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"बात दो रोटी की है "

कैसे भूल सकता हूँ ,
भूंख से उसका कराहना !
ज़िन्दगी और मौत का ,
अजीब मंज़र !!

रोटी के लिए संघर्ष ,
सोचो कितनी दर्दनाक मौत ,
वो भी भूंख से ,
पेट की आंत गवाह है !!

अखबार का प्रथम पृष्ठ ,
भुखमरी से मौत का चित्रण ,
छापा गया था उसमे ,
विधिवत देकर उदाहरण!

कितना परिश्रम किया होगा ,
आंकड़े एकत्र करने में ,
काश! थोड़ी मेहनत की होती ,
इनका पेट भरने में !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक \अप्रकाशित

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Comment

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Comment by seema agrawal on January 27, 2013 at 3:55pm

कितना परिश्रम किया होगा ,
आंकड़े एकत्र करने में ,
काश! थोड़ी मेहनत की होती ,
इनका पेट भरने में !!..............वाह संवेदन शील कथ्य 

//आकड़ा इकठ्ठा न करें तो भूखे मरने वालों की फेहरिस्त में खुद उसका नाम होगा ।// हा हा हा गणेश जी जय हो आपकी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 26, 2013 at 7:39pm

अच्छे भाव अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक आभार शिरोमणि पाठक जी

Comment by ram shiromani pathak on January 26, 2013 at 2:40pm

हार्दिक आभार आपका गणेश जी...................


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 26, 2013 at 2:28pm

//कितना परिश्रम किया होगा ,
आंकड़े एकत्र करने में ,
काश! थोड़ी मेहनत की होती ,
इनका पेट भरने में !!//

सभी अपना अपना कर्म करें तो भूखे मरने की नौबत ही न आयें । आकड़ा इकठ्ठा न करें तो भूखे मरने वालों की फेहरिस्त में खुद उसका नाम होगा । रचना भावनात्मक स्तर पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है ।

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