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चमन देखा हे

चमन देखा हे

हमने दुनिया का चमन देखा हे
मुश्किल में अपना बतन देखा

बक्त की मार से हो के तबाह
इन्सान को नगे बदन देखा हे

मतलबी यारी निभाने को
दोस्त दुशमन का मिलन देखा हे

देश की सम्पदा मिटाने को
चोरी से होते खनन देखा हे

हर हुनर से यूँ धन कमाने को
लोगो को करते जतन देखा हे

औरो के लिए मोम सा पिघलते
जीवन को हबन करते देखा हे

सही गलत का भेद मिटाते.
हमने पेसो का बजन देखा हे

डॉ अजय आहत

Added by Dr.Ajay Khare on December 11, 2012 at 1:00pm — 5 Comments

तुमको लिखते हाथ कांपते

तुमको लिखते हाथ कांपते

अक्‍सर शब्‍द सिहरते हैं

तुम क्‍‍या जानो तुमसे मिलकर

कितने गीत निखरते हैं

कर लेना सौ बार बगावत

पल भर आज ठहर जाओ

तेरा-मेरा आज भूलकर

चंदन-पानी कर जाओ

 

तुम बिन मेरा सावन सूखा

बादल खूब गरजते हैं

देख रहे जो झिलमिल लडि़यां

बहते अश्‍क लरजते हैं

 

कैसे लिख दूं बदन तुम्‍हारा

बड़ी कश्‍मकश है यारा

बदनाम चमन अंजाम सनम

कलम बिगड़ती है…

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Added by राजेश 'मृदु' on December 11, 2012 at 12:34pm — 12 Comments

मेकअप

मेकअप



शादी के बाद दूल्हे ने दुल्हन का किया दीदार

उसके दिल पर हुआ प्रहार

अरमान तार, तार

लड़की बदल दी, किया प्रचार

दिखाई कुछ और, टिकाई कुछ और

मेरी खुशियों का अंत

केटरीना दिखाकर दे दी राखी सावंत 

इतना बड़ा छल, इतना बड़ा धोखा

.लड़की का बाप.बेटा लड़की वही हे, तुमने उसे मेकअप में देखा

धोखा नहीं तुम्हारे बाप को दिए दो खोखा

अव दिल की नज़रों से उसे निहारे

हंसी ख़ुशी से अपना जीवन संवारें 

बेटा मेकअप…
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Added by Dr.Ajay Khare on December 11, 2012 at 11:30am — 9 Comments

आप दूध के धुले है

आप दूध के धुले है



आम सभा में बक्ता बोल रहा था

.भ्रष्टाचार की परते खोल रहा था .

प्रजातंत्र पर कर रहा था तीखे प्रहार

आक्रोश दिखा रहा था बारम्बार

.नेताओ पर जहर उगल रहा था

समीप खड़े नेता को खल रहा था

बार बार लगा रहा था एक ही अलाप

.नेता जी का सब्र दे गया जबाब .

चढ़ मंच पर बक्ता का थामा गिरेबान

क्यों कर रहा है तू .हमारा अपमान

बक्ता ने अक्ल लगाई

.नेता जी से जान बचाई

.बोला मेरा आशय .भ्रष्ट लोगो से…
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Added by Dr.Ajay Khare on December 11, 2012 at 11:30am — 10 Comments

क्या होगा इस देश का भविष्य

हमने सुना है कि शिक्षक कि नजर में सभी बच्चे एक सामान होते है लेकिन इस कहानी को पढने के बाद शायद ये बात गलत ही साबित होती नजर आती है l

यह कहानी एक छोटे से गॉव कि है जहाँ एक विधालय में सभी जाति के बच्चे पढ़ते थे और हर एक कक्षा में लगभग ६०-८० बच्चे हुआ करते थे l उसमे रामू और उसके कुछ दोस्त जो निम्न जाति के थे, पढ़ते थे l इसी स्कुल में एक अध्यापक बाबु जो उच्च जाति से सम्बन्ध रखता था सदा निम्न जाति के बच्चो को हीन दृष्टि से देखता था और व्यव्हार से कंजूस व् लालची था l वह स्कूल में कम पढाई…

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Added by PHOOL SINGH on December 11, 2012 at 11:20am — 5 Comments

सेवामुक्त सरकार बाबू...!

सरकार बाबू को सेवामुक्त हुए लगभग ६ साल हो गए हैं. उनका लड़का राज भी कंपनी में ही कार्यरत है. इसलिए कंपनी का क्वार्टर छोड़ना नहीं पड़ा. यही क्वार्टर राज के नाम से कर दिया गया. पहले पुत्र और पुत्रवधू साथ ही रहते थे. एक पोता भी हुआ था. उसके 'अन्नप्रासन संस्कार' (मुंह जूठी) में काफी लोग आए थे. अच्छा जश्न हुआ था. मैं भी आमंत्रित था..... बंगाली परिवार मेहमानों की अच्छी आवभगत करते हैं. खिलाते समय बड़े प्यार से खिलाते हैं. सिंह बाबू, दु टा रसोगुल्ला औरो नीन! मिष्टी दोही खान!(दो रसगुल्ला और लीजिये,…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on December 11, 2012 at 4:30am — 17 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघु कथा :- सौदा

इशरत गंज उस शहर में देह बाज़ार का नाम था और लैला उस बाज़ार का एक हिस्सा थी । बाज़ार से सटे चौराहे पर मोती लाला की…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 11, 2012 at 12:00am — 43 Comments

जिसको भीड़ सुलभ है जितनी , उतनी ही ज्यादा तन्हाई ,,,,,,,,,,,,,

खुशियों ने ऊँचे दामों की , फिर पक्की दूकान लगायी 

इक तो गाँव अभावों का मैं , और उपर से ये मंहगाई 
 
कुछ टुकड़ों पर ही पंछी ने , सोने का पिंजड़ा स्वीकारा 
क़ैद हुआ जब संगमरमर में , भूल गया सारी अंगड़ाई 
 
एक नहीं जाने कितने ही , सिन्धु रचे मैंने पन्नों पर 
लेकिन जब जब प्यास लगी , बूँद बूँद से ठोकर…
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Added by ajay sharma on December 10, 2012 at 11:12pm — 6 Comments

सर्दियां

उस साल

कहर सी थी सर्दी

ठिठुरन बढ़ रही थी

हमने जेहन में खड़े कुछ दरख्त काटे

और जला लिए कागज़ पर

ज्यादा तो नहीं मगर हाँ....

थोड़ी तो राहत मिल ही गयी

पास से गुजरते हुए लोग भी

तापने के लिए बैठने लगे

अलाव धीरे धीरे... महफ़िल सा बन गया

 अलाव जब बुझ गया ..लोग चले गये

फिर तो

रोज़ ही हम कुछ दरख्त काट लाते

रोज़ अलाव जलता रोज़ ही लोग आते

इस तरह हर रोज़ महफ़िल सजने लगी

मगर एक ताज्जुब ये था कि

रोज़ ही काटे जाने पर भी

दरख्त कभी कम नहीं होते…

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Added by Pushyamitra Upadhyay on December 10, 2012 at 9:52pm — 3 Comments

सब तो यहाँ हैं अजनबी

हाँ प्यार से इकरार है

पर शिर्क से इंकार है

 

अब दिल में वो जज़्बा नहीं

बस प्यार का बाज़ार है 

 

मेरा ठिकाना क्या भला

जब बिक चुका घर-बार है…

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Added by नादिर ख़ान on December 10, 2012 at 5:00pm — 6 Comments

पत्नी चालीसा

पत्नी चालीसा

जय जय जय पत्नी महरानी

महिमा आपकी किसी ने न जानी

जबसे घर में व्याह के आई

मची हुई हे खीचातानी

जय जय जय पत्नी महरानी

सास ससुर भये भयभीत

देवर ननद से जुडी न प्रीत

घर की बन बैठी तुम आका

फहरा दी हे विजय पताका

भोली भली दिखती थी आप…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 10, 2012 at 4:30pm — 7 Comments

ब्यूटी

ब्यूटी

मेरे आफिस में आई एक ब्यूटी

देख कर उसको, में भूल गया ड्यूटी

मुस्कुरा के किया उसने ,निबेदन

नोकरी के लिए सर, किया था आवेदन

पास किया हे सर, मेने शीघ्र लेखन…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 10, 2012 at 4:30pm — 6 Comments

समय// गीत

संगीत की विद्यार्थी हूँ ...संगीत से जुड़े कई शब्द मुझे जीवन के साथ चलते दिखते हैं | जो लोग  इन शब्दों के विशेषता से अनभिज्ञ हैं उनके लिए कुछ बताना चाहती हूँ  ..आशा करती हूँ इस सक्षिप्त व्याख्या से गीत समझने में आसानी होगी 

------किसी भी राग में षडज(स ) और  पंचम (प )स्वर अनिवार्य हैं जबकि रे,ग,म ,ध नी को वर्जित कर नए नए रागों की रचना की जाती 

........ वादी-संवादी राग के सबसे महत्त्वपूर्ण स्वर होते हैं 

-----विवादी स्वर…

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Added by seema agrawal on December 10, 2012 at 2:30pm — 9 Comments

कटेगी सिर्फ़ दिलासों से ज़िंदगी कब तक

कटेगी सिर्फ़ दिलासों से ज़िंदगी कब तक।

रहेगी लब पे ग़रीबों के खामुशी कब तक॥

 

वरक़ पे आने को बेताब हो रहा है अब,…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 10, 2012 at 12:30pm — 7 Comments

बदलता मौसम ...

हवा में खुश्की बढ़ रही

पर ठण्ड आने में देर है

धूप के बिछौने पर बैठ कर

फुर्सत के दिन आने वाले है

छोटे छोटे दिन पंख लगा कर उड़ा करेंगे

नन्हे कदम रखता सूरज

कुछ देर से आया करेगा

और जल्दी जाया करेगा

जब राते लम्बी होंगी

तो

यादों के जंगल में अक्सर हम तुम मिलेंगे

लम्बी लम्बी बातें किया करेंगे

सुख दुःख भूलते

वो लम्हे जिया करेंगे

जिन्हें पोटली में बांध…
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Added by rajluxmi sharma on December 10, 2012 at 12:15pm — 3 Comments

***(न सुना पाऊंगा) ***

हम उनके कर्ज़दार नहीं,वोह मेरे कर्ज़दार हैं

हम तो आज भी सर आँखों पे बिठाने को तैय्यार हैं

वोह चाहे तो आजमा ले, हम जीत जाएँगे

हमें अपनी दिल्लगी पे ऐतवार है



***(न सुना पाऊंगा) ***

 

जलता 'दीपक'हूँ हवाओं से तो बुझ जाऊँगा 

न करोगे तो कभी याद नहीं आऊँगा 

जलता 'दीपक'हूँ हवाओं से तो बु----



(1)धुँधली सी हो…

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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 10, 2012 at 12:00pm — 1 Comment

माँ जब तेरी याद आती है

माँ जब तेरी याद आती है,

बारिश में भीगा मैं जब जब

वो हिदायतें याद आती हैं 

तुमने दी थीं प्यार से मुझको…



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Added by SUMAN MISHRA on December 10, 2012 at 11:30am — 1 Comment

''जिंदगी के दो पहलू''

बाला साहिब ठाकरे के निधन पर इन पहलुओं का अहसास हुआ

1.

सुना है आज एक शेर मरा है

जिंदगी की जंग जीतकर

जन सैलाब उमड़ा

अश्रु सैलाब बहा

सबको अकेला छोड़

गया एक अनजान सफ़र पर..

लिए चंदन की खुश्बू,

फूलों का बिस्तर,

रंगीन चश्मा पहन,

जिसमें आगे का लक्ष्य

शायद सॉफ दिखाई दे

अपनी एक पहचान छोड़कर

एक मुकाम पर पहुँचकर

2.

एक मर गया बिन बुलावे के

सुनसान सड़क के

सुनसान किनारे पर

पत्थर तोड़ता वो शख्स

ना किसी…

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Added by Sarita Bhatia on December 10, 2012 at 11:30am — 2 Comments

अर्द्धनास्तिक (लघुकथा)

आस्तिक के आ को ना में बदलने में उसे काफी वक़्त लगा था, ऐसा होने के लिए सिर्फ विज्ञान का विद्यार्थी होना ही सबकुछ नहीं होता। कई बार उसने खुद बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को अपने अनुसंधान पत्रों को जर्नल्स में प्रकाशित होने के लिए भेजते समय, कभी गणेश, कभी जीसस तो कभी वैष्णोदेवी की तस्वीरों के आगे आँखें मूँदते देखा था। कुछ उसका मनन था, कुछ चिंतन, कुछ किताबें, कुछ संगत और कुछ दुनिया से उस अलौकिक शक्ति की ढीली पड़ती पकड़, जिन्होंने मिलजुलकर उसे दुनिया में तेज़ी से बढ़ रही इंसानी उपप्रजाति 'नास्तिक' बना…

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Added by Dipak Mashal on December 9, 2012 at 7:39pm — 8 Comments

पल पल अपना रूप बदलता ,,,निशा निमंत्रण की खातिर ही

लाल गेंद बन उछल गया है ,

बाल सुलभ ज्यों किलक रहा है

कुछ पल ही में रूप बदलकर

अब यौवन में सिमट गया है

स्वर्ण सी आभा फ़ैल रही है

मिटटी स्वर्ण में परिणित होगी

रेनू जाल के सिरे पकड़ कर

दुर्बल काया भी चल देगी



संध्या की चादर हलकी है

मछुवारे के जाल के जैसी

खींच रही पल पल वो उसको

छिपना होगा निशा से पहले…

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Added by SUMAN MISHRA on December 9, 2012 at 2:03pm — 2 Comments

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