गीत रूठे हुए मीत छूटे हुए
फिर भी रस्में ये सारी निभा जाऊँगा
ये अलग बात है रंग मुझमें नहीं
फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा
आप सो जाइये ओढ़ कर बदरियाँ
मुझको इस धूप में और जलना अभी
लक्ष्य संसार के हों समर्पित तुम्हें
मुझको इक उम्रभर और चलना अभी
मन के मंदिर में बस तुम ही तुम देव हो
प्रीत के कुछ सुमन फिर चढ़ा जाऊँगा
ये अलग बात है रंग मुझमें नहीं
फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा
रंग यौवन के जब सब उतरने लगें
फूल जब…
Added by Pushyamitra Upadhyay on March 26, 2013 at 9:00pm — 4 Comments
गंगा, (ज्ञान गंगा व जल गंगा) दोनों ही अपने शाश्वत सुन्दरतम मूल स्वभाव से दूर पर्दुषित व व्यथित, हमारी काव्य कथा नायक 'ज्ञानी' से संवादरत हैं।
Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 26, 2013 at 8:30pm — 8 Comments
चढ़े प्रेम का रंग
-लक्ष्मण…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 26, 2013 at 6:30pm — 11 Comments
होली के हुड़दंग मा, खद्दरवा सत रंग।
आम जनता डर रही, शिव धनुवा जस भंग।।1
हाथी साइकिल चले, गदहा राज चलाय।
हर साख उल्लू बैठा, जनता रही लजाय।।2
होली से होली कहे, रंगों का रस रंग।
कौन खूनी रंग रहा, भारत मन बदरंग।।3
लड़खत दारू ठेलिये, कौन दिशा कहॅ ठांव।
नलियै में औंधे पड़े, धिक्कारे सब गांव।।4
होरियारन से होली, रंगो सजे समाज।
नशा मवाली फाग में,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 26, 2013 at 4:44pm — 3 Comments
क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?
मैं तुझे पहचान न सकी।
तेरे तो हैं रूप अनेक ,
कभी तुझे जान न सकी।
क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?
देखा है मैंने तुझे कभी ,
फूलों की तरह खिलते हुए।
और कभी देखा है मैंने तुझे,
शोलों की तरह जलते हुए।
तेरी कोई पहचान न रही,
कभी तुझे जान न सकी।
क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?
कहीं है तू पुष्प-सी-कोमल
तो कहीं काँटों-सी-कठोर।
कहीं पर है प्यार तेरा,
तो कहीं है अन्याय घोर।
तेरी कभी कोई शान न रही,
कभी तुझे जान न सकी।
क्या…
Added by Savitri Rathore on March 26, 2013 at 3:24pm — 13 Comments
ललित छंद (16+12मात्रायें:- छन्नपकैया की जगह "आनंद करो आनंद करो" का प्रयोग)
आनंद करो आनंद करो ,देखो होली आई !
मजे लेकर सब खा रहे है ,हलवा खीर मिठाई !!१
आनंद करो आनंद करो,इसको उसको रंगा !
झूमते हुड़दंग मचाया ,पीकर सबने भंगा !!२
आनंद करो आनंद करो,रंग भरी…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on March 26, 2013 at 12:00pm — 3 Comments
चतुष्पदी ,चैापैया. (10, 8, 12 अन्त में दो गुरू)
जय अंजनि लाला, केसर बाला, पवन पुत्र सुखकारी।
तुम बाल प्यारे, शंकर सारे, अद्भुत लीला धारी।।
प्रभु देखि दिवाकर, फलम् समझकर, निगले भा अॅधियारी!
सृष्टि भई काली, ज्योति बिहाली, त्राहि त्राहि मम वारी।।1
छॅाड़े नहि रवि को, बड़े जतन सो, दैव आरत पुकारी।
इन्द्र अकुलाये, बज्र चलाये, हनुमत भय सुधहारी।।
कहॅू शंकर सुवन, केसरि नन्दन, बाल मुकुन्द सुरारी।
देवन्ह सब…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2013 at 10:55pm — 9 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 25, 2013 at 10:40pm — 6 Comments
फिलहाल कुछ ऐसा कीजिए
चुन के कांटे फूल धर दीजिए
और कुछ संभव हो या ना ,
छत को चोग से भर दीजिए
बहुत अंधेरो की बोई फसल
रौशनी की भी मगर बीजिए
तीसरा नेत्र खोल के रखिए
चाहे दोनों आंखे भर लीजिए
हर कोई फोटो फ्रेम लगाए,
दिल में जगह मगर दीजिए
Added by मोहन बेगोवाल on March 25, 2013 at 10:30pm — 6 Comments
शोभना जितनी सुन्दर थी उतनी ही बेबाक और गर्वीली भी थी. वह अमरीका से उच्च शिक्षा प्राप्त थी. होम मिनिस्ट्री में बहुत ही ऊँचे पद पर आसीन थी. उसे शादी नाम से बहुत चिढ़ थी. जब वह पैंतीस साल की हो गयी तो एकदिन उसके पिता ने उससे कहा- “ शोभना ! अगर तुम्हें कोई पसंद हो तो बता देना मैं तुम्हारी शादी उसीसे कर दूँगा. ”
शोभना ने भी सोचा अब शादी कर ही लेनी चाहिये. अतः अपने पिता से बोली – “ठीक है पिता जी, लेकिन मुझे मेरे ही ग्रेड का वर चाहिये. ’’
शोभना स्वयं अपने वर की तलाश करने लगी.…
Added by coontee mukerji on March 25, 2013 at 9:00pm — 6 Comments
वाणी जब नयनों से छलके
दो दिल में हो एक स्पंदन,
हो केशगुच्छ के अवगुंठन में
अधरों का अधरों से मिलन –
जब अलि के नीरव गुंजन से
सिहरित हो, पुष्पित कोमल तन,
जब भाव बहे सरिता बनकर
भाषा हो मृदुल, मंद समीरण –
प्रिये तभी होता है प्राणों का
जीवन से आलिंगन.
जब पवन चले औ’ किलक उठे
कलियों का दल इठलाकर,
जब तरु की शाखों में जाग उठे
उन कोमल पत्रों का मर्मर,
जब ओस बिंदु को मिलता हो
तृण का कम्पित अवलम्बन –
बंधु तभी मुखरित होता है,
यह जग,…
Added by sharadindu mukerji on March 25, 2013 at 8:44pm — 4 Comments
Added by Neelima Sharma Nivia on March 25, 2013 at 6:31pm — 7 Comments
कटी फसल सा
पड़ा हुआ हूं
मिटा गझिन आकार
परती धरती
धूम धनुष ले
करती तीक्ष्ण प्रहार
छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार
कर्म ताल में
कीच भर गए
यत्न सकल बेकार
मन की घिर्नी
घूम थक चुकी
पंथ मिला ना द्वार
छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार
जलद पटल
क्या चित्र बनाऊं
किसपर करूं सिंगार
स्वर्णमृग तो
राम साधते
मुझे चापते हार
छू लो तुम एकबार --…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on March 25, 2013 at 12:24pm — 4 Comments
मंच के सामने आठ दस लोग कुर्सियों पर बैठे थे। सफेद झक कुर्ता पायजामा पहने छरहरे बदन का एक युवक मंच पर खड़ा भाषण दे रहा था, ‘आज हमारे देश को भगत सिंह के आदर्शों की जरूरत है……..।‘ भाषण खत्म होने पर संचालक ने घोषणा की, ‘थोड़ी ही देर में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रारम्भ होंगे।‘
कुछ देर बाद एक युवती रंग बिरंगी वेशभूषा में मंच पर आयी और उसने एक गीत पर नृत्य आरंभ कर दिया ‘……चिकनी चमेली……’
भीड़ धीरे…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on March 25, 2013 at 10:00am — 32 Comments
दस फागुनी दोहे " 2013 "
तेरी ही खातिर सजे रंग अबीर के थाल ,
तेरे आने से हुई मेरी होली लाल ।
रंग पर्व में घुल गए इंतज़ार के रंग ,
होली सच में शोभती अपनों के ही संग ।
सरसों टेसू और पलाश हैं बसंत के दूत ,
रंग रूप से कर रहे मादकता आहूत ।
लज्जा तेरा रंग है मेरा रंग संकोच ,
ऐसे में…
Added by Abhinav Arun on March 25, 2013 at 9:30am — 14 Comments
कुछ ख़ास लिए आई होली
Added by Lata R.Ojha on March 24, 2013 at 11:30pm — 9 Comments
रंगों के बाज़ार में खड़ी हूँ सखि !
मेरा घर सूना , आंगन सूना ,
बाग बगीचे , पेड़ पात सूना
दिन रात सूना, सूना मेरा आंचल,
पिया परदेश , संसार मेरा सूना.
होली रंगों की थाल लिये
द्वार खड़ी हँस रही , क्या करूँ सखि !
उदासी मेरा रूप श्रृंगार, हाय !
नौकरी बनी सौतन मेरी.
बिन बादल बरसात होती नहीं,
डाल पर मैना अब गाती नहीं -
उड़ता है रंग हर कहीं,
कोई रंग मुझको भाता नहीं.
फूलों की बरसात हो रही,
मेरे जूड़े में फूल लगता नहीं -
अंतहीन…
Added by coontee mukerji on March 24, 2013 at 7:16pm — 5 Comments
"मैं हूं मौन!"
मैं कौन हूं ?
मैं हूं मौन!
महिलाओं की चैन लुटती रही
सरे राह।
दामिनी-दिल्ली की अस्मिता बनी
लाचारी।
सड़क पर बिफर गई
बेचारी।
और मैं मोमबत्ती जलाकर देखता रहा!
मैं कायर हूं ? नहीं!
कायरता नहीं मुझमें!
बस उन अबलाओं और अपने घरों की सुरक्षा में
सेंध देखता रहा !
और मैं मौन रहा।1
पुलिस की घूस, ठूंस, लाठी
बेवजह चलते रहे
अविराम!
नौकरशाही घोटाले…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 24, 2013 at 4:35pm — 14 Comments
(पति पत्नी में मंहगाई को लेकर होली पर नोकझोक)
बलम ना करो बलजोरी
अबके फागुन खेलूंगी ना
तोरे संग मैं होरी .
बलम ना करो बलजोरी .
मेरी बात माने नाहीं
मैं ना मानूंगी तोरी.
बलम ना करो बलजोरी.
बलम ना करो बलजोरी.
चांदी की पिचकारी लाओ,
लाओ रंग गुलाबी लाल,
जयपूर से लंहगा लाओ
तब जाकर छुओ गाल.
***********
मंहगाई की मार ने गोरी
जीना किया मुहाल.
पिचकारी मंहगी…
ContinueAdded by Neeraj Neer on March 24, 2013 at 11:44am — 8 Comments
मै हूँ धरती
आसमान पे चाँद
साथ साथ है
....................
शीतल तन
लहराती चांदनी
छटा बिखरी
...................
ठंडी हवाएं
जल रहा बदन
तड़पा जाती
.................
स्नेहिल साथ
अंगडाई प्यार की
बहार आई
..................
रात की रानी
दुधिया चांदनी है
महके धरा
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by Rekha Joshi on March 23, 2013 at 11:21pm — 4 Comments
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