For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,988)

फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा

गीत रूठे हुए  मीत छूटे हुए

फिर भी रस्में ये सारी निभा जाऊँगा

ये अलग बात है रंग मुझमें नहीं

फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा



आप सो जाइये ओढ़ कर बदरियाँ

मुझको इस धूप में और जलना अभी

लक्ष्य संसार के हों समर्पित तुम्हें

मुझको इक उम्रभर और चलना अभी

मन के मंदिर में बस तुम ही तुम देव हो

प्रीत के कुछ सुमन फिर चढ़ा जाऊँगा

ये अलग बात है रंग मुझमें नहीं

फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा



रंग यौवन के जब सब उतरने लगें

फूल जब…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on March 26, 2013 at 9:00pm — 4 Comments

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें- द्वितीय खंड (3)

गंगा, (ज्ञान गंगा व जल  गंगा) दोनों ही अपने शाश्वत सुन्दरतम मूल  स्वभाव से दूर पर्दुषित  व  व्यथित,  हमारी काव्य कथा  नायक 'ज्ञानी' से संवादरत हैं। 

अब यह सर्वविदित है कि मनुष्य की तमाम विसंगतियों, मुसीबतों, परेशानियों   का कारण उस का ओछा ज्ञान है जिसे वह अपनी तरक्की का प्रयाय मान रहा है. इसी ओछे ज्ञान से मानव को निकालना और सही व ज्ञानोचित अनुभूति का संप्रेष्ण करना अब ज्ञानि का लक्ष्य है. इस के…
Continue

Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 26, 2013 at 8:30pm — 8 Comments

चढ़े प्रेम का रंग (दोहे)-लक्ष्मण लडीवाला

चढ़े प्रेम का रंग                                            

-लक्ष्मण…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 26, 2013 at 6:30pm — 11 Comments

होली है!...............सरररररररर!!!

होली के हुड़दंग मा, खद्दरवा सत रंग।

आम जनता डर रही, शिव धनुवा जस भंग।।1



हाथी साइकिल चले, गदहा राज चलाय।

हर साख उल्लू बैठा, जनता रही लजाय।।2

होली से होली कहे, रंगों का रस रंग।

कौन खूनी रंग रहा, भारत मन बदरंग।।3



लड़खत दारू ठेलिये, कौन दिशा कहॅ ठांव।

नलियै में औंधे पड़े, धिक्कारे सब गांव।।4



होरियारन से होली, रंगो सजे समाज।

नशा मवाली फाग में,…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 26, 2013 at 4:44pm — 3 Comments

ज़िन्दगी

क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?

मैं तुझे पहचान न सकी।

तेरे तो हैं रूप अनेक ,

कभी तुझे जान  न सकी।

क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?

देखा है मैंने तुझे कभी ,

 फूलों की तरह खिलते हुए।

और कभी देखा है मैंने तुझे,

शोलों की तरह जलते हुए।

तेरी कोई पहचान न रही,

कभी तुझे जान न सकी।

क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?

कहीं है तू पुष्प-सी-कोमल

तो कहीं काँटों-सी-कठोर।

कहीं पर है प्यार तेरा,

तो कहीं है अन्याय घोर।

तेरी कभी कोई शान न रही,

कभी तुझे जान न सकी।

क्या…

Continue

Added by Savitri Rathore on March 26, 2013 at 3:24pm — 13 Comments

ललित छंद

ललित छंद (16+12मात्रायें:- छन्नपकैया की जगह "आनंद करो आनंद करो" का प्रयोग)



आनंद करो आनंद करो ,देखो होली आई !

मजे लेकर सब खा रहे है ,हलवा खीर मिठाई !!१

आनंद करो आनंद करो,इसको उसको रंगा !

झूमते हुड़दंग मचाया ,पीकर सबने भंगा !!२

आनंद करो आनंद करो,रंग भरी…

Continue

Added by ram shiromani pathak on March 26, 2013 at 12:00pm — 3 Comments

:ःजय जय अंजनि लालाःः

चतुष्पदी ,चैापैया. (10, 8, 12 अन्त में दो गुरू)

जय अंजनि लाला, केसर बाला, पवन पुत्र सुखकारी।

तुम बाल प्यारे, शंकर सारे, अद्भुत लीला धारी।।

प्रभु देखि दिवाकर, फलम् समझकर, निगले भा अॅधियारी!

सृष्टि भई काली, ज्योति बिहाली, त्राहि त्राहि मम वारी।।1

छॅाड़े नहि रवि को, बड़े जतन सो, दैव आरत पुकारी।

इन्द्र अकुलाये, बज्र चलाये, हनुमत भय सुधहारी।।

कहॅू शंकर सुवन, केसरि नन्दन, बाल मुकुन्द सुरारी।

देवन्ह सब…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2013 at 10:55pm — 9 Comments

होली आयी खुशियां छायी

होली आयी

खुशियां छायी

रंग बिखरे

संस्कृति के

स्नेह मिलन का

पर्व है होली

रंग-गुलाल देते सन्देश

प्रकृति के

विभिन्न रंगों का

कितनी भी जतन करो

रक्षा होती सदैव

सत्य की

असत्य सदैव

सत्य से हारा

रंग प्रतीक हैं

वसंतागमन का

जिस तरह

खिलते हैं

विभिन्न रंगों के फूल

वसन्त में

उसी तरह

बिखरते हैं रंग

होली पर्व में

खेलो होली मजे से

बुरी रीतियों से बचो

शराब पीना

होली के दिन

काला… Continue

Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 25, 2013 at 10:40pm — 6 Comments

गज़ल

फिलहाल कुछ ऐसा कीजिए
चुन के कांटे फूल धर दीजिए


और कुछ संभव हो या ना ,
छत को चोग से  भर दीजिए

बहुत अंधेरो की बोई फसल
रौशनी की भी मगर बीजिए

तीसरा नेत्र खोल के रखिए
चाहे दोनों आंखे भर लीजिए

हर कोई फोटो फ्रेम लगाए,
दिल में जगह मगर दीजिए 

Added by मोहन बेगोवाल on March 25, 2013 at 10:30pm — 6 Comments

अकेली औरत





शोभना जितनी सुन्दर थी उतनी ही बेबाक और गर्वीली भी थी. वह अमरीका से उच्च शिक्षा प्राप्त थी. होम मिनिस्ट्री में बहुत ही ऊँचे पद पर आसीन थी. उसे शादी नाम से बहुत चिढ़ थी. जब वह पैंतीस साल की हो गयी तो एकदिन उसके पिता ने उससे कहा- “ शोभना ! अगर तुम्हें कोई पसंद हो तो बता देना मैं तुम्हारी शादी उसीसे कर दूँगा. ”

शोभना ने भी सोचा अब शादी कर ही लेनी चाहिये. अतः अपने पिता से बोली – “ठीक है पिता जी, लेकिन मुझे मेरे ही ग्रेड का वर चाहिये. ’’

शोभना स्वयं अपने वर की तलाश करने लगी.…

Continue

Added by coontee mukerji on March 25, 2013 at 9:00pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अनुभूति

वाणी जब नयनों से छलके

दो दिल में हो एक स्पंदन,

हो केशगुच्छ के अवगुंठन में

अधरों का अधरों से मिलन –

जब अलि के नीरव गुंजन से

सिहरित हो, पुष्पित कोमल तन,

जब भाव बहे सरिता बनकर

भाषा हो मृदुल, मंद समीरण –

प्रिये तभी होता है प्राणों का

जीवन से आलिंगन.

जब पवन चले औ’ किलक उठे

कलियों का दल इठलाकर,

जब तरु की शाखों में जाग उठे

उन कोमल पत्रों का मर्मर,

जब ओस बिंदु को मिलता हो

तृण का कम्पित अवलम्बन –

बंधु तभी मुखरित होता है,

यह जग,…

Continue

Added by sharadindu mukerji on March 25, 2013 at 8:44pm — 4 Comments

तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम से

तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम से .
 
 
तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम से 

तुम्हारे कडवे झूठो , तीखे बयानों से 

कितना भी कीचड़ उड़ेलो मेरे जज्बातों पर 

मैं बहार आऊँगी चन्दन की महक से 





मेरी मुखरता तुम्हे उद्वेलित करती हैं 

मेरी ख़ामोशी तुमको आक्रोशित करती हैं 

तुम कैसे स्वीकार सकते हो मेरे अस्तित्व…
Continue

Added by Neelima Sharma Nivia on March 25, 2013 at 6:31pm — 7 Comments

छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार

कटी फसल सा

पड़ा हुआ हूं

मिटा गझिन आकार

परती धरती

धूम धनुष ले

करती तीक्ष्‍ण प्रहार

छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार

कर्म ताल में

कीच भर गए

यत्‍न सकल बेकार

मन की घिर्नी

घूम थक चुकी

पंथ मिला ना द्वार

छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार

जलद पटल

क्‍या चित्र बनाऊं

किसपर करूं सिंगार

स्‍वर्णमृग तो

राम साधते

मुझे चापते हार

छू लो तुम एकबार --…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on March 25, 2013 at 12:24pm — 4 Comments

लघुकथा ­- चमेली

मंच के सामने आठ दस लोग कुर्सियों पर बैठे थे। सफेद झक कुर्ता पायजामा पहने छरहरे बदन का एक युवक मंच पर खड़ा भाषण दे रहा था, ‘आज हमारे देश को भगत सिंह के आदर्शों की जरूरत है……..।‘ भाषण खत्म होने पर संचालक ने घोषणा की, ‘थोड़ी ही देर में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रारम्भ होंगे।‘

कुछ देर बाद एक युवती रंग बिरंगी वेशभूषा में मंच पर आयी और उसने एक गीत पर नृत्य आरंभ कर दिया ‘……चिकनी चमेली……’

भीड़ धीरे…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 25, 2013 at 10:00am — 32 Comments

फागुनी दोहे " होली 2013 " -

दस फागुनी दोहे  " 2013 "

तेरी ही खातिर सजे रंग अबीर के थाल ,

तेरे आने से हुई मेरी होली लाल ।

रंग पर्व में घुल गए इंतज़ार के रंग ,

होली सच में शोभती अपनों के ही संग ।

सरसों टेसू और पलाश हैं बसंत के दूत ,

रंग रूप से कर रहे मादकता आहूत ।

लज्जा तेरा रंग है मेरा रंग संकोच ,

ऐसे में…

Continue

Added by Abhinav Arun on March 25, 2013 at 9:30am — 14 Comments

कुछ ख़ास लिए आई होली

कुछ ख़ास लिए आई होली 

मौसम भी अब रुख बदल रहा 
कभी सर्द  लगा , कभी गर्म रहा 
बेमन सा सब ,बेस्वाद हुआ 
चलते चलते ज्यों ठिठक रहा 
ऐसे में रंग को संग लिए 
उत्साह लिए आई होली ..
दुर्भाव गया ,न भेद रहा 
न क्रोध रहा ,न खेद रहा 
शत्रु भी मिल कर मित्र…
Continue

Added by Lata R.Ojha on March 24, 2013 at 11:30pm — 9 Comments

रंगों के बाज़ार में खड़ी हूँ

रंगों के बाज़ार में खड़ी हूँ सखि !

मेरा घर सूना , आंगन सूना ,

बाग बगीचे , पेड़ पात सूना

दिन रात सूना, सूना मेरा आंचल,

पिया परदेश , संसार मेरा सूना.

होली रंगों की थाल लिये

द्वार खड़ी हँस रही , क्या करूँ सखि !

उदासी मेरा रूप श्रृंगार, हाय !

नौकरी बनी सौतन मेरी.

बिन बादल बरसात होती नहीं,

डाल पर मैना अब गाती नहीं -

उ‌ड़ता है रंग हर कहीं,

कोई रंग मुझको भाता नहीं.

फूलों की बरसात हो रही,

मेरे जूड़े में फूल लगता नहीं -

अंतहीन…

Continue

Added by coontee mukerji on March 24, 2013 at 7:16pm — 5 Comments

मैं हूं मौन!

"मैं हूं मौन!"

मैं कौन हूं ?

मैं हूं मौन!

महिलाओं की चैन लुटती रही

सरे राह।

दामिनी-दिल्ली की अस्मिता बनी

लाचारी।

सड़क पर बिफर गई

बेचारी।

और मैं मोमबत्ती जलाकर देखता रहा!

मैं कायर हूं ? नहीं!

कायरता नहीं मुझमें!

बस उन अबलाओं और अपने घरों की सुरक्षा में

सेंध देखता रहा !

और मैं मौन रहा।1



पुलिस की घूस, ठूंस, लाठी

बेवजह चलते रहे

अविराम!

नौकरशाही घोटाले…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 24, 2013 at 4:35pm — 14 Comments

मंहगाई में होली

(पति पत्नी में मंहगाई को लेकर होली पर नोकझोक)

बलम ना करो बलजोरी

अबके फागुन खेलूंगी ना

तोरे संग मैं होरी .

बलम ना करो बलजोरी .

 

मेरी बात माने नाहीं  

मैं ना मानूंगी तोरी.

बलम ना करो बलजोरी.

बलम ना करो बलजोरी.

 

चांदी की पिचकारी लाओ,

लाओ रंग गुलाबी लाल,

जयपूर से लंहगा लाओ

तब जाकर छुओ गाल.

***********

मंहगाई की मार ने गोरी

जीना किया मुहाल.

पिचकारी मंहगी…

Continue

Added by Neeraj Neer on March 24, 2013 at 11:44am — 8 Comments

लहराती चांदनी

मै हूँ धरती

आसमान पे चाँद

साथ साथ है

....................

शीतल तन

लहराती चांदनी

छटा बिखरी

...................

ठंडी हवाएं

जल रहा बदन

तड़पा जाती

.................

स्नेहिल साथ

अंगडाई प्यार की

बहार आई

..................

रात की रानी

दुधिया चांदनी है

महके धरा

अप्रकाशित एवं मौलिक 

Added by Rekha Joshi on March 23, 2013 at 11:21pm — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Mamta gupta and Euphonic Amit are now friends
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"आ. भाई सत्यनारायण जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, गुरु की महिमा पर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने। समर सर…"
Tuesday
Dayaram Methani commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आदरणीय निलेश जी, आपकी पूरी ग़ज़ल तो मैं समझ नहीं सका पर मुखड़ा अर्थात मतला समझ में भी आया और…"
Tuesday
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service