक आभार आपका आप सही कह रहे हैं ये गलती से हुआ अभी एडिट कर रही हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2012 at 9:52am

शालिनी कौशिक जी हार्दिक आभार आपका आपको भी शुभकामनाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2012 at 9:51am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी बहुत अधिक व्यस्तता के चलते बहुत जल्दी में दोहे पोस्ट किये थे जिसमे गलती से रोले का एक ही छंद पोस्ट कर पाई ये गलती अभी देखी कापी पेस्ट करते हुए  हुई |आपका परामर्श सर आँखों पर ह्रदय से आभारी हूँ आपके उत्साह वर्धन हेतु   वो दूसरा छंद अभी पोस्ट कर रही हूँ 

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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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