भारत देश हमारा प्यारा, न्यारा इसका संविधान है
शीतल धवल दुग्ध धार है कहीं उबलता क्या विधान है
तरह तरह की भाषा बोली हैं हम जोली
दुश्मन-मित्र हैं अपने घर ही कहीं है गोली
आस्तीन के सांप बनाये रखना दूरी
तिलक देख है फंस -फंस जाती भोली-
जनता ! त्राहि -त्राहि कर न्याय मांगती
मुंह में राम बगल में छूरी कहाँ जानती…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on January 27, 2013 at 12:58pm — 2 Comments
एक बालक था | बालक बेरोजगार था | बहुत प्रयास किया, पर सही रोजगार नहीं मिला | अंततः थक हारकर वो जुगाड़ू बाबा की शरण में गया | उसने जुगाड़ू बाबा को अपना दुखड़ा सुनाया | उसका दुखड़ा सुनकर जुगाड़ू बाबा ने उसे दो मिर्च, एक काला धांगा और एक नींबू दिया और बोले इनको गूथ और बेच | बालक बोला- बाबा ! ये क्या रोजगार है ? बालक की बात सुनकर ऐसे मुस्कुराये जुगाड़ू बाबा, जैसे बालक ने कोइ बचकानी बतिया दी हो | वो बोले - बालक ! तू अभी अनुभवहीन है, तुझे इस संसार का कुछ नहीं पता है, इसीलिए ऐसी बेतुकी बात पूछ रहा है | इस…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on January 27, 2013 at 12:30pm — 6 Comments
बहुत पुराना खत हाथों में है
लेकिन,
खुशबू ताज़ी है
अब तक संवादों की
हल्दी के दागों में
आँचल की सिहरन
माँ की उंगली के
पोरों का वो कंपन
नाम लिखा है मेरा,
जब जब जहाँ वहाँ
फ़ैल गयी है
स्याही महकी यादों की
चन्दन चन्दन बातें
घर चौबारे की
मेंहदी की साज़िश
से छूटे द्वारे की
अक्षर अक्षर गमक रहा
मौसम मौसम
शब्द शब्द हैं गंध
नेह…
ContinueAdded by seema agrawal on January 27, 2013 at 12:00pm — 3 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 26, 2013 at 6:30pm — 6 Comments
जयपुर के दिग्गी हाउस में चल रहे लिटरेचर फेस्टिवल जावेद अख्तर और प्रसून जोशी सहित कई साहित्यकारों ने विभिन्न विषयों पर अपनी राय और अनुभव साझा करते हुए सेशन को गरमाया ।
ओ बी ओ के सुधि पाठकों के लिए दूसरे दिन (दि 25-1-13)के कुछ प्रमुख अंश प्रस्तुत है :-
जावेद अख्तर के छोटे से जुमले ने लोगो के चेहरे पर मुस्कान बिखेरी । अलग अलग जुबां भी कैसे रिश्ते और लोगो को जोड़ती है जावेद ने इसकी कई मिसाल दे डाली । इस गजल सत्र में वे हिंदुस्तानी जुबान की पहचान पर तल्ख़ दिखे तो उर्दू…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 26, 2013 at 2:30pm — 6 Comments
आओ मिल गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रगान का गान करें,
संकल्पित सपनों की आओ फिर से नयी उड़ान भरें.
नये जोश से ओत प्रोत हो हम गणतंत्र मनाते हैं,
लोकतंत्र में हो स्वतंत्र हम राष्ट्र गीत को गाते हैं..
किन्तु चाहता प्रश्न पूंछना लोकतंत्र रखवारों से,
सार्थकता क्या बची रहेगी इन ओजस्वी नारों से.
क्या तुमको भूंखे बच्चों की चीख सुनाई देती है,
क्या तुमको कोई अबला की पीर दिखाई देती है.
क्या तुमने बेबस माँओं की गोद उजड़ते देखा है.
कितनी मांगों…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 26, 2013 at 2:30pm — 2 Comments
यह तेरी अर्जी है
या फिर खुदगर्जी है
सिल ही देंगी गम को
सांसे भी दर्जी है
मैं तुम से रूठा हूँ
तुहमत ये फर्जी है
दिल मेरा है सोना
बहता गम बुर्जी है
गर्दिश, ग़ज़लें, गश्ती
यह मेरी मर्जी है
~अमितेष
("मौलिक व अप्रकाशित")
Added by अमि तेष on January 26, 2013 at 1:13pm — 9 Comments
गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत:
लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर
संजीव 'सलिल'
*
लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर
भारत माता का वंदन...
हम सब माता की संतानें,
नभ पर ध्वज फहराएंगे.
कोटि-कोटि कंठों से मिलकर
'जन गण मन' गुन्जायेंगे.
'झंडा ऊंचा रहे हमारा',
'वन्दे मातरम' गायेंगे.
वीर शहीदों के माथे पर
शोभित हो अक्षत-चन्दन...
नेता नहीं, नागरिक बनकर
करें देश का नव निर्माण.
लगन-परिश्रम, त्याग-समर्पण,…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 26, 2013 at 8:00am — 12 Comments
महा महनीय जनतंत्र को गणतंत्र की हार्दिक शुभकामनायें
हर्ष और उल्लास के साथ पुनीत यह पर्व मनाएं
पर ध्यान रहे कोई भूखा नंगा छूट न जाए
सबको साथ लेकर पावन पुनीत यह पर्व मनाएं .
मन्जरी पाण्डेय
Added by mrs manjari pandey on January 25, 2013 at 10:40pm — 1 Comment
कैसे भूल सकता हूँ ,
भूंख से उसका कराहना !
ज़िन्दगी और मौत का ,
अजीब मंज़र !!
रोटी के लिए संघर्ष ,
सोचो कितनी दर्दनाक मौत ,
वो भी भूंख से ,
पेट की आंत गवाह है !!
अखबार का प्रथम पृष्ठ ,
भुखमरी से मौत का चित्रण ,
छापा गया था उसमे ,
विधिवत देकर उदाहरण!
कितना परिश्रम किया होगा ,
आंकड़े एकत्र करने में ,
काश! थोड़ी मेहनत की होती ,
इनका पेट भरने में !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक \अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on January 25, 2013 at 8:23pm — 4 Comments
Added by Dr Dilip Mittal on January 25, 2013 at 8:00pm — 2 Comments
तुम जो होंसला दिखाओ तो फर्क पड़ता है साहेब .
वर्ना , नंबर दो क्या, नंबर एक भी हो जाओ,किसे फर्क पड़ता है ?
जलसे,जयकारे ,चापलूसों की फ़ौज ,किसे फर्क पड़ता है ?
देशभक्त को अपना दोस्त बनाओ तो फर्क पड़ता है ,
दूसरों के भ्रष्टाचार की कलई खोलो ,किसे फर्क पड़ता है ?
अपनों के गलत कामों को रोको तो फर्क पड़ता है ,
पिछड़ों के मसीहा बनो किसे फर्क पड़ता है…
Added by Dr Dilip Mittal on January 25, 2013 at 7:36pm — 2 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 25, 2013 at 5:49pm — 2 Comments
ना जाने कब तुमने चुपके से
ये इश्क के बीज रोपित किये
मेरे सुकोमल ह्रदय में
की मैं बांवरी हो गई
तुम्हारी चाह में ,सांस लेने लगी
उस तिलस्मी फिजाँ में
रंग बिरंगे इन्द्रधनुष आकर लेने लगे
मेरी रग रग में
ऐ मेरे शिखर तुम्हारी गगन चुम्बी चोटी
भी अब सूक्ष्म और सुलभ लगने लगी
मुहब्बत के नशे में चूर
इश्क के जूनून में जंगली
घास बन ,फूलों के संग संग तुम्हारे
बदन पर रेंगती…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 25, 2013 at 11:36am — 10 Comments
स्वागत गणतंत्र
प्रो. सरन घई, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान
स्वागतम सुमधुर नवल प्रभात,
स्वागतम नव गणतंत्र की भोर,
स्वागतम प्रथम भास्कर रश्मि,
स्वागतम पुन:, स्वागतम और।
जगा है अब मन में विश्वास,
कि सपने पूरे होंगे सकल,
कुहुक कुहुकेगी कोयल कूक,
खिलेगा उपवन का हर पोर।
युवा होती जायेगी विजय,
सुगढ़ होता जायेगा तंत्र,
फैलती जायेगी मुस्कान,
विहंसता जायेगा…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on January 25, 2013 at 8:52am — 8 Comments
फ़िरदौस इस वतन में फ़रहत नहीं रही ,
पुरवाई मुहब्बत की यहाँ अब नहीं रही .
नारी का जिस्म रौंद रहे जानवर बनकर ,
हैवानियत में कोई कमी अब नहीं रही .
फरियाद करे औरत जीने दो मुझे भी ,
इलहाम रुनुमाई को हासिल नहीं रही .
अंग्रेज गए बाँट इन्हें जात-धरम में ,
इनमे भी अब मज़हबी मिल्लत नहीं रही .
फरेब ओढ़…
ContinueAdded by shalini kaushik on January 25, 2013 at 12:00am — 3 Comments
गिर रहा है मनुष्य का अस्तित्व
यह शब्द हर समय वातावरण में गूंज रहा है।
फिर भी थम नहीं रही है,
बलात्कार और अपहरण की घटनाएं
कभी बस, कभी ट्रेन तो कभी चौक चौराहे से उठ रही हैं
सिसकियां
हर समय हो रहा है समाज का पोस्टमार्टम
एक
आज के अखबार में छपा था
चौराहे पर दिन दहाड़े हुआ
एक कमसिन युवती के साथ बलात्कार
अखबार को मिले चटपटे मसाले से
उड़ रही थीं समाज की धज्जियां
पत्रकार और अभियुक्त दोनों ताव दे-देकर ऐंठ रहे थे मूंछे
क्योंकि
एक पहले पन्ने…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on January 24, 2013 at 9:14pm — 9 Comments
सद्भावों की थोड़ी खूशबू
सरगम की आवाज बची है
आओ दिल का दीया जला लो
मुट्ठी में थोड़ी राख बची है
नई उमर के गर्म खून से
उठी हुई कुछ भाप बची है
श्रद्धा के कुछ बूंद जमे से
बचपन की एक शाख बची है
आओ दिल का.................
तेरी आरजू मेरी शिकायत
की मीठी तकरार बची है
जग से जाने के कुछ लम्हें
जीवन की सौगात बची है
आओ दिल का.................
घुटी व्यथा जो…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on January 24, 2013 at 6:29pm — 15 Comments
प्यार ने तेरे बीमार बना रखा है
जा चुके कल का अख़बार बना रखा है
फांसले दिल के अब मिटते नहीं हैं हमसे
चीन की खुद को दीवार बना रखा है
बेचकर गैरत अपनी सो चुके हैं कब के
हमने उनको ही सरदार* बना रखा है
शोर सा मेरे इस दिल में ऐसा मचा है
जैसे गठबंधन सरकार बना रखा है
चापलूसों का दरबार लगा है नादिर
झूठ को ही कारोबार बना रखा है
*सरदार = मुखिया
Added by नादिर ख़ान on January 24, 2013 at 5:30pm — 5 Comments
वेश बदल कर मिलोगे
आहटें न बदल पाओगे ..
लब सिल कर रखोगे
नज़रों का बोलना ना छुपा पाओगे ..
चलते -चलते राह बदल दोगे
पगडंडियाँ ना छोड़ पाओगे ...
मिलोगे भी नहीं ,बात भी नहीं करोगे
सपने में आना ना छोड़ पाओगे ..
तुम से मैं हूँ , मुझ से तुम हो
हर बात मुझसे जुडी है
तुम मुझसे ना छुपा पाओगे ...
Added by upasna siag on January 24, 2013 at 4:39pm — 4 Comments
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